गुरु दक्षिणा
गुरु दक्षिणा
चम्पा ने माॅ॑ कांता और पिता रामलाल के साथ सौम्या के घर की घंटी बजाई। जब तक दरवाजा खुला, चम्पा की आंखों के सामने से पिछले वर्षों की सारी घटनाएं एक चलचित्र की भांति चलने लगी। ऐसा लगा मानो कल की ही बात है, जब चम्पा पहली बार इस घर में आई थी।
चौदह साल पहले....
सौम्या के स्कूल से आते ही घर में मानो जान आ जाती है। हो भी क्यों नहीं? माला और सुधीर की इकलौती बेटी है , अपनी सौम्या। आज भी स्कूल से आई और घर में घुसते ही बैग स्टडी टेबल पर रख कर कपड़े बदलकर हाथ धोए। फिर सौम्या शोर मचाती हुई माला के पास रसोईघर में पहुॅऺची। ।
"मम्मी, देखो मैंने कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।"
माला खुशी से बोली, " शाबाश मेरी बेटी! शाम को स्पेशल पनीर टिक्का, मलाई कोफ्ता और खीर बनाउंगी। फिर बाहर जाकर आइसक्रीम खाएंगे।"
सौम्या खुशी से बोली, " मज़ा आ जाएगा, मम्मी"
तभी बालकनी में से उसे एक लड़की कपड़े उतारती दिखी।
सौम्या ने मम्मी से पूछा," मम्मी, यह कौन है?"
माला बोली," बेटा, यह चम्पा है, अपनी कांता बाई की बेटी।"
कांता बाई उनके घर बर्तन, झाड़ू-पोछा, डस्टिंग, कपड़े धोने का काम करती है। तीन महीने हुए हैं कांता बाई को उनके घर काम करते हुए।
पहले वाली बाईजी अपने गांव गई थी। फिर वो वापस नहीं आई। दो-तीन महीने उसका इंतजार कर कांता बाई को तीन महीने पहले ही काम पर रखा है।
सौम्या ने माला से कहा," मम्मी, चम्पा तो अभी बच्ची है तो काम क्यों कर रही है?"
माला बोली," बेटा, कांता का पति बाहर गांव काम के सिलसिले में गया है तो घर पर अकेले छोड़ने से बेहतर कांता उसे अपने साथ ले आई। कुछ दिन चम्पा रोज़ाना आएगी।"
फिर ठहरकर बोली," कांता ने ही सूखे कपड़े उठाने को बोला होगा।"
माला सौम्या का खाना परोसने लगी।
सौम्या ने कांता बाई को आवाज़ लगाई," आंटी सुनो।"
कांता बाई रसोई में बर्तन मांज रही थी, वह दौड़ी चली आई।
कांता बोली," बेबी, आपने बुलाया?"
"आंटी, चम्पा से काम क्यों करवा रही हो? वो अभी बहुत छोटी है। " सौम्या बोली
"बेबी, मैंने नहीं कहा उससे, चम्पा खुद ही से सूखे कपड़े उतार कर लाई। ।"कांता बोली
सौम्या ने चम्पा को अपने पास बुलाया और पूछा, "चम्पा तुम कितने साल की हो? तुम्हें लिखना पढ़ना आता है? तुम स्कूल जाती हो?"
चम्पा ने बताया, " दीदी मैं स्कूल कभी नहीं गई हूॅऺ। मैं दस साल की हूॅ॑। मुझे पढ़ना लिखना नहीं आता है।
"आंटी, आप इसे पढ़ाई-लिखाई की जगह काम करवा रही हैं। ये तो गलत है।" सौम्या ने कहा
"बेबी, यह अपनी मर्जी से छोटा-मोटा काम कर देती है ।" कांता ने बताया
इतने में माला खाना लेकर आई। कांता से कहा," तुम और चम्पा भी खाना खा लो।"
"आंटी , आप और चम्पा, खाना खाकर मेरे रूम में आना।" सौम्या बोली
खाना खाने के बाद चम्पा और कांता सौम्या के रूम में गईं।
सौम्या बोली, " चम्पा। तुम पढ़ना चाहती हो? मुझसे पढ़ोगी?"
