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Dinesh Dubey

Inspirational

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Dinesh Dubey

Inspirational

महामाया

महामाया

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एक बार की बात है ,

दो साधु थे, एक हनुमान भक्त अखंड ब्रह्मचारी दूसरा शाक्त तांत्रिक । दोनों का एक यात्रा में साथ हो गया। ब्रह्मचारी बात बात में माया की आलोचना करता, गुलाम की लौंडी कहता।

तांत्रिक साधु रोकता समझाता है कि *" मित्र माया का अपमान न करो, उपहास न करो। महामाया की कृपा बिना उद्धार असंभव है।

पर ब्रह्मचारी जी नहीं मानते थे।

तांत्रिक साधु ने कहा*" किसी दिन महामाया आपको ठीक समझायेगी तब समझ में आयेगा।

एक दिन किसी गांव से बाहर एक मंदिर पर दोनों साधु ठहरे थे।

गांव के लोग आये दोनों साधुओं को देखा। कुछ लोगों ने ब्रह्मचारी जी को बहुत ध्यान से देखा। कुछ देर में कुछ महिलाएं और पुरुष आये।

उन्होंने ब्रह्मचारी जी से कहा*" बेटा बहुत हुआ अब घर चलो। बाबा ही बनना था तो विवाह नहीं करवाते। अब यह वेश त्याग दो अपने वास्तविक उत्तरदायित्व का पालन करो। ब्रह्मचारी जी की बोलती बंद हो गई।

उन्होंने तांत्रिक साधु से कहा*" बचाओ महाराज।

तांत्रिक ने कहा कि*" मैंने तो पहले ही कहा था कि महामाया का उपहास न करो अन्यथा वह ऐसा फंसायेगी कि सारा ज्ञान भूल जाओगे। अब भोगो में कुछ नहीं कर सकता।

गांव वाले ब्रह्मचारी जी को रस्सी से बांध कर घर ले गए।

ब्रह्मचारी जी को एक कमरे में बंद कर दिया। रात में बहू को भी उसी कमरे में भेज दिया। बाबाजी बहुत रोये गाये अपने ब्रह्मचर्य की दुहाई दी। पर उनकी एक नहीं चली। आखिर एक रात्रि में ब्रह्मचर्य खंडित हो ही गया।

बाबाजी ने भी नीयती के निर्णय को स्वीकार कर लिया। एक पुत्र के पिता बन गये। खेती किसानी भी करने लगे। तीन चार वर्ष बाद बाद तांत्रिक साधु ब्रह्मचारी जी की स्थिति देखने उसी गांव में आया।

उसने देखा कि ब्रह्मचारी जी एक बच्चे को कंधे पर बैठाये हल बैलों के साथ मार्ग पर चले आ रहे हैं।

तांत्रिक साधु ने कहा कि*" ब्रह्मचारी जी देखा माया का खेल।

ब्रह्मचारी जी रुआंसे हो गये कहां तो कठिन तपस्या करके मोक्ष मार्ग पर चल रहे थे कहां गृहस्थी के जंजाल में फंस गए।

ब्रह्मचारी जी ने तांत्रिक साधु से प्रार्थना की*" महाराज हमें इस जंजाल से मुक्त होने का उपाय बताओ।

तांत्रिक साधु ने कहा*" जिन महामाया का उपहास किया उन्हीं से प्रार्थना करो। वे करुणा मय हैं शीघ्र कृपा कर देंगी।

अपनी पत्नी को महामाया का स्वरूप मानकर पूरी श्रद्धा से मुक्ति की प्रार्थना करना तो ही मुक्त हो पाओगे।

बाद में ब्रह्मचारी जी ने ऐसा ही किया। वह अपने पत्नी के चरणों में गिर पड़े तो वह भयभीत हो उठी,।

उनकी तथाकथित पत्नी भी द्रवित हो गई, उसने अपने सासु ससुर को समझाया कि *" बाबूजी इनका मन गृहस्थी में नहीं लगता है। यह यहां प्रसन्न नहीं रहते अतः इन्हें यहां जबरदस्ती रोक कर दुखी बना कर रखना ठीक नहीं है। इनसे हमारे यहां संतान हो ही गई है। तो अब इन्हें इनके तपस्या मार्ग पर जाने की अनुमति दे दी जाए।

बहू के बहुत समझाने के बाद अन्ततः सासु ससुर पारिवारिक जन मान गए। और ब्रह्मचारी जी को पुनः साधु होकर घर से जाने की अनुमति मिल गई।

कुछ दिन बाद पुनः दोनों साधुओं का मिलन हुआ,।

तांत्रिक साधु ने पूछा*" कहो महाराज अब तो महामाया की लीला समझ में आयी।

ब्रह्मचारी जी बोले *" क्षमा करे महाराज मैं ही भूलकर कर रहा था ,मुझे महामाया का उपहास नहीं करना चाहिए था। मेरे इष्ट भगवान राम के साथ महामाया सीता जी सदा विराजती हैं। अब मैं कभी महामाया और उसके स्वरूपों का उपहास नहीं करूंगा।

अगर मां महामाया का उपहास करेंगे तो मां चंडिका कहने वाले के जीवन में भी महामाया चंडिका बन कर प्रवेश करेगी तब सब समझ में आ जायेगा।



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