गोद
गोद


कार के पहिए की गति के साथ ही आशा के विचार भी सफर करते हुए सात साल पीछे पहुंच चुके थे। शादी होकर जब वह घर आई थी सास और दोनों ननदों ने हाथों हाथ स्वागत किया था। छह महीने हंसी-खुशी बीते फिर एक दिन सास से हँसते हुए कहा ,"बहू अब बस एक पोता मेरी गोद में दे दो।" आशा शरमाती हुई धीरे से अपने कमरे में चली गई।साल बीतने पर सास ने उसे तिखार कर कहा ,"बस ,बहुत हो गई प्लानिंग! अब कर ही लो।" दो-तीन साल के बाद पाँच साल भी बीत गए और सास की गोद पोते से वंचित ही थी।
पीर, मजार, मंदिर, मस्जिद,और डाॅक्टर। कुछ भी उन्होंने नहीं छोड़ा धीरे-धीरे सात साल बीत गए। एक दिन बड़े विश्वास के साथ एक मुट्ठी किशमिश लाईं और माथे लगाते हुए आशा को देते हुए बोली। "तीन साल बाद मेरे गुरुजी शहर आए हैं। उन्होंने बिना समस्या बताए ही मुझे कहा, जा ,अपने बहू को खिला दे।" बहू ने आज्ञा का पालन किया और माथे लगाकर उसे खा लिया। दूसरे दिन सवेरे ही आशा को उल्टियां होने लगी।गुरु जी की जय करते हुए कहा," देखा कितना जल्दी परिणाम आया।जब डॉक्टर घर आए तो पता चला।यह फूड प्वाइजनिंग थी। एक हफ्ते तक बिस्तर पर पड़ी आशा बीते सात सालों में हुए सारे टोने-टोटके को याद करती रही। माताजी का मन रखने के लिए वह यह सब कर रही थी लेकिन असलियत उसे पता थी।बहुत इलाज के बाद भी पति उसे मां बनाने में सक्षम नहीं थे।
सारे डॉक्टर जवाब दे चुके थे पति- पत्नी का असीम प्रेम और विश्वास आशा को सास की सभी जायज- नाजायज बातें सहने में मदद करता था पर अब पानी सिर से ऊँचा उठ गया था। बीमारी के बाद जब आशा ने बिस्तर छोड़ा तो कार की चाबी उठाकर हल्की मुस्कान के साथ कहा ,"माँ मैं आती हूं।" सास उसका चेहरा देख रही थी।
एक झटके के साथ ही कार और आशा के विचारों को भी विराम मिल गया।'निसर्ग 'अनाथालय को देखते ही उसने बगल की सीट पर बैठे पति को देखा। दोनों के चेहरे की मुस्कान और गहरी हो गई।