चम्पा खुश होकर बोली,",दीदी , आप सच में मुझे पढ़ाएंगी?"
सौम्या बोली," आंटी , आप शाम को जब काम करने आती हों तब रोज़ाना चम्पा को भी साथ लाना। मैं उसे पढ़ना लिखना सिखाऊंगी।"
कांता बोली," बेबी, आपकी पढ़ाई का हर्ज़ा तो नहीं होगा।"
सौम्या बोली," आंटी, वो मैं ध्यान रखूंगी।"
कांता के जाने के बाद माला ने सौम्या से कहा," सौम्या, अपनी पढ़ाई का ख्याल रखते हुए चम्पा को पढ़ाना।"
सौम्या ने माला की चिंता दूर करते हुए कहा," मम्मी आप निश्चिंत रहिए, मैं नवीं कक्षा में हूॅ॑। सब मैनेज कर लूंगी।चम्पा छोटी हैऔर वो पढ़ना चाहती है। पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो जाए तो उसे कितना अच्छा लगेगा। फिर अगर देश का हर शिक्षित व्यक्ति एक अशिक्षित को पढ़ना-लिखना सिखाए तो वह देश की साक्षरता दर बढ़ा सकता है।"
माला हां में हां मिलाते हुए बोली,"मैं तुम्हारे साथ हूॅ॑, सौम्या। तुमने बिल्कुल सही कहा बेटा। एक लड़की अगर शिक्षित होती है तो समझो पूरा एक परिवार साक्षर हो जाता है।"__________________________________________
बस फिर क्या था, उसी दिन से सौम्या चम्पा को पढ़ाने लगी। शुरु में बहुत परेशानी आई। चम्पा को कुछ भी पढ़ना लिखना नहीं आता था। शुरुआत हिन्दी वर्णमाला से कराकर मात्रा बताकर, धीरे धीरे शब्दों को बोलना सिखाया। फिर लिखना और चम्पा का दिमाग तेज था तो वह तीन महीने में छोटे छोटे वाक्य भी लिखने लगी।
अब सौम्या ने उसे गिनती सिखाना शुरू किया, पहले उंगली पर सिखाया। १० तक की गिनती के बाद नम्बर लिखने सिखाए। तीन महीने में इतना सीखा चम्पा ने।
अब सौम्या ने उसे अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया। यहां अंग्रेजी के अक्षर सिखाने में सौम्या के पसीने छूट गए। हिम्मत न हारते हुए उसने धैर्यपूर्वक चम्पा को अंग्रेजी वर्णमाला बोलनी और लिखनी सिखाई। छह महीने में चम्पा अंग्रेजी के शब्द लिखने और बोलने लगी। आगे के चार महीने में चम्पा हिन्दी के वाक्य लिखने , पढ़ने लगी। १०० तक की गिनती सीख गई। अंग्रेजी के छोटे वाक्य लिखने और पढ़ने लगी। उसको कुछ पुस्तकें भी दीं ताकि घर में भी अभ्यास कर सके।
एक साल में चम्पा को सौम्या ने इतना सिखाकर पढ़ने और लिखने के योग्य बना दिया।
दूसरे साल में उसी गति से अंग्रेजी, हिन्दी के साथ गणित के जोड़, घटा, गुणा, भाग के सवाल करना सिखाया। चम्पा का पढ़ने में इतना मन लगने लगा कि वह घर जाकर भी पढ़ती रहती, गणित के सवाल हल करती।
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तीसरे वर्ष में मम्मी पापा से कहकर एक सरकारी स्कूल में चम्पा का दाखिला पांचवी कक्षा में क्या दिया। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग में होने के कारण चम्पा की फीस माफ हो गई।
जब भी चम्पा को पढ़ाई में कोई परेशानी आती वह अपनी सौम्या दीदी से पूछा करती। एक बार शिक्षक दिवस पर चम्पा अपनी सौम्या दीदी की मदद से शिक्षिका भी बनी और उसने छोटी क्लासेज को पढ़ाया।
