Inderjeet Kaur

Drama

3  

Inderjeet Kaur

Drama

चिट्ठी

चिट्ठी

1 min
177


नौकरी करते-करते कुछ रोज़ यूं ही निकलते गए। मैंने सोचा क्यों ना पापा को एक खत लिखूं। 

वही ख़त जो वो हमें बचपन में लिखा करते थे, जब सुदूर सरहद पर कहीं नौकरी करते थे और हमें ना तो उनसे मिलने की इजाज़त थी और ना ही बात करने की।

बस एक चिट्ठी आती थी, जिसे खोलने की इतनी जल्दी रहती थी कि ना जाने कौन-सा खज़ाना हाथ लगा हो।

और हम भाई-बहनों में एक होड़ सी लग जाती थी।

लेकिन इस खींच-तान में मां को डर लगा रहता कि कहीं चिट्ठी फट ना जाए और खैरियत की ख़बर का इंतज़ार जो वो करती थीं, कहीं मिल ही न सके। 

इसलिए कभी-कभी डांट भी पड़ जाती, लेकिन चिट्ठी के लिए तो सब कुबूल था।

जब चिट्ठी खुलती तो मैं छीन कर हर बार की तरह कहती थी- ‘इस बार मैं ही पढ़ूंगी।’

‘हर बार तू ही तो पढ़ती है रे, हमें भी कभी पढ़ने दिया कर’

भईया ने कहा।

लेकिन मैं कहां मानती थी क्योंकि क्लास में सबसे अच्छा पाठन था मेरा। 

और पाठ्यक्रम के अलावा ये अलग कुछ पढ़ने के लिए मिलता था।

साथ में लालसा भी होती कि मेरे बारे में पापा ने क्या लिखा है, मुझे इस बार प्यार भरा संदेश दिया है या भूल गए।

क्योंकि फिर पापा के आने पर उनकी अच्छी-सी डांट-डपट भी लगानी होती थी।

मेरे लिए वो चिट्ठी किसी भी बहुमूल्य तोहफ़े से कम नहीं थी। 

एक-एक शब्द पढ़कर ऐसा सुकून मिलता, मानो शब्दों में पापा खुद ही बोल रहे हों।

उनका मुस्कुराता चेहरा, माथे पर चमक, तीखी नज़र सब सामने आ जाते।

हालांकि तोहफा तो नहीं मिलता था, लेकिन वादा ज़रूर होता- 

‘इस बार तुम्हारे लिए ताली मारने वाला भालू लाएंगे, जो तुम्हारे ही इशारे पर नाचेगा।’

और मैं खिलखिलाकर हंस पड़ती। और इसी मुस्कान के साथ एक मायूसी भी होती। 

ना जाने पापा को कब छुट्टी मिलेगी। मिल भी जाती तो भी पता नहीं था कि अचानक कब सरहद पर वापस बुला लेंगे। 

ऐसी ही होती है फ़ौज की नौकरी। 

लेकिन जो सुकून-ए-दिल चिट्ठी से मिलता और अपने पीछे कई दिनों का सुख छोड़ जाता, वो तो किसी कीमती खिलौने में भी नहीं था। 

तो आज पापा के चेहरे पर भी वही मुस्कुराहट देखना चाहती हूं, वही चिट्ठी आने की, एक उम्मीद की और एक सुकून की...


Rate this content
Log in

More hindi story from Inderjeet Kaur

Similar hindi story from Drama