सवाल-जवाब
सवाल-जवाब


रात्रि 9:00 बजे थे, मैं कचरा फेंकने बाहर निकलकर म्यूनिसिपैलिटी के बड़े कचरे की पेटी के पास जा पहुंचा। कचरा फेंककर वापस आने लगा था तभी एक औरत और एक छोटी लड़की को देखा जो कचरे की पेटी के पास जाकर खड़े हो गए। मैं थोड़ी देर तक वहां खड़ा रहा और जानने की कोशिश की कि आखिर कचरे की पेटी में भला ऐसा क्या रहता है जिसके लिए कुछ लोग रात-रात भर सड़कों पर घूम-घूमकर कचरे की पेटी में न जाने क्या-क्या ढूंढते रहते हैं। स्ट्रीट लाइट की रोशनी में वो दोनों बहुत ही आसानी से अपने जरूरत के हिसाब से चीजें ढूंढ़ रहे थे। मैंने देखा वो दोनों बहुत से प्लास्टिक बैग और बोतलें इकट्ठा कर झोले में डाल रहे थे। मेरे मन में उत्सुकता हुई यह जानने को कि आखिर ये लोग इन चीजों का क्या करेंगे? मन कर रहा था कि जाकर उनसे पूछ लूं मगर फिर सोचने लगा कि क्या इनसे बातें करना ठीक होगा? मैले-कुचले से कपड़े पहने हुए इन लोगों को शायद हमारे जैसे अच्छे और साफ़-सुथरे कपड़े पहने हुए लोगों से बातचीत करना अजीब-सा लगें। समाज के इस वर्ग के लोगों के लिए शायद ही कोई सोचता है ! ये लोग भी शायद अपने ही दुनिया में खोए रहते हैं ! बाहरी दुनिया से इनका शायद कोई मतलब नहीं ! इन सब बातों को सोचते-सोचते न जाने मेरे कदम चलकर उनके पास कब पहुंच गए मुझे पता ही नहीं चला। पास जाते ही वे लोग पहले मुझसे कुछ दूर जाने लगें मगर मेरे बुलाने पर वो दोनों मेरे पास आकर खड़े हो गए। मैंने उनसे मेरी उत्सुकता के बारे में पूछा और बड़े ध्यान से उनका जवाब सुनने लगा। उन्होंने कहा कि कचरे की पेटी से वो लोग जो भी इकट्ठा करते हैं वो सारे चीजें किसी दूसरे व्यक्ति को जाकर दें देते और वह व्यक्ति उन्हें चीजों को वज़न करके पैसे देते हैं। उन पैसों से ही उनका गुज़ारा होता है। लेकिन आजकल कचरा ले जाने के लिए घर-घर म्यूनिसिपैलिटी की गाड़ी आने लगी है जिससे हमारा नुकसान हो रहा है। सड़क पर रखें कचरे की पेटी में कचरा फेंकना काफ़ी कम हो गया और वैसे भी आजकल सड़कों पर कचरे की पेटी बहुत कम हो गया है। शायद देश को स्वच्छ बनाने के लिए यह कदम उठाया गया है। मगर हम क्या करें कोई यह तो बताओ, हम तो उन कचरों पर जीते हैं, कचरा अगर ज्यादा से ज्यादा इकट्ठा नहीं कर पाएंगे तो दो वक्त की रोटी कैसे जुटा पायेंगे? हमारे लिए कौन सोचेगा? कौन हमें रोटी-कपड़ा-मकान दिलवाएगा?
अब मेरी उत्सुकता और बढ़ गई जब मैं उनके पूछे गए सवालों के जवाब के बारे में सोचने लगा। मगर इस उत्सुकता का मेरे पास कोई हल नहीं था। मैं भी उनके तरह लाचार था और बिना कुछ बताए वहां से एक असफल बेबस व्यक्ति की तरह वापिस घर लौट आया। रात भर सोचता रहा कि आखिर क्या इनके जीवन का कोई मूल्य नहीं, क्या इनके पूछे गए सवालों का किसी के पास कोई जवाब नहीं.......!!!