Ashfia Parvin

Children Stories Inspirational abstract

4.5  

Ashfia Parvin

Children Stories Inspirational abstract

एक अलग सपना

एक अलग सपना

11 mins
632



यह कहानी एक सीधी-सादी सरल दिल की लड़की का है जिसका नाम आशा है। आशा जो 17 वर्ष कि साफ दिल कि लड़की है और अपने परिवार के साथ रहती है। आशा के परिवार में कुल मिला के तीन लोग रहते है , आशा के मम्मी पापा और आशा। जैसे कि हर इंसान का कोई ना कोई सपना होता है, कोई ना कोई लक्ष्य होता है वैसे आशा का भी एक सपना है। आशा का सपना बाकियों जैसे ही था लेकिन थोड़ा सा अलग था। जैसे किसी का सपना डॉक्टर बनने का होता है तो कोई देश का सेवा करने आर्मी में जाना चाहता है या कोई अपना पैशन फॉलो करता है । वैसे ही आशा का सपना है कि वह एक अच्छा इंसान बने, भारत देश का अच्छा नागरिक बने। हाँ, बस इतना सा ही था। आशा का लक्ष्य था कि वो एक अच्छा इंसान बने और किसी प्रकार से लोगो का सेवा करें। यह सपना आशा ने तब देखा था जब वह कक्षा -5 में पढ़ती थी।आशा अब 17 वर्ष कि है और कक्षा -12 में पढ़ती है।


"आशा, आशा, आशा "- यह आवाज़ आशा कि दोस्त का है जिसका नाम नेहा है । "आशा, अब कितना देर इस तरह अपना सर झुकाये क्लास में बैठ के रोयेगी। माना कि टेस्ट में तुझे बहुत ख़राब मार्क्स आया है , इसका मतलब तू अब तक ऐसा ही रोती रहेगी। आशा स्कूल छुट्टी हो गया है , सब चले गए है सिर्फ हम दोनों ही है । अब रोना बंद कर और चल " 

आशा रोते हुए :-" इतने गंदे मार्क्स 10/30 और वो भी छोड़ मेरे ऊपर इतना बड़ा गलत इल्जाम लगाया गया कि मैं चीटिंग कर रही थी। मैंने आज तक किसी भी एग्जाम में चीटिंग भी नहीं किया और मेरे बारे में इतना बड़ा इल्जाम लगाया गया कि में चीटिंग कर रही थी। मुझे नहीं पता कि वह पेपर कौन रख दिया था टेबल में। "

नेहा :-" अच्छा मैं मान रही हुँ वह पेपर तूने नहीं रखा, तो फिर उस पेपर में जो है डराइटिंग था उसका क्या? वो तो तेरा ही है डराइटिंग है ना? "

आशा :-" नेहा, तू मेरी दोस्त है । तुझे नहीं पता मैं कैसी हूँ ? यह हो सकता कि कोई मेरा नोटबुक्स से फाड़ कर यह पेपर रख दिया। किसी का चाल है ? अट लीस्ट तू तो मुझे समझ "

यह सुन नेहा मन ही मन मुस्कुराई क्यूंकि यह चाल नेहा की ही है । नेहा ने जान बूझ कर यह सब किया ताकि आशा को नीचे गिरा सके। नेहा आशा को कभी भी अपना दोस्त नहीं समझती थी। नेहा और आशा के मिले एक ही साल हुए है और नेहा को आशा के अच्छायों से जलन होता था क्यूंकि नेहा ऐसी बिलकुल भी नहीं थी। नेहा आशा से बिलकुल अलग थी और वह चाहती थी कि आशा भी वैसे ही बने। दूसरी तरफ आशा कि बेस्ट फ्रेंड आयशा थी जो बहुत अच्छी थी और आशा को हमेशा सही रास्ता दिखाती थी लेकिन जब से नेहा आशा कि दोस्त बनी तब से आयशा और आशा का ठीक से बात चित नहीं हो पता था और ना ही नेहा चाहती थी आशा आयशा के संगत में आये। नेहा का मकसद था कि वो आशा को आयशा से दूर रखे और आशा को अपने जैसे बनाए।

