गुड़िया का ब्याह
गुड़िया का ब्याह
"प्रियंका, आज सांझ को आओगी न? हमारी गुड़िया का ब्याह में? ऐ मुकेस मदन, एकदम छः बजे आ जाना, सरला अपना गुड्डा ले के आएगी, लेट मत हो जाना! मदन तुम मंतर पढ़ देना, सब आता है न? उ गनेस जी वाला और संकर पारवती वाला! और मुकेस तुम अपना गाना वाला टेप ले के आना, हम लोग नाचेंगे भी!" दुर्गा चहकते हुए अपनी गुड़िया की शादी का न्योता अपने सखी दोस्तों को देने आयी थी।
"खाली बुलाओगी की कुछ खिलाओगी भी? नहीं तो हम नहीं आएंगे!" प्रियंका ने जीभ लपलपाते हुए पूछा।
"दीपा दी हलवा बनाई है, किसमिस भी डाली है, एकदम घी में डूबा हुआ है हलवा। और मैया दादी से लुका के कद्दू का बचका भी बना देगी, बताशा और खील तो रहेगा ही। तुम बस आ जाओ!"
दुर्गा फुदकती अपने घर चल पड़ी। दीपक के साथ मिल के उसे सजावट भी करनी थी, दुकान से रंगीन पेपर का झालर और दीवाली वाला पुराना आठ दस दिया रंग के मड़वा पर सजना था उसको।
तीन महीना पहले ही दीपा दी के ब्याह तय हुआ था, घर में रोज मैया, दादी और बाबू शादी ब्याह की तैयारी की बात करते थे, दुर्गा भी सुनती थी, उसका भी बड़ा मन होता था अपनी तरफ से कुछ बोलने का, दीदी की शादी में भोज में हलवा भी चाहिये और सजावट रंगीन झालर का होना चाहये, दादी झिड़क देती थी, "चुप्पे रह, माय के भांति बड़बड़ खाली! इतनीगो परानी ओर हिनका हलवा का भोज चाही। मिले मियां क माड़ नैय, मियां खोजलका चखना!" दादी हवा में हाथ नचा कर बोलती दुर्गा को लेकिन देखती उसकी मैया को!
एक दिन दीपा ने ही बीच का रास्ता निकाला, मचलती रोती रूठी दुर्गा को मनाने के लिये उसने घर भर के गुदरी, फटे पुराने कपड़े जमा किये, और अपना सिलाई बुनाई का बक्सा निकाला और कपड़ों की गुड़िया बनाने लग गयी। सफेद कपड़े के टुकड़ों को इस्त्री कर, उसको को कई आकारों में काटा, एक गोल - चेहरे के लिए, चार लंबे - हाथ पैर के लिए, और एक बड़ा टुकड़ा पेट के लिए बनाया, उनको सिल कर, उसमें बचे हुए कपड़े ठूस दिए, दो कंचो से छाती भी बना दी; बड़ी गुड़िया चाहये थी न, शादी के लायक। काले धागे से गुड़िया के खाली चेहरे पर आंखें, भवें, और लाल धागे से होठ नक्काश दिए, मांग भी उसी लाल रंग से भर दिए। काला कपड़ा ले कर गुड़िया के सर पर सिल दिया, और एक और कंचा छिपा के, जूड़ा बना दिया। फिर सिंदूरी लाल कपड़ों से फटाफट अपने सलीकेदार हाथों से ब्लोउज औए साड़ी भी बना के पहना दिया, कुछ पुराने माले गले में लपेट दिया। सुंदर सी दुल्हन गुड़िया तैयार!
