rekha shishodia tomar

Drama

5.0  

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Drama

हालात बदले हैं भाई नहीं

हालात बदले हैं भाई नहीं

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"आ जाओ मेरे शेर शेरनी, चढ़ जाओ मामा के कंधों पर।."खुशी से आयुष ने अपने भांजे और भांजी का स्वागत किया।

"मामा जी , बताइए इस बार क्या surprize है हमारे लिए ?"

"हम्म वो तो surprize हैं, मौके पर मिलेगा।"

तभी सिया अंदर आई"हां भाई जबसे भांजे भांजी आए है, बहन को तो देखता भी नहीं"

"अरे नहीं दी पहले तुम हो।आखिर ये भी तो तुमसे ही है।"

तभी सिया और आयुष की माँ आई और बोली"तुम दोनों बहन भाई का रूठना मनाना हो गया हो तो आराम से बैठ कर बात कर लो, मैं नाश्ता ले आती हूं"

फिर दोनों भाई बहन जो शुरू हुए घण्टो तक होश ही नहीं रहा

बातें स्वास्थ से शुरू होती हुई बॉलीवुड, राजनीति और अनन्त विषय से होती हुई खत्म हुई

दोपहर के खाने का समय हुआ, बच्चो को भूख लगने लगी थी।

सिया किचन में गई वहाँ कुछ नहीं था।वो बाहर आई माँ को आवाज देकर बोली"माँ खाने में क्या है ?भूख लगी है।

माँ बाहर निकली"आज तो कुछ नहीं बनाया"

"क्यो ?

"अपने भाई से पूछ।"

सिया और बच्चो दोनो ने मुस्कुराते हुए आयुष की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा।

आयुष बोला"तो मेरे प्यारे बालको और उनकी माता जी आज हम जाएंगे वाटर वर्ल्ड, उसके बाद शहर के सबसे महंगे रेस्टोरेंट में खाना।रात को मूवी देखते हुए वापस आएंगे।"

तभी आयुष का भांजा अतुल बोला"और मामा जी रात को फिर भूख लगी तो ?

"तो बेटा जी फिर बाहर खाएँगे।"

आयुष की माँ कुछ कहना चाहती थी पर कुछ सोचकर चुप हो गई

हमेशा यही होता है, आयुष को अपनी इकलौती बहन से बहुत लगाव है, और जबसे अतुल और जाह्नवी ने जन्म लिया तब से तो उसका सोना जागना बस उन्ही की बातों से शुरू हो उन्ही की बातों पर खत्म होता हैं।

उसकी ठीक ठाक जॉब है, पिता भी कमाते है।घर मे किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है।

इसलिए उनके आने पर वो दिल खोलकर खर्च करता है।उन्हें बाहर घुमाने ले जाना, महंगे गेम्स महंगे खिलौने दिलवाना।

माता पिता के खूब से अच्छे से लेने देने पर भी अपनी तरफ से पैसे देना, ब्रांडेड कपड़े दिलवाना उसे पसन्द है।

आयुष की माँ समझती थी कि ये चीज़े आगे चलकर दिक्कत करेंगी। पर बहन भाई के बीच मे किस तरह इस मुद्दे को लेकर बात करे उन्हें समझ नहीं आता था।

अगले साल आयुष की शादी हो गई।सुघड़ सुशील भव्या दुल्हन बन घर आई।

भव्या ने आकर सब अच्छे से सम्भाल लिया।सब लोग खुश थे।

पहली बार भव्या के सामने बच्चो की छुट्टियां हुई।भव्या ने पूरे दिलोजान से उनका स्वागत किया।

जो भी जैसा भी उसे बनाना आता वो पूरे मन से बना कर खिलाती।

एक बार रात के खाने के लिए आयुष ने मना कर दिया और सब लोग बाहर रेस्टोरेंट गए।

वहाँ पर बच्चो ने महंगी महंगी चीज़ों का आर्डर किया और फिर वो फिनिश भी नहीं कर पाए। इस बात पर आयुष और सिया खूब हंसे, पर भव्या को ये सब ठीक नहीं लग रहा था।।

