हाईवे
हाईवे
रामधन अपने छोटे से दुकान पर बैठे रोड पर आते जाते हर वाहन को देखते रहता की कोई रुके और वह कुछ कमा ले I
असल में रामधन एक पढ़ा लिखा बेरोजगार व्यक्ति है जिसका उम्र उम्मीद का चप्पल घिस जाने के कारण एक लम्बी दूरी अपने में समेट लिया I अब हर तरफ निराशा के तेज आँधी के प्रहार से उसका चेहरे का रौनक सुर्ख हो गयाI कभी उसके माँ बाप ने उसके शादी के लिये सपने देखे पर जमाना इस कदर आगे निकल गया है कि कोई बेरोजगार युवक को लड़की देने तैयार न हुआI
अपने गरीबी के चादर में लेटे वे चिंता के सागर में गोते लगाते आखिर कुछ दिनों में ही उन दोनों ने अपनी शरीर रूपी पहचान भी खो दिए I
अब रामधन अकेला पड़ गया कुछ पड़ोसियों ने सलाह दिया कि जीवन से हार मत मानो शादी कर घर बसा लो I
रामधन ने उनके पथ प्रदर्शन में सपनों की लंका में अपनी जीवन साथी ढूँढता और उसके अरमान जहां जहां जाता सोने की लंका जल उठती I
बड़ी मुश्किल से एक लड़की से शादी हुई पर घर कैसे चले कुछ दिन बाद समस्या धीरे धीरे विकराल रूप लेते गया,
उसके ससुराल वालों ने उसे नकारा कहते हुए अपने बेटी को साथ ले गए और कह गए यदि कुछ काम न किया तो कभी लेने मत आना I
रामधन दो चार माह करते साल भर दुकानों में काम किया सबेरे जाना रात दस तक वापस आना फिर खाना बनाना I उसने उन कामों को छोड़ अन्य काम के लिए सोच करने लगा पर क्या करे कुछ समझ नहीं आता, आखिर सब बात की जड़ रुपया ही तो है I वह सोचते हुए कई दिन गुजार दिए, रह रह कर अपने पत्नी को याद करता क्या कोई इस तरह से भी छोड़ कर जाता है क्या? फिर अपने आप को दोषी ठहरा आँखों में आए आंसुओं को पोंछ लेता I
फिर मन में एक ख्याल आया कि वह तो बड़ा, भजिया बढ़िया बना सकता है क्यों न रोड किनारे एक खुद की होटल खोला जाए I कहीं से बेसन, उड़द की व्यवस्था कर एक कुटिया बना कर लकड़ी के पट्टे को ईंट पर रख बैठने की व्यवस्था किया I वह खुद बनाता, ख़ुद परोसता I किसी अन्य की आवश्यकता न थी I पर उसके कुटिया नुमा होटल में लोग इक्के दुक्के ही रुकते कारण हम सब जानते हैं I वह ज्यादा देता, स्वादिष्ट बनाता, चटनी घर के लहसुन, मिर्च, धनिया से बनाता जो खाता तारीफ करता पर आधुनिकता के इस दौर में किसी कुटिया होटल में खाना बहुतों के शान के खिलाफ होता है I हम भारतीय अपने शान को बरकरार रखने में कोई कसर नहीं छोड़ते I भले ही पूरा शरीर गल जाये पर ऊपर चेहरे पर मुस्कराहट कभी नहीं छोड़ता है I रस्सी जल जाए पर ....आगे शायद आप खुद जानते हैं I
खास कर वे लोग जो कभी कभार शहर जाते हैं किसी बड़े होटल के स्वाद लेने में नहीं चूकते आलीशान बिल्डिंग फर्नीचर जो उनके सपने में सम्भव न हो ,ये जानते हुए कि उस प्लेट के व्यंजन में पूरे आलीशान व्यवस्था का भार जुड़ा हुआ है क्यों न मिठास लगेगा जो दस का सैकड़ा हजारों में बस पेश करने का तरीका ही आपको नवाब होने का एहसास दिला देता है I एक विक्रम सिंहासन की तरह भले ही उतरते ही सब गायब हो जाए I
रामधन का होटल हाईवे के किनारे था लोग तेज रफ्तार में हवा से बातें करते निकल जाते I रामधन देख कर अपने यहां रुकने की निगाह से इंतजार करता, एक आशा लिए की कब उसका दुकान चल पड़े I और वह अपने संगिनी को ला कर कह सके की वह अब निठल्ला नहीं I
रामधन की निगाह अब जब आप गुजरेंगे तो आप को भी ताकेगी। फैसला आप के हाथ है कि फाइव स्टार में रुकेंगे या रामधन के पास I