दुर्गा का खुशी के मारे हाल ही कुछ और था, दौड़ के सरला के घर गयी, और उसके प्लास्टिक के गुड्डे से अपनी गुड़िया का ब्याह तय कर दिया। आज वही शादी थी। अपने छोटे भाई दीपक को डांटडपट के पूरा दालान साफ करवाया और झालर वगैरह टंगवा दिए, दीपा दी ने हलवे का कटोरा उसके गुड़िया के बगल में रख दिया, खील बताशे निकाल दिए, मैया ने बचके भी तल दिए, एक कटोरी दीपा के बाबू के लिए निकाल के सारा बचा हुआ दुर्गा को पकड़ा दिया! थोड़े देर में बच्चे आ गए, और गुड्डे की बारात भी! मदन ने मंतर पढ़ना शुरू किया, और मुकेस ने अपना टेप चालू कर दिया। दुर्गा गुड्डे की अम्मा, सरला को हलवा पकौड़े परोस परोस के खिला रही थी, और प्रियंका ने तो पूरे हलवा के कटोरे पर कब्ज़ा जमा लिया। मैया चावल बीनते हुए बच्चों को खेलते हुए देख रही थी, और मुस्कुरा रही थी।
"एक बात बोलें दुर्गा? तुम्हारी गुड़िया है कपड़े की, मेरा गुड्डा प्लास्टिक का, तुम्हारी गुड़िया के तो आंख भी छोटे बड़े हैं, मेरा गुड्डा इतना सलोना, पता नहीं क्या सोच के मैंने हां कर दिया!" सरला मुँह में हलवा और हाथ में बचका पकौड़ा भर कर बोली।
"ऐसे कैसे बोल रही हो सरला! हमारी गुड़िया सुंदर है, और तुम्ही बोली थी की तुमको शादी कराना है अपने गुड्डे का!" अचानक से ही दुर्गा की आवाज़ रुआंसी हो गयी|
"ठीक है, हम कहाँ शादी से मना कर रहे हैं, हमको खाली एक चीज दे दो, वो जो तुम्हारे बाबू कलकत्ता से वो बैटरी वाला मोटर गाड़ी लाये थे, वो हमको दे दो!" सरला भी मचलते हुए बोली
"अरे! उ हमारा मोटर नही है, दीपक का है, हम कैसे दे देंगे वो तुमको!" अब तो दुर्गा के आंखों भी बार आयी थी, मुकेस ने टेप बैंड कर दिया, प्रियंका ने भी हलवा का कटोरा गोदी से नीचे रख दिया।
ये सब चल ही रहा था की बाबू भी घर आ गए, थोड़ा थके, थोड़ा परेशान लग रहे थे, आते ही दीपा के सर पर हाथ फेरा और एक फीकी सी मुस्कान उसकी तरफ फेंक दी। मैया ने देखा और दीपा को पानी लेन बोल, पंखा ले कर बैठी बाबू के पास, "क्या हुआ? इतने घबराये हुए क्यों हो?"
"दीपा की माँ, समधी जी बोले के मेहमान को एक मोटर सायकल चाहये, हमारे पास इतना जमा पूंजी नहीं है, सब तो लगा दिए, घर भी देखना है, अम्मा का दवाई, दुर्गा दीपक का पढ़ाई... कलकत्ता वाला फैक्टरी बंद हो जाने के बाद तुमको पता ही है की हालात ठीक है नही, सोचे थे ये घर अच्छा मिला है दीपा के लिए, आगे से बढ़ कर उही लोग रिश्ता मांगे रहे, अब क्या करे समझ नही आ रहा..." बाबू बोले।
"अरे क्या क्या सोच रहे हैं आप? सबको न्योता दे दिए हैं, जेवर कपड़ा खरीद लिए हैं, हलवाई ठीक हो गया है, और दीपा को क्या बोलेंगे, शादी तो करना ही है!"
"मोटर साइकल नहीं दे सकते हम। औकात के बहुत परे है, दीपा की माँ, बहोत। और बिना मोटर सायकल के ब्याह कराने से मना कर दिए है।" बाबू अपन सर पकड़ कर बोले
मैया ने दालान को तरफ देखा, सरला अपना सुंदर गुड्डा ले के जा रही थी, और दुर्गा अपनी गुदड़ी को बनी गुड़िया हाथ में समेटे, दीपा की गोदी में रो रही थी। दुर्गा की गुड़िया और उनकी गुड़िया दोनों के एक से ही भाग्य।