गुडबाय
गुडबाय
‘अगर मैं कभी जाने लगूँ तो बस मेरा हाथ पकड़ लेना, मैं रुक जाऊँगी’ये बात मैंने तब कही थी जब पहली बार हमारा झगड़ा हुआ था और मैं उससे नाराज़ हो गई थीलेकिन जब असल में दूर जाने का वक़्त था तो हाथ थामना तो दूर हमने इसके बारे में सोचा तक नहींशायद हालात ही कुछ ऐसे थे कि साथ
रहनामुनासिब ना था लेकिन आज भी मैं उस एक पहेली को सुलझा नहीं सकी हूँ.. जो आठ साल पहले मैंने सुलाझाने की कोशिश की थी ‘मूव ऑन’ करके…क्या हम दोनों में वाक़ई कभी प्यार था!क्या हम एक-दूजे को वाक़ई चाहते थे!या महज़ एक आकर्षण भर था! जो दो साल में ख़त्म हो गया…
जिसमें हमेशा साथ रहने की क़समें थीं, शादी का प्लान था, दुनिया घूमने की ढेर सारी बातें थींलेकिन अलग होना क्या ये समाधान थालेकिन मैं ये सब अब क्यों सोच रही हूं, क्या आज भी वो ज़िंदा है मेरे ज़हन में! एक अनछुए अहसास की तरह जो बेहद कोमल है, मात्र छूने भर से धधक उठता है मेरा कोमल मन!हालाँकि उस दिन के बाद ना मुलाक़ात हुई और न ही कभी बात.
ये सच है कि उसने दुबारा दोतीन महीने बाद बात करने की कोशिश की थी, लेकिन मैंने ही कोई जवाब नहीं दिया, फिर तीन महीने के अंदर ही मैंने शादी कर ली. और सब ख़त्म कर दिया… लेकिन शायद हमेशा के लिए नहीं.ख़त्म सिर्फ़ मुलाक़ात हुई थी.
अलग होने को लेकर दोनों ने कभी बात ही नहीं की थी, बस दोनों के रास्ते अलग हो गए थे.इतने अलग कि फिर कभी टकरा ना सकें.लेकिन दिल और दिमाग़ वहीं थे, जहां आठ साल पहले थेगुडबॉय जो नहीं कहा था कभी… आज भी ये सवाल मन में ख़लिश पैदा करता है कि क्या कभी हम दोनों में प्यार था
हम अलग क्यों हुएझगड़ा तो सब करते हैं, फिर हम एक क्यों न हुए क्या कोशिश की कमी थी या मुहब्बत की?
आज हम बिन मिले, साथ हैं, एहसासों में, ख़्यालों में, दुआओं में।