आशा का बात सुन नेहा बोली :-"अरे! क्या हुआ तो फिर? एग्जाम में चीटिंग करना नार्मल बात है । बहुत लोग करते हैं , इट्स ओके, आशा। "

आशा :-" नो, इट्स नोट ओके। इतना बड़ा झूठ। "

नेहा :-" अच्छा बाबा। अब छुट्टी हो गया चल घर। "

फिर जब दोनों स्कूल से घर जा रहे थे तब नेहा ने आशा को देखते हुए बोली -" तुमने कभी सिगरेट ट्राय किया है ? "

आशा :-" क्या? "

नेहा :-" सिगरेट। अरे! यह नार्मल बात है । तुम नहीं देखते आज कल सब लोग पीते है । "

आशा :-" नेहा, मुझे तुमसे कुछ कहना है । सुनो, मुझे तुमसे और दोस्ती नहीं रखना क्यूंकि मैं जब भी तुम्हारे संगत में रहती हुँ तब मैं बहुत नेगेटिव फील करती हुँ। मुझे लगता है तुम्हारा रास्ता अलग है और मेरा अलग। "

नेहा :-" यह बूढ़ी जैसे बात कहा से सीखे? वो देखो (रास्ते में जाते हुए कुछ लड़को के तरफ दिखाते हुए ) वो लोग सिगरेट पी रहे है । यह नार्मल है । सिगगरेट पीना बुरी बात नहीं है ।

फिर नेहा आशा कि और एक सिगरेट देते हुए बोली :-" ट्राय "


आशा ने भी नेहा का बात सुन कर नशा करने लगी। आशा और नेहा दोनों एक साथ सिगरेट पिने लगे। तब उस रास्ते पे आशा कि बेस्ट फ्रेंड आयशा जा रही थी। आयशा का नज़र जब आशा पे गया तब वो आशा के पास जा के आशा के मुँह से सिगरेट को छीन के फेंकते हुए बोली :-" आशा! क्या हो गया तुझे? " बिच में नेहा आते हुए बोली :-" ये आशा का मर्ज़ी है तुम्हे क्या? अरे! भाई डेमोक्ट्रीटिक कंट्री है ये। यहाँ कोई कुछ भी करें तुम कौन होती हो बिच में टाँग लड़ाने वाली? "

आयशा आशा कि तरफ गुस्से से देखते हुए :-" आशा? हो क्या गया तुझे? क्या कर रही है तू? क्या तू अपना सपना भूल गई है ? "

आयशा का यह बात सुन के आशा को बहुत जोर का झटका लगा। आशा भूल गई थी उसके सपने के बारे में। उसका सपना था कि दिन पर दिन वह एक अच्छा और ईमानदार इंसान बने। आशा को आयशा के बात सुन बहुत गिल्ट फील हुआ और अपना बचपन के बारे में याद करने लगी जब आशा ने यह सपना देखा था।


एक बारकी बात है जब स्कूल कि छुट्टियों में आशा अपने गाँव घूमने अपने दादा के घर गई हुई थी। दोपहर का समय था जब आशा अपने दादा के पास बैठे दादा से बातचीत कर रही थी। आशा के दादा जो एक पीला कुर्ता और सफ़ेद धोती पहने बरगद के पेड़ के निचे बैठे हुए अपने प्यारी पोती आशा से बात कर रहे थे।

आशा :-" दादा जी आप और हमारे घर नहीं आते। बस मेरे स्कूल के हॉलीडेज में ही हम लोग आपसे मिलने चले आते है । दादाजी, आपको पता नहीं है कि यहाँ से जाने के बाद में आपको कितना मिस करुँगी।आप कब आएंगे हमारे घर?"