कांता और उसके पति रामलाल ने भी सौम्या और उसके मम्मी पापा का बहुत आभार माना कि जिनकी बदौलत चम्पा पढ़ी और आगे बढ़ती जा रही है। उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी उसको पढ़ाने में। अच्छे नम्बरों से दसवीं और बारहवीं पास कर चम्पा ने बी ए किया।
सौम्या अब पढ़ कर डाॅक्टर बन गई है।
उसने चम्पा को सिविल सर्विसेज के लिए प्रेरित किया।
चम्पा ने पूरे मनोयोग से पढ़ाई और तैयारी की।
चम्पा ने सिविल सर्विसेज की लिखित परीक्षा पास की। मौखिक परीक्षा अर्थात् साक्षात्कार उसने अपनी मातृभाषा हिंदी में ही दिया।
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इतने में दरवाजा खुला। दरवाजे पर सौम्या थी। चम्पा ने उसके और माला के पैर छूकर आशीर्वाद लिया।
चम्पा की आंखों में खुशी के आंसू आ गए।
वह बोली," दीदी, आपकी मेहनत और आशीर्वाद से मैं पास हो गई हूॅ॑। पहले बीस में मेरा नाम आया है। धन्यवाद शिक्षक दीदी! "कहते हुए चम्पा सौम्या के पैर छूने झुकी, बोली,"Thank you Teacher didi!"
सौम्या ने बीच में उसे रोककर गले लगा लिया और बोली,"चम्पा, सब तुम्हारी लगन का नतीज़ा है। आज मैं बहुत खुश हूॅ॑।"
चम्पा ने हृदय से आभार मानते हुए कहा, " सौम्या दीदी, आप मेरी गुरु हों। आपने मुझे अनपढ़ को पढ़ाया, लिखाया। हर समय मेरी सहायता की । जब मैं समझ नहीं पाती थी तब आपने मुझे बिना क्रोध करे धैर्यपूर्वक समझाया। आप भी तब बच्ची थीं। आपने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा। मुझे आप मिली, यह मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट बना। आप को गुरु दक्षिणा देने की मेरी कोई हैसियत नहीं है, छोटे मुंह बड़ी बात है। परंतु मैं आपको गुरु दक्षिणा देना चाहती हूॅ॑।"
सौम्या सुनकर बहुत भावुक हो गई और वह बोली," चम्पा, तुमने अपनी मेहनत, लगन और परिश्रम से यह मुकाम हासिल किया है। अगर तुम मुझे कुछ देना ही चाहती हो तो मुझे तुमसे गुरु दक्षिणा में जो चाहिए वो दोगी?"
चम्पा ने सौम्या का हाथ पकड़कर कहा," दीदी, आप आदेश दीजिए।"
सौम्या ने ठहरकर कहा," चम्पा, मुझसे वादा करो कि अपने जीवन में तुम एक बच्चे या बच्ची को साक्षर करोगी। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद करोगी। यही तुम्हारी गुरु दक्षिणा होगी।"
चम्पा ने सौम्या के पैर छूकर कहा," दीदी, मैं ऐसा जरूर करूंगी। मैं अच्छी तरह जानती हूॅ॑ कि एक बच्चे को साक्षर करने से कितना भला होता है। धन्यवाद शिक्षक दीदी!"
माला बोली, " आओ, मेरी अफसर मैडम चम्पा। चाय नाश्ता भी कर लो अब। ढेरों बधाइयां बेटी तुमको!"
चम्पा हाथ जोड़कर बोली," आंटी जी आपने और अंकल जी ने मेरे लिए जो भी किया उसका ऋण मैं कभी चुका नहीं सकती।"
कांता और उसके पति ने अपने साथ लाई मिठाई से सबका मुंह मीठा कराया और कोटि कोटि धन्यवाद दिया।