हक़ीक़त
हक़ीक़त


आज बस से सफ़र करते हुए बस के एक दम पीछे वाली सीट पर बैठा था। तेज़ रफ़्तार से बस चली जा रही थी। बीच-बीच में झटका भी काफी दे रहा था, मगर क्या करें हम जैसे मध्यम वर्ग परिवार के लोगों के लिए बस के अलावा दूसरा कोई साधन यातायात के लिए नहीं होता। हमलोग कभी कभार ही टैक्सी से घरवालों को कहीं घूमाने ले जा पाते हैं, उसमें भी हमें महीने की हिसाब के बारे में सोचना पड़ता है।
बस में बैठा मैं इधर-उधर नज़र घूमाकर देख रहा था। बस में यात्री कम थें, सब लोग बैठे हुए थे। कोई अकेले खिड़की से बाहर झांकते हुए, कोई किसी के साथ बातें करते हुए और कोई शायद दिन भर की थकान मिटाने के लिए सोते हुए जा रहे थे।
अचानक मेरी नज़र मेरे ठीक आगे वाली सीट पर पड़ी जहां एक लड़का एक लड़की के साथ बातें करते हुए कहीं जा रहे थे। वे लोग किस भाषा में बात कर रहे थे वह मुझे पता नहीं, हाँ, मगर एक दूसरे के प्रति जो लगाव दिख रहा था उससे साफ पता चलता है कि वो दोनों प्रेमी हैं। दोनों की उम्र करीब १९/२० साल की होगी। कभी लड़की लड़के के बालों को सहलाने लगती तो कभी लड़का लड़की के कान के झुमके छूने लगते। लड़की अपने गर्दन को थोड़ा-सा टेढ़ा कर लड़के के उंगलियों से उसकी कान को सहलाने लगती। जब तेज़ हवा लड़की की बाल उलझा देता तो लड़का उसकी बालों को सहला देता। दोनों एक दूसरे को देख कर हँसने लगता। ये सब कुछ मैं अपने आँखों से बस के एक दम पीछे वाली सीट पर बैठा देख रहा था । इस वाकया ने मुझे तकरीबन २४-२५ साल पीछे ले गया और मुझे मेरे अपने प्रेम कहानी याद आ गई। ऐसे ही कभी मैं भी अपनी प्रेमिका के साथ बातें किया करता था। हाँ, फ़र्क सिर्फ़ यही है आज ये खुल्लम खुल्ला प्यार कर पाते, कहीं भी कभी भी आ-जा सकते; मगर हम कर नहीं पाते थे। हफ्ते में एक दिन या ज्यादा से ज्यादा दो दिन ही छुप कर मिला करते थे। हम किसी रेस्टोरेंट में खाना खाने नहीं जा पाते थे क्योंकि हमारे पास उतना पैसा नहीं होता था। सिर्फ चना, मकई या ज्यादा से ज्यादा चाई-समोसे खा लेते। घंटों किसी पार्क में जहां भीड़ कम होता बैठे रहते थे। तरह-तरह की बातें करते, आने वाले दिनों की बातें, नौकरी मिलते ही घर-संसार बसाने की बातें आदि कई तरह की बातें करते रहते थे। कभी झगड़े भी होते थे, लेकिन वह कुछ समय के लिए ही होते थे। इस तरह रूठना मनाना होता रहता था और हम अपनी प्रेम कहानी को उसकी आखिरी मंजिल तक पहुँचाने की कोशिश में लगे हुए रहते थे। मगर कमबख्त तकदीर को कुछ और ही मंजूर था और प्रेम कहानी अधूरी रह गई। वह हमेशा के लिए मुझसे दूर हो गई। क्यों-कैसे-कब इसका कोई जवाब नहीं और न ही मैं जानना चाहता था।मुझे मालूम नहीं अब वह कहाँ है मगर आशा करता हूँ जहाँ भी होगा अच्छा ही होगा। मैं भी आज मेरे परिवार के साथ जैसा भी हूँ बहुत खुश हूँ। मैं पुरानी दिनों की बातें कमबख्त याद नहीं करना चाहता मगर आज वो दोनों प्रेमियों ने फिर से मुझे मेरे गुजरी हुई अतीत को फिर से याद दिला दिया। लेकिन वो जो भी हो हक़ीक़त हमेशा हक़ीक़त ही होता है। अतीत भी हक़ीक़त होता है अपने वक्त के मुताबिक और वर्तमान तो हक़ीक़त होता ही है। हमें किसी भी हालत ओ हालात में हक़ीक़त को मानना ही पड़ता है और यही ठीक भी है क्योंकि हमें समय के साथ चलना चाहिए और इसि में हमारी भलाई हैं। इसी बीच वो दोनों प्रेमी बस से उतरकर चलने लगें और मैं उन दोनों को जब तक हो सके देखता ही रहा। फिर बस चल पड़ी और मैं खिड़की से बाहर झांकते हुए कुछ सोचने लगा...!!!!!