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हकीकत और कुछ !

हकीकत और कुछ !

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हैदराबाद जाने वाली रेलगाड़ी थोड़ी ही देर में स्टेशन से निकलने वाली थी। प्लेटफार्म पर कोलाहल बढ़ता जा रहा था। बहुत मुश्किल से दो लोग रेल डिब्बे के अंदर जा सके और अपनी जगह पर बैठ गए। गाड़ी चल पड़ी आहिस्ता-आहिस्ता।

धरणि थोड़ी साँस लेने के बाद आराम से चारों ओर देखने लगी। कुछ लोग खाना खाने में मग्न रहे तो कुछ लोग मैगजीन पढ़ने में। वो भी खाने की डिब्बा खोलने वाली ही थी। इतनी देर में सामने बैठे हुए एक आदमी की आवाज सुनकर उसकी ओर देखी।

वह बहुत कुतूहल से पूछ रहा था, "मेम ! आप बुरा नहीं माने तो मैं एक बात पूछूँ ! आप धरणि है न ! विशाखपट्टणम में आंध्रा यूनिवर्सिटी में 1971 बेच की स्टूडेंट है न ! अंग्रेजी डिपार्टमेंट की ?"

धरणि एकदम चौंक पड़ी ! उस आदमी की शक्ल ध्यान से देखने लगी। कुछ जाना पहचान सा लगा मगर एकदम याद नहीं आया। सोचने लगी एक पल के लिए।

वो आदमी बोलने लगा, "मैं रामेश्वर हूँ ! याद आया !"

धरणि एकदम विचलित और हैरान होकर उस आदमी को ताकती रह गई।

"आप ! रामेश्वर ... रामू .. रामू .. !" कह दिया आश्चर्य चकित होकर।

सिर हिलाया रामेश्वर हँसते हुए। थोड़ा समय लगा धरणि को अपने आपको संभालने में।

पचास साल के बाद उस तरह की अचानक मुलाकात दोनों के दिलों में तूफान मचा दिया। एक पल के लिए सब कुछ भ्रम सा भी लगा। दोनों के बीच खामोशी छाने लगी। बहुत देर तक दोनों के बीच सन्नाटा फैला रहा। दिल ही दिल में सोचने लगे कि दो साल में दोनों के बीच किस तरह दोस्ती बढ़ गई, कितने अरमान थे शादी के बंधन में एक होने की सोचे, मगर रामेश्वर के परिवार के लोग किस तरह बहुत दहेज मांगे और किस तरह धरणि के बाप ने दहेज देने का इंकार कर दिया, किस तरह दोनों में हिम्मत नहीं रही, बड़ों के खिलाफ जाने की और किस तरह दोनों की जिन्दगी की राह हमेशा के लिए अलग हो गई। दोनों के मन में कई सवाल घंटी की तरह गूंजने लगे।

आखिर धरणि ही मुँह खोली, "आप कहा रहते हैं ?"

" यहीं ! हैदराबाद में ! तिरुपति में कुछ काम पे जा रहा हूँ। आप ?"

"मैं भी तिरुपति जा रही हूँ। मेरी बहन रहती है वहाँ।" बहुत देर तक दोनों के बीच फिर सन्नाटा फैलता गया। कब की खत्म हुई अधूरी कहानी को खोदने की हिम्मत दोनों में किसी में भी न रही मगर धरणि के मन में कई सवाल उठने लगे। फिर पूछ ही लिया।

"आपके परिवार में सब ठीक है ? आपके बीवी बच्चे .."

रामेश्वर तुरंत जवाब दिया।

"जी, बिलकुल ठीक, दो लड़कियाँ। शादी हो गई। अमेरिका में रहते। मैं नाना भी बन चुका। आप के परिवार में ? आपके पति, बच्चे सब ठीक है न ?"

धरणि एकदम जवाब दी, "बिलकुल ठीक-ठाक ! पति इंजीनियर। एक ही लड़का। दिल्ली में रहता। दो बच्चे उसको। "बाद में दोनों फिर चुप हो गए। आगे कुछ बातचीत करने का मन नहीं लगा दोनों क।

बहुत रात हो गई। सब यात्री लोग सोने की तैयारी में लगे रहें। रामेश्वर और धरणि अपनी-अपनी बर्थ पर सोने के बंदोबस्त में रह गए। बहुत रात तक अपने-अपने खयालों में रह गए, दोनों घायल पंछियों की तरह।

देखते-देखते सुबह हो गई। गाड़ी तिरुपति पहुंच गई। काफी भीड़ दिखाई दे रही थी स्टेशन पर। लोग उतरने लगे अपना सामान इकट्ठे करते हुए। रामेश्वर और धरणि भी अपना सामान लेकर चल पड़े बाहर। एक-दूसरे को अलविदा कहकर अलग-अलग राह पर निकल गए। ऑटो में बैठने के बाद सोचने लगी धरणि, रामेश्वर के बारे में कि दहेज की लालच में किस तरह उसको इंकार किया रामेश्वर के परिवार वालों ने। किस तरह निरादर सहना पड़ा, किस तरह आशा की ज्योति मिट गई, किस तरह जिन्दगी अधूरी कहानी बन गई । ये सब सोचकर रामेश्वर पर गुस्सा भी आया। अपनी जिन्दगी की हकीकत और रुलाने लगी।

रामेश्वर भी सोचने लगा किस तरह दहेज के चक्कर में उसके परिवार के लोग और खुद भी किस तरह अपनी जिन्दगी को बर्बाद कर दिया। बहुत दर्द महसूस हुआ दिल में। धरणि के साथ बिताए हुए दिन बार-बार याद आने लगे, सताने लगे। जिन्दगी की अधूरी कहानी हँसने लगी उस पर।

मगर दोनों को एक बहुत कड़वी हकीकत जो दोनों की जिन्दगी से खेली, उसकी असलियत का पता ही नहीं चला उन दोनों को जीवन भर ! और किसी को जीवन साथी बनाने का मन नहीं लगा तो दोनों अविवाहित ही रह गए ! ये कड़वी हकीकत हमेशा के लिए गुप्त रह गई !


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