आयुष की माँ भी सब समझ रही थी, पर क्या करे ये नहीं समझ पा रही थी।

घर आकर भव्या को एक बार लगा कि उसे बात करनी चाहिए, पर ये सोचकर चुप हो गई कि इस बात को लेकर उस घर तोड़ने वाली बहु का लेबल ना लग जाए।

धीरे धीरे समय बिता, आयुष को जुड़वां बच्चे हुए, प्रेगनेंसी से लेकर डिलिवरी तक टेस्ट दवाइयां और फंक्शन के खर्चो ने बजट बिगाड़ दिया।

समय के साथ परिवार बढ़ा तो खर्चे बढ़ते गए।इस कारण आयुष अपनी बहन और उसके बच्चो के लिए पहले की तरह खर्च नहीं कर पा रहा था।

जब उसे बच्चो की किसी ख्वाहिश को नजरअंदाज करना पड़ता तो उसे बहुत दुख होता।

जैसे एक बार सिया आई और बच्चो ने 2-3 जगह बताई जहाँ वो घूमना चाहते थे। लेकिन आयुष को कमरे में A C लगवाना था क्योंकि उससे पहले वो ज्यादा गर्मी लगने पर मम्मी पापा के कमरे में सो जाता था, पर अब पत्नी और बच्चो के बारे में भी सोचना था।साथ ही दोनो बच्चो के vaccination भी होने थे।

सिया को आयुष के मना करने पर दुख हुआ उसे लगा अपने बच्चे होने के कारण आयुष बदल गया।

समय बीतता गया।आयुष को दोनो बच्चो का एडमिशन प्ले में कराना था, जब अबकी बार बच्चो ने आते ही आयुष से कहा"मामा जी इस बार कोई बहाना नहीं, हमे उसी रेस्टोरेंट में खाना खाना है, सबसे महंगा वाला" आयुष के असमर्थता जताते हुए कहा "बच्चो आपको जो भी खाना है बताओ मैं घर पर ही ले आता हूं।"

ये सुनकर बच्चे मुँह फुलाकर चले गए और सिया भड़क गई"क्या आयुष तेरे बीवी बच्चे क्या हुए तू तो बिल्कुल बदल गया।"

"पहले कपड़े, फिर खिलौने, फिर बाहर घूमाना अब बाहर एक टाइम का खाना भी नहीं खिला सकता ?"

आयुष असहाय सा खड़ा रहा, क्या जवाब देता। भव्या भी गुमसुम एक कोने में खड़ी हो गई।

आयुष की माँ ने सिया का हाथ पकड़ उसे बैठाया और पूछा"एक बात बता सिया, दामाद जी का इतना अच्छा काम चल रहा है फिर तो एक साल से जॉब क्यो करने लगी। ?

"मम्मी बात मत बदलो, जॉब क्यो करने लगी ?अरे गृहस्थी बढ़ गई है, बच्चे बढ़े है तो खर्चे भी तो बढ़े है।"

"अब उतनी कमाई में घर नहीं चलता।"

"माँ फिर बोली"और यहाँ देख गृहस्थी बढ़ी और कमाई कम हो गई। तेरे पापा रिटायर हो गए।कितने खर्चे तो हमारी उम्र बढ़ने के साथ हमारे बढ़ गए।

"सिया बेटा हालात बदले है भाई नहीं।" गुस्से में सिया बोल तो गई थी लेकिन माँ की बात सुनकर और अपना खुद का जवाब याद कर उसे आगे कुछ समझने की जरूरत नहीं थी।

वो उठी और बोली"क्या मुँह लटका कर खड़ा है, जब तो हमारी आदत इतनी खराब कर दी अब थोड़ा बहुत तो बुरा लगेगा ही।सब तेरी गलती"

आयुष हंसते हुए बोला"हाँ माँ सब मेरी गलती, तूने आज तक अपनी गलती मानी है जो आज मानेगी"

सिया ने बच्चो को बुलाया और बोली"तुम लोगो को पता है मामी डोसा बहुत अच्छा बनाती है, चलो आज मामी की हेल्प करे और डोसा खाते है।"

दोनों बच्चे खुशी से उछलते हुए बोले, "यिप्पी बहुत बढ़िया" बच्चों के चेहरे से होती हुई मुस्कान सबके चेहरे पर फैल गई।


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