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Anita Sharma

Fantasy Inspirational

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Anita Sharma

Fantasy Inspirational

हाँ मैं मेकअप लगाती हूँ!

हाँ मैं मेकअप लगाती हूँ!

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वर्षा बहुत ही प्यारी सी, सुन्दर सी बहू जिसे सजकर रहना बहुत पसन्द है। वो हमेशा अपने आप को मेंटेन कर के रहती है। ऐसा कभी नहीं होता कि उसकी बिन्दी टेढ़ी हो या कान का टॉप्स उलटा हो। उसकी साड़ी हमेशा तरीके से पिनअप होती। उसने अपने टाइम को ऐसे सैट कर रखा था कि सुबह कि भागम-भाग में भी वो नहाने के बाद सबसे पहले खुद को तैयार कर ही लेती। एक बच्चा होने के बाद भी उसने अपने इस शौक को कम न होने दिया।

वर्षा जब दूसरी मम्मीयों को यूँ ही अस्त व्यस्त देखती तो उसे बड़ा ही बुरा लगता। उसे लगता कि जाकर बोल दे कि अपने लिये भी थोड़ा टाइम निकाला करें। पर उसे ऐसा करना उचित न लगता ।

वर्षा की सास भी उसके बन- ठन कर रहने से खूब चिढ़ती। जब भी वो तैयार होकर अपने बच्चे को स्कूल से लेने जाती तो वो उसे पीछे से जरूर टोकती

"अरे बहू यहीं नुक्कड़ तक तो जाना है। उसमें इतना सजने की क्या जरूरत है। "


वर्षा कुछ न बोलती बस शान्ति में मुस्करा कर चली जाती। मोहल्ले की कुछ महिलायें जो हमेशा बाहर ही पाई जाती वो भी उसे देख कर भौंहें मटका - मटका उसकी तरफ इशारे करती। और हीरोइनी बोल खी..खी.. कर के हंस देती। पर वर्षा पर इस सब का कोई फर्क न पड़ता। वो तो खुश होती की कम से कम उसे नोटिस तो किया गया ।

जब लॉक डाउन हुआ तो घर में सभी को लगा की अब तो वर्षा का मेकअप कम हो ही जायेगा। क्योंकि जब बाहर जाना ही नहीं है, तो श्रृंगार किसे दिखाना??

 

पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वर्षा घर में रहते हुये भी उतनी ही व्यवस्थित रहती।

वैसे तो वर्षा के पति निलेश को इससे कोई परेशानी नहीं थी। पर जब वो लॉकडाउन में घर पर रहा। और हमेशा अपनी माँ के मुंह से वर्षा के टिप टाॅप रहने के ताने सुनता तो उसे भी कहीं न कहीं लगने लगा कि वर्षा कुछ ज्यादा ही तैयार रहती है।

और आज तो उसने सीधे वर्षा से जाकर बोल ही दिया........


"वर्षा तुम कितना तैयार होती हो। ये रोज - रोज मेकअप कौन लगाता है? अभी तक तो ये था कि तुम्हें बच्चे को लेने स्कूल जाना है। पर अब तो इस लॉकडाउन में घर से बाहर भी नहीं निकलना । फिर इतना मेकअप किसे दिखाना है ?"

आईने के सामने खड़ी वर्षा के हाथ पति की बातें सुन लिपस्टिक लगाते - लगाते वही रुक गये। और अपना मुँह निलेश की तरफ करके बोली......

"किसे दिखाने से क्या मतलब है ??

मुझे अच्छा लगता है इसलिये लगाती हूँ।

 

जिसे देखो वो यहीं क्यों कहता है, कि किसे दिखाना है? या किसे दिखाने जा रही हो? अरे मैं खुद अपने आप में अच्छी लगूँ बस इसलिये बन संवर कर रहती हूँ।

और आप मर्दों को ये क्यों लगता है कि हम औरतें आप लोगों के लिये तैयार होती है। कभी किसी औरत के मुँह से सुना है कि "आज में सुन्दर लगूंगी ताकि मेरी सहेली के पति को मैं अच्छी लगूं। नहीं न?


अरे आप लोगों के पास वो नजर ही कहाँ होती है, कि हमारे काजल और आई लाइनर की बारीकियों को देख सको। ऐसी पारखी नजर तो बस हम महिलाओं के पास है।

हमें अगर किसी की लिपस्टिक का कलर भा जाये तो मार्केट की दर्जनों दुकानें छान डालते है। और उस कलर के दर्जनों शेडस में से वही शेड ढूंढ निकालते हैं।

अभी तक मम्मी जी और मोहल्ले की औरतें बोलती थी। तो मुझे खुशी होती थी कि वो हमें देख रही है। बुराई कर के ही सही पर वो मेरे मेकअप की बारीकियों को देखती है। यहीं तो हर औरत चाहती हैं, कि मैं सब से सुन्दर लगूं। पर वो ये कभी नहीं चाहती की कोई भी मर्द उसे घूरे। इसलिये अपने आप को ज्यादा भाव देना बन्द करो।

और अब से मुझे या किसी भी महिला को सजा संवरा देखकर ये मत सोचना कि वो किसी मर्द को दिखाने के लिये तैयार हुई है। बल्कि इस बात पर ध्यान देना कि सब महिलाएं, लड़कियां एक दूसरे की चीजों को देखकर या तो तारीफ कर रही होगी या बुराई। हाँ मैं मेकअप लगाती हूँ। पर किसी मर्द को दिखाने के लिये नहीं। बल्कि खुद की खुशी के लिये लगाती हूँ।

वर्षा ने इतना बोलकर अपनी लिपस्टिक लगाई। और निलेश को यूँ ही सोचता छोड़ वो कमरे से बाहर आ गई।


जब भी हम अच्छे से बन ठन कर रहते है। या यूँ ही कहीं जाते है ,तो अक्सर कहीं न कहीं से सुनने को मिल ही जाता है कि "पता नहीं इतना सज के किसे दिखाने जा रहीं है। पर सच तो यही है कि हम किसी को दिखाने के लिये नहीं बल्कि अपनी खुशी के लिये तैयार होते है।




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