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Laxmi Tyagi

Romance Tragedy Inspirational

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Laxmi Tyagi

Romance Tragedy Inspirational

गऊ

गऊ

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देखिए ,भाई साहब ! हमारी बिटिया 'गऊ' है ,बिल्कुल गऊ ! जैसा आप कहेंगे ! वैसा ही करेगी ,घर के सभी कार्य जानती है। घर को बखूबी संभाल लेगी लड़की की माँ श्रुति की खूबियाँ समझाते हुए बताती है। 


 लड़की को देखने आये ,कुछ मेहमान, जिनमें लड़के की माँ ,बहन ,लड़का और अन्य रिश्तेदार भी हैं। सामने मेज पर मिठाई ,लड्डू ,नमकीन और घर में बनी कई चीजें रखीं हैं। उनमें से लड्डू को उठाकर मुँह में रखते हुए लड़के की माँ बोली -क्या तुम्हारी बेटी को,सिलाई भी आती है। 


अभी उम्र ही क्या है ?सोलहवें में चल रही है ,अभी तो इसे घर के कार्य ही सिखाये हैं।सिलाई -कढ़ाई भी सीख ही लेगी। 


एक घरेलू महिला को सिलाई ,कढ़ाई और बुनाई भी तो आनी चाहिए ,मुँह बनाते हुए वो बोलीं -वैसे आपकी बिटिया हमें पसंद है किन्तु अभी विवाह और सगाई में समय है ,तब तक इसे अन्य कार्य भी सिखा दीजिये। 


जी,ये रसगुल्ला लीजिये। आपका बेटा क्या करता है ?


इसने बी.ए. किया है,और नौकरी कर रहा है ,पूरी बीस हजार तनख्वाह पाता है ,श्रीमती चंदा देवी गर्व से बोलीं। 


ये आपकी बेटी....... उनके वाक्य पूर्ण होने से पहले ही ,वो बोल उठीं -ये अभी पढ़ रही है ,आठवीं में है।अभी बालक ही तो है। अब आपकी बेटी आ जाएगी तो इसको भी साथ मिल जायेगा।


दो -तीन साल बाद , इसके लिए भी लड़का देखना होगा। 


जी..... वैसे इसको ,इसका भाई पढ़ाने के लिए ही कह रहा है। 


श्रुति का विवाह हो जाता है, जाते ही घर का सम्पूर्ण कार्यभार उस पर आ जाता है , मैंने अपने जीवन में बहुत कार्य कर लिया ,अब बहु के आने पर थोड़ा आराम करूंगी। वह खुशी-खुशी, घर की साफ -सफाई ,कपड़े धोना से लेकर सभी कार्य ठीक से संभाल लेती है। धीरे-धीरे घर के सभी कार्यों में पारंगत भी हो जाती है। उसकी ननद अभी भी पढ़ रही है जो 18 साल की हो चुकी है। उसके घर वालों ने, उसके विवाह की कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई, श्रुति तीन बच्चों की मां भी बन चुकी है।


 विवाह के पश्चात इसकी नंद आती है और घर में आराम करती है। जब तक श्रुति में जान थी ,तब तक वह खुश होकर, प्रसन्नता पूर्वक सभी कार्य कर रही थी। उसे लगता था -वह इस घर की मालकिन है किन्तु समय के साथ -साथ उसका भ्र्म टूटने लगा। यह घर उसका है, किन्तु उसे किसी भी बात में शामिल नहीं किया जाता और न ही ,वह कोई निर्णय ले सकती है।बस उसे घर कार्य ही करने होते हैं। उसने अपनी बीती जिंदगी में झांककर देखा- तो क्या था ? उसकी जिंदगी में, अपने लिए समय नहीं था, वह कब खुश होकर अपने पति के साथ घूमने गई ?उसे मालूम ही नहीं ,वह कब अपने लिए जी ,वह नहीं जानती? ''हां, इतना अवश्य जानती है, कि वह इस घर की मालकिन बनकर आई थी, किंतु नौकरानी बनकर रह गई। अब उसे धीरे-धीरे एहसास होने लगा कि इस जिंदगी से उसने क्या पाया ? जब उससे काम नहीं होता ,तो सास के ताने ,पति के व्यंग्य और ननद के उलहाने सुनने को मिलते। 


उसकी भी अपनी एक बेटी है , उसने अपनी बेटी को भी पढ़ाया- लिखाया और अपने पैरों पर खड़ा होने के लायक बनाया। उसके पति चाहते थे ,कि इसका शीघ्र विवाह हो जाए किंतु श्रुति ने इसका विरोध किया। यह तो 'जीवन चक्र ''जो आज बहु है कल सास भी बनेगी। ''इसी तरह चलता रहता है। जो कार्य श्रुति के साथ हुए हैं, श्रुति के कारण ही ,उनमें परिवर्तन हुआ है।


 आज श्रुति के घर भी,उसकी बेटी को देखने के लिए, लड़के वाले आए हैं।


 बेटा !तुम कहां तक पढ़ी हो ?


मैंने 'एमएससी 'किया है और 'पीएचडी' कर रही हूं। 


खाना बना लेती हो। 


जी ,मम्मी ने कभी खाना बनवाया ही नहीं, कह देती थी-तुम अपनी पढ़ाई करो ! 


पढ़ाई तो अच्छा है किंतु एक बेटी को घरेलू कार्य भी तो आने चाहिए। बहन जी ! यह आपने सही नहीं किया, इसे घर के कार्य भी नहीं सिखाए, पेट क्या किताबों से भरेंगे ? 


