बहाना !

बहाना !

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एक दिन अमला के सब बच्चे आमंत्रित किए गए अपनी पुरानी हवेली में। सब की शक्ल पर गहरा दर्द छाया हुआ। अमला बिस्तर पर पड़ी हुई बहुत बुरी हालत में। सब पलंग के चारों ओर इकट्टे हो गए। घर का माहौल बहुत गंभीर रहा। एक तरह का अजीब सन्नाटा फैला हुआ चारों ओर।

बड़ा बेटा सुधीर बहुत भावुक स्वर में कहने लगा, "अम्मा ! चार दिन पहले क्यों नहीं खबर भेजी ? हम तुरंत आते थे न।"

अमला कुछ नहीं बोली। प्यार भरी बड़ी-बड़ी आँखों से देखती रह गई। वात्सल्य कूट-कूट कर भरा हुआ था उन बूढ़ी आँखों में।

बड़ी बहू ने भी कुछ उसी तरह बोल दिया।

बड़ी बेटी वसुंधरा तो रोने लगी माँ की चारपाई पर बैठकर। अमला उस के सिर पर हाथ रख कर सहलाने लगी। वसुंधरा का पति मौन खड़ा रह गया।

दूसरा बेटा शेखर बहुत मुश्किल से रोक रहा था अपने आंसू। साथ में उसकी बीवी खड़ी होकर सब की ओर देखती रह गई। तीनों परिवारों के बच्चे गुमसुम रह गए।

घर में कामकाज संभालने वाली नौकरानी ने चाय नाश्ते का बंदोबस्त किया मगर कोई खाने पीने की मनोदशा में नही थे। कुछ रिश्तेदार कुछ आसपास के लोग भी शामिल हुए। थोड़ी देर के बाद अपने अपने घर चले गए। अमला का छोटे भाई भास्कर वहीं रह गया उस दिन।

चिकित्सक आकर कुछ दवाई लिखकर चला गया।

अमला के तीनों बच्चे बहुत देर तक समझाते रहे अपनी माँ को, उन में से कोई अपने साथ शहर ले जाने को। मगर अमला नहीं मानी। अपनी ज़िद पर अडेी रह गई। साफ-साफ कह दिया कि वहाँ से नहीं हिलने का।

रात भर सब सदस्य बेचैन रहे। किसी को ठीक से न भूख लगी न नींद आई। आगे क्या करना कुछ उपाय नहीं सूझा।

आखिर में एक अंतिम निर्णय पे आ गए कि चार दिन सब वहीं रहकर किसी न किसी तरह माँ को समझाके, उन में से एक परिवार के साथ ले जाने को।

सब को बार बार याद आ रही थी माँ की कमजोर शक्ल मगर सबकी अपनी-अपनी मजबूरी, विवश कर दिया। तीनों परिवार तीन शहरों में बस गए।

बड़ी बहू और बेटी अमला के कमरे में सो गए रात को।

सुबह उठकर देखे तो अमला चारपाई पर दिखाई नहीं दी। दोनों घबराके सब को जगा दिया एकदम।

धड़कते दिलों को काबू में रख कर सब पीछे की रसोई घर में झांक कर देखे तो वहाँ की दृश्य देख कर अचेतन हो गए !

अमला भजन गाती हुई फटाफट चाय बना रही थी ! बहुत खुशी में कहने लगी, "आओ बच्चों, गरम-गरम चाय पीले। इलायची वाली चाय आप सब को पसंद है न !"

सब चौंक कर देखते रह गए। किसी के मुँह से हाँ नहीं निकली। अमला का छोटे भाई हँसते हुए कहने लगा,

"देखो बच्चों, दीदी को बहुत मन किया आप सब को इकट्ठे देखने को। हम दोनों मिलकर इस बहाना ढूँढने में मजबूर हो गए। वैसे कितनी बार कोशिश की दीदी ने आप सब को एक साथ घर में दो तीन दिन हँसते खेलते खुशी खुशी देखने को ! मगर कोई आए कभी ? "

सब निशब्द रह गए। कुछ बोलने की हिम्मत नहीं रही। बस, अपनी माँ की ओर देखते रह गए।

चाय के प्याले देती हुई आहिस्ता कहने लगी अमला, "क्या करूँ, आप सब को देखने का बहुत मन किया। कई बार कहा आप सब से एक बार आकर मिलने को मगर नहीं आए, इसलिए ऐसा करना पड़ा। पता नहीं कब बुलावा आयेगा भगवान से। मेरे मरने के बाद आकर मिलने से क्या फायदा ? आप सब तो देख सकेंगे मेरे शरीर को। मगर मैं ... ? " ये कहते कहते रो पड़ी अमला सब बच्चों के गले लगाते हुए।


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