Shakuntla Agarwal

Drama

4.9  

Shakuntla Agarwal

Drama

"गुनहगार कौन?"

"गुनहगार कौन?"

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हमारी नयी - नयी शादी हुई थी | शादी के लिये गोवर्धन परिक्रमा की मन्नत माँगी हुई थी | सो हम दोनों पति - पत्नी गोवर्धन परिक्रमा लगाने के बाद जयपुर के लिए बस पकड़ने के लिए बस - स्टैंड पर आये | तो क्या देखते हैं कि बस - स्टैंड पर अथाह भीड़ थी | जैसे - तैसे हमें जयपुर की बस मिली | हम टिकट लेकर बस में चढ़े, तो क्या देखते हैं कि बस यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी | बैठने का तो प्रश्न्न ही नहीं उठता | खड़े होने के लिए भी जगह नज़र नहीं आ रही थी | जैसे - तैसे हम यात्रियों को सरकाते हुए पीछे की तरफ बढ़ते चले गए | हम अपना सामान नीचे रखकर खड़े ही हुए थे कि पीछे से एक लड़के की आवाज़ आयी - "देख सकता हूँ मैं कुछ भी होते हुए, नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे खड़े होते हुए |" 

मन तो किया कि कह दूँ कि - भईया नहीं देख सकता तो सीट देदे, मैं बैठ जाती हूँ | परन्तु कुछ सोचकर मैंने चुप रहना ही उचित समझा | इतने में एक गोरी - चिट्टी औरत बस में चढ़ी और वह पीछे जाने लगी | मेरे पति जो पास ही खड़े थे, कहने लगे - बहन जी! आप पीछे मत जाइये, वहाँ कुछ बद्तमीज़ लड़के बैठे हैं | वह वहीं खड़ी हो गयी | इतने में पीछे से फिर आवाज़ आयी - "ये तो विलायती साँड है", कहकर सब तालियाँ बजा कर हँसने लगे | आगे की सीट से एक औरत उठ कर अपने बैग में से कुछ सामान निकालने लगी | उन लड़कों ने उसे भी नहीं छोड़ा | सीटियाँ बजाने लगे, तालियाँ बजाने लगे और कहने लगे - "ये तो बिन सूँड की हथिनी है" उनके ठहाकों की आवाज़ें मेरे कानों को जैसे छेद रही थी | मेरे पतिदेव ने अटेची को सीट के साइड में लगाकर, साथ बैठे हुए भाई - साहब को खिसकाकर, मुझे वहाँ बिठला दिया | उन बद्तमीज़ लड़कों में से एक लड़का उठा और मेरी सीट पर लगे हुए पाइप पर आकर बैठ गया | मेरे पतिदेव ने कहा - भाईसाहब, ये कोई बैठने की जगह नहीं हैं | तो उस लड़के ने अटेची की ओर ईशारा किया और कहा की ये भी सामान रखने की जगह नहीं है | सभी लड़के ठहाका मारकर हँसने लगे | उन्हें मेरे बैठने से तकलीफ हो रही थी, शायद! मैं अपनी बेइज़्ज़ती तो पचा रही थी, परन्तु मुझसे इनकी बेइज़्ज़ती बर्दाश्त नहीं हुई |

मैं झटके से उठी, लड़के का कॉलर पकड़ा, उसको नीचें खींचा और एक तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया | चलती बस में बैलेंस न बनने के कारण, वह नीचे गिर पड़ा था | तब तक मेरा सैंडल मेरे हाथ में था | मैंने कहा - कोई विलायती साँड, कोई बिना सूंड का हाथी नज़र आ रहा है तुम्हें ? तुम अपने आप को क्या कोई फ़िल्मी हीरो समझते हो ? और मैंने उसको सैंडल जड़ते हुए कहा - कि अगर तुम कहो की मेरे ऊपर थूकों, तो मैं उसके लिए भी दस बार सोचूँगी | और यह कहकर मैंने उसे धक्का दे दिया | जो लड़के तालियाँ बजा रहे थे, ठहाके लगा रहे थे अब उन सब की बोलती बंद थी | इतने में कंडक्टर आया और उसे धक्के लगाते हुए पीछे ले गया | मैंने बस वालों से कहा कि चार - पाँच लड़कों ने पूरी बस को नाच नचा रखा है | औरत की इज़्ज़त यूँ सरे-आम रोंदी जा रही है | और खचाखच भरी बस में सभी बेशर्मी का लिबास पहनें बैठे हैं | 

क्या यही नियति है कि जो औरत पुरुष को नौ - महीने अपनी कोख में रखती है और अपना रखवाला समझती है, "शकुन" वही एक दिन भक्षक हो जाता है ?


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