जब यह नौकरी करेगी तो, रोटी क्यों बनायेगी ? श्र

ुति ने उनसे कहा। श्रुति के पति उसका चेहरा देख रहे थे कि यह क्या बोल रही है ? क्या यही संस्कार इसके माता-पिता ने इसे दिए हैं ? और यही संस्कार मेरी बेटी को भी दे रही है , कितनी जिद्दी हो गई है ?उसको घूरते हुए, सोच रहे थे। 


आप अपने बेटे के लिए बहू ले जा रहे हैं, या एक नौकरानी ! श्रुति की बेटी ने उनसे प्रश्न किया। मैं उस घर की बहू बनकर आना चाहती हूं।


 किंतु घर के कार्यों से, कोई नौकरानी नहीं बन जाता , अपने परिवार के लिए करना तो हर बहू का कर्तव्य है। चलिए जी ! हम यहां रिश्ता नहीं करेंगे , इन्होंने बेटी को क्या संस्कार दिए हैं ? हमारे जमाने में कह देते थे -बेटी 'गऊ ' है , यह तो अभी से इतनी जुबानजोरी कर रही है, आगे तो हमारे बेटे का जीवन नर्क बना देगी। क्या आजकल की बेटियों को इसीलिए पढ़ाया जाता है, कि आगे बहू बनकर, दूसरों का जीवन नर्क बना दें ? अच्छा हुआ ? हमें पहले ही मालूम हो गया। पता नहीं ,हमारे बेटे की जिंदगी कैसी कटती ? कहते हुए वह लोग उठकर चले गए।


 श्रुति के पति उसे घूरते हुए बोले- क्या तुमने अपनी बेटी को यही सब सिखाया है ? तुम्हारे पिता तो कहते थे कि उनकी बेटी गऊ है ,तब क्या हुआ ?


अब उसके सींग निकल आए हैं, अब वह अपनी आत्मरक्षा स्वयं करने लगी है। कब तक मैं अपने मायके के संस्कारों और गऊ होने के ताने सुनती रहूंगी ? तीस वर्षों से तो यहाँ रह रही हूँ ,यहाँ का भी तो कुछ प्रभाव पड़ेगा या नहीं। वह' गऊ 'किसी पर निर्भर नहीं रहेगी, वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करेगी की कसाई से उसे कौन बचाने आएगा? श्रुति अपने पति से बोली। 


तुम पर किसने अत्याचार कर दिए ?व्यंग्य से बोला। 


किसने नहीं किये , मैं 30 वर्षों से आपके साथ रह रही हूं , क्या कभी तुमने, मुझसे प्यार के दो बोल बोले ? कभी मेरी भावनाओं को समझने का प्रयास किया। अरे !'इतने सालों तक तो कुत्ते को भी पालते हैं उससे भी प्यार हो जाता है , मैं तो तुम्हारे परिवार की सेवा कर रही थी।'' गऊ ही बनी हुई थी, क्या तुमने उस गऊ को जो तुम्हारे खूंटे पर बंधी थी , उसके लिए कभी सोचा-कि इसमें भी जान है ,इसे भी भूख -प्यास लगती होगी। सारा दिन काम कर -करके थक जाती होगी। इसकी भी इच्छा होती होगी, कुछ पल अपने लिए जी ले ! तुम्हारी मां ने तो मुझे नौकरानी ही समझ लिया था, सुबह उठते ही, रसोई में चाय पानी के पश्चात, घर की साफ सफाई, फिर कपड़े, ये ही कार्य मैं 30 साल से कर रही हूं ,जमाना कितना बदल गया है ?किंतु तुम लोगों की सोच नहीं बदली। 


मैं मानती हूं, एक बहू का फर्ज है घर की जिम्मेदारियां को निभाना, अपने सभी कर्तव्य पूर्ण करना किंतु क्या उस परिवार के लोगों ने उसे महत्व दिया, जो एक बहू को मिलना चाहिए था। उसकी कभी भावनाओं को समझने का प्रयास किया। अरे मैं भी तो किसी की बच्ची थी,तुम मुझे भी तो पढ़ा सकते थे किंतु मुझे गृहस्थी में झोंक दिया। तुम तो पढ़े -लिखे थे, तुमने भी मुझे नहीं समझा। अब जब वह गाय अपनी रक्षा खुद करने लगी है, तो तुम्हें दर्द होता है, कि इस गाय के सींग क्यों निकल आए ?


कितना भी कमजोर जानवर हो, जब अपने पर पड़ती है, तो वह भी हिंसक हो जाता है, अरे हम लड़कियां तो ऐसे ही एक खूंटे से खोलकर ,दूसरे खूंटे पर बांध दी जाती हैं, किंतु तुमने और तुम्हारे परिवार ने , कभी हमें समझ ही नहीं और गलती तुम्हारी भी नहीं है, तुम्हारी मां एक औरत होकर भी ,एक औरत का दर्द ना समझ सकी इसीलिए मैंने अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनाया। वह भी कार्य करेगी, किंतु सम्मान के साथ ! जिस कार्य में, उसके लिए प्यार के दो बोल होंगे ,अपनापन होगा, जो उसकी भावनाओं को समझेगा ,उससे प्यार करेगा। मैं एक से एक व्यंजन बनाकर थक जाती थी किसी ने मुझसे यह नहीं कहा -'आज तुमने बहुत अच्छा खाना बनाया है ,'वरन खाकर झूठे बर्तन छोड़ कर उठकर चले जाते थे कभी सोचा है, मुझ पर क्या बीतती होगी ? उनकी छोडो !तुम तो मेरे पति हो !इसलिए आजकल की बेटियां, अब गऊ नहीं रहेंगी । वे स्वयं ही अपना स्थान चुनेंगीं ,उन्हें कहाँ जाना है और कहां नहीं ?कहां उनका सम्मान होगा ?


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