Ashfia Parvin

Abstract

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Ashfia Parvin

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गुब्बारों का झगड़ा

गुब्बारों का झगड़ा

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यह काहानी अशोक की है। अशोक 11 वर्ष का है और कक्षा -5 का छात्र था।अशोक के पास सुपरपावर था। अशोक चीज़ो से बात तो नहीं कर सकता था पर चीज़ो का आवाज़ जरूर सुन सकता था। इस दुनिया में दो तरह का चीज होता है एक लिविंग थिंग्स जिसमें जीवन हो और एक नॉन लिविंग थिंग्स जिसमें जीवन ना हो । अशोक नॉन लिविंग थिंग्स जैसे की पेन, पेंसिल, बॉक्स, बैलून, चॉक और डस्टर, आदि का आवाज़ सुन पता था। वो नॉन लिविंग थिंग्स के बातें सुन पाता था। यह था अशोक का सुपरपावर।


एक दिन अशोक अपना कक्षा -5 का हिंदी किताब में कबीर के दोहे पढ़ रहा था।"जल में कुंभ कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी। फूटा कुंभ जल जलाहिं समाना, यह तत्त कहत अज्ञानी। इसका असली मतलब क्या है "- अशोक ने कबीर दास के दोहे पढ़ते हुए पूछा।


अशोक -" इसका असली मतलब क्या है? जल में कुंभ कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी। फूटा कुंभ जल जलाहिं समाना, यह तत्त कहत अज्ञानी। आख़िर कबीर दास कहना क्या चाहते है? भावार्थ में लिखा है मनुष्य के शरीर में जीवत्मा है, बाहर सर्वत्र ईश्वर परमात्मा है। जैसे पानी के कुंभ में जल है और बाहर जलशय का जल है। यह दोनों तत्व एक है। जैसे कुंभ फुट जाता है तो भीतर का जल बाहर के विशाल जलराशि के साथ मिल जाता है, वैसे शरीर नष्ट हो जाता है तो आत्मा परमात्मा से जाकर मिलकर एकाकर हो जाता है। इसका मतलब बाहर भी शक्ति है और हमारे अंदर भी शक्ति है, और हमारा शरीर उस मटके की तरह है, जब यह मटका फूटता है तब अंदर का पानी और बाहर तालाब का पानी मिलकर एक हो जाते है। तो फिर क्या इसे असली आज़ादी कहते है? क्या इसे मुक्त होना कहते है? मुझे अभी भी ठीक से इसका मतलब समझ नहीं आया।"।


यह अशोक अपने आप बोल ही राहा था की तभी अशोक को दो गुब्बारो को लड़ने का आवाज़ सुनाई दिया। अशोक के पापा गुब्बारे बेचते थे इसलिए अशोक के घर में ढेर सारे रंग बिरंगे गुब्बारे है।

अशोक उन गुब्बारों के पास गया और गुब्बारों को गौर से देखने लगा। कुछ गुब्बारे लाल थे, कुछ नीले और कुछ पिले, बहुत सारे रंग बिरंगे गुब्बारे थे। जैसे की अशोक को चीज़ो के बात करने की आवाज़ सुनाई देता है, इसलिए अशोक ने उन गुब्बारों में से दो गुब्बारों को लड़ते हुए सुन रहा था। एक जो लाल रंग का था और एक कला रंग का था।


लाल गुब्बारा -" तुम चुप भी करो, काले गुब्बारें। तुमसे अच्छा हमारा जाती है। तुम अभी यहाँ नये नये आए हो इसलिए कुछ नहीं पता। हमारे यहाँ काले गुब्बारें नीच जाती के होते है। तो तुम जाओ काले गुब्बारों के साथ रहो। हमारे पास मत आओ "।

काला गुब्बारा यह सुन कर उड़ते उड़ते काले गुब्बारों के पास जा पोहोँचा। जहाँ पे और 5 काले गुब्बारें थे। वो नया काला गुब्बारा वहाँ जा के बाकि गुब्बारों को उस लाल गुब्बारें की बात बताई तो बाकि काले गुब्बारें उस नये काले गुब्बारा को बोले -" हाँ, वह लाल गुब्बारा सही बोला है। तुम यहाँ नये नये आए हो इसलिए तुम्हें पता नहीं। यहाँ तीन जाती के गुब्बारें होते है। एक जो ऊंच जाती के होते है वो लाल गुब्बारें, दूसरे जो मध्यम जाती के होते है वो नीले, पिले, हरे और बाकि जितने सारे रंग है, वो सब मध्यम जाती के होते है और हम काले गुब्बारें सबसे नीच जाती के होते है इसलिए हम लोग उन लोगों से मिल नहीं सकते। हमें हमेशा दूर रहना है इसलिए दुबारा उन लोगों के पास मत जाना "।


