हार-जीत
हार-जीत


कहने वाले गलत कहते है कि जिंदगी में हार-जीत के कोई मायने नहीं है। हार, हार होती है और जीत, जीत। हर किसी को जीत का ही आशीर्वाद दिया जाता है। अगर हार-जीत का कोई मतलब नहीं है, तो फिर हार की दुआएं क्यों नहीं दी जाती। विनिंग मेडल हारने वालों के गले में क्यों नहीं डाला जाता। फेल होने वालों को अगली क्लास में क्यों नहीं एडमिशन दिया जाता। किसी भी एग्जाम की टॉपर लिस्ट क्यों बनाई जाती है। टॉपर का ही चयन क्यों होता है। सबसे निचले पायदान पर आने वाले को जॉब क्यों नहीं दी जाती। शब्दों की भ्रमित दुनिया सबको अच्छी लगती है। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कुछ भी कहा जाए। कभी-कभी परिस्थितिवश मौके पर एक्सपर्ट फेल हो जाता है, तो दुनिया उसको फेलियर ही मानती है। ऐसा क्यों?
ऐसा इसलिए कि हार होती है, जीत, जीत। एक्सपर्ट भी खुद के जीवन को दांव लगाते हुए आत्महत्या जैसा कदम उठाते है और निपट गंवार भी सफलता के फलक को छू लेता है, यह अलग बात है। माना जाता है कि दुनिया से जाते वक़्त खाली हाथ ही जाना है। तब दुनिया में हार-जीत को लेकर इतना बवाल क्यों। क्योंकि हार-जीत कभी एक हो नहीं सकते। हार के डर से मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा और चर्च के चक्कर काटे जाते है, जीतने पर ख़ुशी में जाना तो होता ही होगा। हार के बाद जीत की राह तो सभी देखा करते है, लेकिन जीतने के बाद हार का दंश कौन सहन करना चाहता है। तब ऐसे में कैसे कहा सकता है कि जिंदगी में हार-जीत के कोई मायने नहीं होते। जबकि जिंदगी में हार और जीत का ही मतलब होता है।