Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Pallavi Goel

Inspirational

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Pallavi Goel

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गुरु कृपा

गुरु कृपा

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"आज मैं विद्यालय की प्रधानाचार्या के पद पर कार्यरत हूं ।सभी मुझे एक सफल महिला के रूप में देखते हैं। मेरे छात्र मेरे इज्जत करते हैं ।शहर के अनेक विद्यालय मेरे विचारों का अनुसरण करते हैं। आज इन सभी के लिए यदि मैं किसी को धन्यवाद करना चाहती हूं। पूरी दुनिया में एक ही व्यक्ति है, जिसने मेरी अजीब सी चलती हुई जिंदगी में एक ठहराव ला दिया और सही दिशा दिखा कर उस मुकाम तक पहुंचाया। जहां आज मैं खड़ी हूं ।"

सीमा ने अपना कॉलर माइक सही करते हुए कहा ,"मैम क्या आप हमें उस उस महान व्यक्ति से परिचित कराना चाहेंगी ?"

 प्रधानाचार्य शाहीन खान ने धीरे से कहा," जी जरूर, मैं अवश्य इस महान शख्सियत से आपका परिचय कराना चाहूंगी। जिसने गुमनाम रहकर भी न केवल मुझे वरन् मुझ जैसी अनेक लड़कियों को सही राह दिखाई और सही मुकाम तक पहुंचाया। 

वह सावधान होकर बैठ गई और बोलना शुरू किया 

मैं एक छोटे से गांव की मुस्लिम परिवार की लड़की थी। पाँच भाइयों और तीन बहनों में मेरा स्थान आठवां था।जुलाहे की लड़की थी ।बस खाने- पीने भर की कमाई थी। घर में सभी भाई- बहन ,अब्बा और अम्मी सभी काम करते ,तब जाकर दो वक्त की रोटी जुट पाती थी।लट्ठे उठाने और रखने का काम मेरा था। आँगन से सूत का लट्ठा उठाकर दरवाजे के बाहर रखना होता था। जहां अब्बा बुनाई का काम करते थे। सड़क के उस पार ही गाँव का एकलौता स्कूल था। स्कूल से आता हुआ बच्चों का सम्मिलित स्वर मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैं वही पिताजी के साथ दरवाजे पर बैठकर घंटों स्कूल की तरफ देखा करती। उस समय मैं कोई पाँच साल की रही होऊँगी ।सामने टीन शेड में कक्षा लेते मास्टर सीताराम मुझे देख कर हँस देते और मैं उनको देखकर हँस देती। निर्दोष हँसी का यह क्रम महीनों तक यूं ही चलता रहा एक दिन सड़क पार करके मैं टीन शेड के के नीचे जाकर बैठ गई और अनायास ही उनका पढ़ाया पाठ दोहराने लगी। मास्टर जी मुझे देख कर मुस्कुराए। फिर तो यह रोज का ही क्रम हो गया जैसे ही मेरा मन करता मैं कक्षा में बैठ जाती ।वहीं से अब्बा पर नजर रखती ज्यों ही उनको लट्ठे की जरूरत होती ,मैं लाकर पकड़ा कर फिर बैठ जाती ।अब्बा हँस देते ।सरकारी स्कूल में फीस की कोई आवश्यकता नहीं थी ।मेरी लगन ही काफी थी ।मेरा पढ़ने का चाव देखकर मास्टर सीताराम ने मुझे कुछ पुस्तकें दे दी थी।

सीमा;:अम्मी और भाइयों की तरफ से भी आप को विरोध का सामना करना पड़ा ?

 "जी हां , अन्य भाई बहनों की तरह अम्मी तो यही चाहती थी कि मैं घर रहकर घर का काम करूँ। उन्हें मेरा विद्यालय जाना पसंद नहीं था । उनहोंने घोर विरोध किया अबअब्बा की भी उनके सामने एक न चली। फिर मास्टर सीताराम ने उन्हें जाकर क्या समझाया कि वह दाखिले के लिए राजी भी हो गईँ और उन्होंने मुझे कभी कुछ कहा भी नहीं ।" 

 मास्टर सीताराम ने मेरा सहयोग किया। आठवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में मैंने पूरे गाँव का नाम रोशन किया । शहर के नवोदय विद्यालय में मेरा दाखिला करवा दिया। वहाँ से मैं आगे बढ़ती गई। गाँव से मास्टर सीताराम का आना-जाना लगा रहा ।वह हमेशा मेरा साथ देते रहे। आज मैं जो हूं उनकी शिक्षा ,सदाचार और उपकारों की वजह से हूं।"

 सीमा ने कहा,क्या आपने कभी अपने गुरु जी से पूछा कि उन्होंने आपकी अम्मी से क्या कहा?

शाहीन जी ने हौले से मुस्काते हुए कहा,"जी हाल में ही मेरे बहुत जोर देने पर उन्होंने बताया था ।उनहोंने अम्मी से एक बहुत सरल प्रश्न का उत्तर माँगा था। यदि अम्मी के अम्मी-अब्बू उन्हें पढ़ाई करने देते तो वह क्या करती?"

अम्मी की अधूरी हसरतों ने उत्तर के रूप में मेरा पूरा जीवन सँवारा दिया। "

रिपोर्टर सीमा ने कहा ,"आपकी जीवन गाथा तो समाज के लिए प्रेरणा है ।मास्टर सीताराम जैसे निस्वार्थ गुरु और आप जैसी परिश्रमी शिष्याओं के कारण ही समाज रोशन है।"


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