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Dinesh Dubey

Classics

4  

Dinesh Dubey

Classics

गुरु पर विश्वास

गुरु पर विश्वास

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एक बार एक गुरुजी सत्संग करके अपने आश्रम जा रहे थे। उनके बहुत सारे भक्त और शिष्य थे, उनके चाहने वालो की कमी नही थी ,कई तो उन्हे भगवान तुल्य मानते थे।

रास्ते में अचानक गुरुजी का मन चाय पीने का होने लगा था।

उन्होंने अपने ड्राइवर से कहा""

सारथी, हमे चाय पीने का मन हो रहा है ।”

ड्राइवर ने गाड़ी एक 5 स्टार होटल के आगे खड़ी कर दी।

गुरुजी ने कहा*“नहीं आगे चलो यहाँ नहीं।”

थोड़ा आगे जाने के बाद ड्राइवर ने गाड़ी फिर किसी होटल के आगे खड़ी कर दी।

गुरूजी ने वहां भी पीने से मना कर दिया।

काफी आगे जाकर एक छोटी सी ढाबे जैसी एक होटल आया।

उसे देख गुरूजी ने कहा-“यहाँ रोक दो। यहाँ पर पीते हैं चाय।”

ड्राइवर सोचने लगा कि अच्छे से अच्छे होटल को छोड़ कर गुरुजी ऐसी जगह चाय पीएंगे।

पर वो कुछ नहीं बोला।क्योंकि गुरु जी का मन ऐसा ही था वह कभी कभी रास्ते पर चाय बनाने वाले के यहां रुककर चाय पीने लगते थे ,और उन्हे देख वहां उनके बहुत से शिष्य जमा हो जाते थे,और उन्हें प्रणाम करने लगते और गुरुजी सभी को आशीर्वाद देकर आगे बढ़ते थे।

ड्राइवर चाय वाले के पास गया और बोला-

“ भाई दो अच्छी सी चाय बना दो।”

उसी समय एक ग्राहक दुकानदार को पैसे देता है तो दुकानदार ने पैसों वाला गल्ला खोला तो उसमे गुरूजी का स्वरूप फोटो लगा हुआ था।

गुरूजी का स्वरूप देख कर ड्राइवर ने दुकानदार से पूछा-

*“तुम इन्हें जानते हो, कभी देखा है इन्हें?”*

यह सुन दुकानदार ने कहा-

*“मैं इन्हे देखने जाने के लिए पैसे एकत्र किए थे। जो कि चोरी हो गए, और मैं नहीं जा पाया। पर मुझे पता नही क्यों यकीन है कि गुरूजी मुझे यही आ कर मिलेंगे।”*

यह सुन ड्राइवर ने कहा-

“ठीक है तुम जाओ और चाय उस कार मैं दे कर आओ।"

यह सुन दुकानदार ने बोला-

“अगर मैं चाय देने के लिए चला गया तो कहीं फिर से मेरे पैसे चोरी न हो जायें।”

ड्राइवर ने कहा-

“चिंता मत करो अगर ऐसा हुआ तो मैं तुम्हारे पैसे अपनी जेब से दूंगा।”

मेरी चाय यहीं पर दे दो मैं यही चाय पियूंगा और तुम्हारे गल्ले को भी देखूंगा।

दुकानदार चाय कार मैं देने के लिए चला गया।

वहां चाय देने के लिए गाड़ी में देखा तो उसने गुरुजी को देख तो हैरान हो गया। उसकी आंखो से आसूं बहने लगे वह हिचक हिचक कर रोने लगा। जिसके लिए अभी उसने कहा था की वह यहीं दर्शन देने आयेंगे वह तो उसके सामने ही थे।

उसकी आँखों में आंसू देख गुरू जी ने कहा-“तूने कहा था कि मैं तुम्हे यहीं मिलने आऊं और अब मैं तुमको मिलने आया हूँ तो तुम रो रहे हो।”

गुरु के प्रति इतना प्यार था उस आदमी के अन्दर की उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

जब मन सच्चा हो और इरादे नेक हो तो भगवन को भी आना पड़ता है, अपने भगत के लिये, गुरु तो सिर्फ भगवान का सेवक है.।

गुरु जी गाड़ी से उतरकर उस शिष्य को अपने गले लगाकर आशीर्वाद देते हैं। शिष्य भाव विभोर हो गुरु जी को जबरन दुकान में ले जाता है और विधिवत उनकी पूजा करता है।


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