यह सब जो गुब्बारें बात कर रहे थे, वो अशोक बड़े ही ध्यान से सुन रहा था की अचानक अशोक के सामने दो गुब्बारा, एक लाल गुब्बारा और एक काला गुब्बारा एक साथ, एक ही समय में फट गया। यह देख अशोक सोच में पड़ गया और खुद से ही कहा -" अभी तो लाल और काले गुब्बारें का झगड़ा हो रहा था और अचानक से दोनों ही एक साथ फट गए। जाना तो दोनों को ही है चाहे, वो लाल हो या काला गुब्बारा। और वो चाहे लाल हो या काला, गुब्बारा तो गुब्बारा ही है "। फिर कुछ सोच में पड़ गया और फिर कहा -" कबीर के दोहे याद आया। जल में कुंभ कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी। यानि अब हम इस गुब्बारें को लेते है। हवा में गुब्बारा गुब्बारा में हवा है, बाहर अंदर हवा। फूटा गुब्बारा और अंदर और बाहर के हवा हो गए एक "।


यह कह कर अशोक चुप हो गया और कुछ देर तक सोचने लगा।

अशोक -" यह गुब्बारों को मैं कैसे समझाऊं की यह चाहे लाल हो या काला, दोनों एक ही है, फिर भी लड़ते है। और यह गुब्बारें गुब्बारें है ही नहीं, यह तो दरअसल हवा है। क्या यह गुब्बारें कभी खुद से प्रश्न पूछेंगे की आख़िर कौन है वै(गुब्बारें )? और क्या मरना आज़ादी नहीं है? यह मौत है या आज़ादी है? "


 यह सब अशोक अपने आप से पूछ ही रहा था की अशोक के पापा टी. वी ऑन कर न्यूज़ देखने लगे। न्यूज़ में दिखा रहा था की धर्म के नाम पे झगड़ा हो रहा था। आई. ल . पी (इंडियन लोकल पार्टी ) जो की नेशनल पार्टी है, उस पार्टी के लोग भारत के उन्नति में स्कूल, कॉलेज या हॉस्पिटल के जगह मंदिर मस्जिद ले कर युद्ध कर रहे है। एक पुराना मंदिर था जिसे तोड़ वहाँ नया मस्जिद बनाना चाहते थे। उनका कहना था की पहले यहाँ पर मस्जिद था लेकिन हिन्दू ने यहाँ जबरदस्ती मंदिर बनाया और वही पे कुछ लोग कह रहे थे की पहले कोई मस्जिद नहीं था, सिर्फ मंदिर ही था, है और रहेगा। लेकिन आई. ल. पी ( इंडियन लोकल पार्टी ) ने कुछ गवाह दिखाए और उस मंदिर को तोड़ मस्जिद बनाने का सोच रहे थे। तो कुछ लोग चाहते थे की वहाँ मंदिर, वैसे ही रहे और कुछ लोग मस्जिद बनाना चाहते थे।


अशोक वहाँ से अपने रूम चला आया और सोचने लगा की यह जितने सारे भेदभाव है, वो सबका हल है। जब समस्या होती है तो उसका हल भी होता है। यह जो जितनी भी डिस्क्रिमिनेशन है, ऑन दि बेसिस ऑफ़ जेंडर, रिलिजन एंड कास्ट, यह सब का हल है और वो है जब वो लोग खुद से पूछेंगे कौन हुँ मैं?


अशोक खुद से बोला -" बिचारे गुब्बारों को नहीं पता की गुब्बारें असल में कौन है? अगर गुब्बारों को पता होता की गुब्बारें अलग अलग नहीं बल्कि एक है, तो फिर शायद गुब्बारों में नफ़रत, गुस्सा और ईर्ष्या या के जगह सिर्फ प्यार ही प्यार होता। आख़िर हम सब एक ही है और हमारा भगवान भी एक है और गुब्बारें देखे भी कैसे जब तक उन गुब्बारों के अंदर घमंड भरा है। इसे मुझे और एक कबीर के दोहे याद आ रहा है।

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नहीं। प्रेम गली अति सँकरी, तो मैं दोउ ना समाहि "।


 


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