आशा के दादा :-" और अब इस उम्र में चल ही कहा पाते है जो इतने दूर का सफर करेंगे ? वैसे, यह सब बात छोड़ो, आशा।

आशा :-" ठीक है , जैसी आपकी मर्ज़ी। वैसे दादा जी मुझे कुछ पूछना है आपसे। बस दो सवाल है , जो में आपसे पूछना चाहती हुँ। "

आशा के दादा मुस्कुराते हुए :-" हाँ, बोलो आशा। क्या है तुम्हारा सवाल? "

आशा :-" वैसे तो मुझे आपसे ढेर सारी बाते करना है लेकिन फिलाल में आपसे दो सवाल पूछना चाहती हुँ। दादाजी, आप सीनियर सिटीजन है । अपने ज़िन्दगी में बहुत सारे अनुभव किये होंगे। आप हमारी ऐज से गुजर चुके है , तो आपको हमारी ऐज का अनुभव भी बहुत है । तो मेरा सवाल यह है मेरे प्यारे दादाजी अपने 70 वर्ष कि अनुभव से आपको ज़िन्दगी के बारे में क्या सिखने को मिला? और दूसरा सवाल कि ज़िन्दगी में सबका कोई ना कोई सपना होता है लेकिन मेरा कुछ भी नहीं है । मेरा मतलब मुझे कभी पुलिस अफसर बनने का इच्छा होता है तो कभी आर्मी में जाने का तो कभी कुछ और करने का। तो आप अपनी पोती को क्या एडवाइस देंगे? "


आशा के दादा कुछ देर अपना गंभीर सा शक्ल बनाये चुप रहे फिर मुस्कुराते हुए आशा को बोले :-" तुमने मेरा दिल कि बात बोल दिए। असल में यह बात मैं किसी ना किसी से शेयर करना चाहता था लेकिन तुमने यह पूछ के मेरा दिल हल्का कर दिया। हम्म्म.... 70 वर्ष के अनुभव से मैंने क्या सीखा? ज़िन्दगी से क्या सीखने को मिला? बहुत कुछ। अब देखो आशा सबकी ज़िन्दगी सामान नहीं होते, अलग अलग। खैर, ज़िन्दगी ज़ीने का नाम है तो फिर जिओ। ज़िन्दगी मुझे जीना सिखाया। ज़िन्दगी में सुख दुख आती ही रहेंगी लेकिन एक बात याद रखना आशा यह वक़्त ज्यादा देर तक ठहराता नहीं। कभी खुशी, कभी गम। ".

आशा :-" अच्छा, दादाजी। क्या आप कृपया कर एक एक पॉइंट कर के बता सकते है?

आशा के दादा अपना हंसी को रोक नहीं पाए और हँसते हुए बोले :-" हाँ, हाँ, हाँ, सच में तुम अपनी पिता पे गई है । अच्छा तो फिर सुनो।

 1. ज़िन्दगी बहुत कीमती है इसलिए फालतू के ब्रेकअपस के बाद या किसी के छोड़ के चले जाने के बाद या परीक्षा में फ़ैल होने के बाद, इन शौर्ट बताये तो फेलियर और रिजेक्शन के डर से कभी अपना ज़िन्दगी को अपने हाथ खत्म मत कर देना। जीवन में सुख दुख आते ही रहते है । वो एक गाना है ना ' ये वक़्त ना ठहरा है , ये वक़्त ना ठहरेगा, युही गुजर जायेगा घबराना केसा?'

 2. प्यार के बिना ज़िन्दगी कुछ नहीं है । इसलिए जितने भी बड़े हो जाओ और जॉब करने लग जाओगे तब भी अपने प्रियजनों के लिए थोड़ा समय देना। प्यार ही सब कुछ है । प्यार के बिना तो सब अधूरा है इसलिए खुद से और इस जग के लोगो से प्यार करना सीखो।

 3. अभी जो तुम्हारा उम्र है , इस उम्र में सब कुछ तुम्हे रंगीन रंगीन दिखेगा लेकिन कभी भी गलत रास्ते में मत जाना और जब भी तुम्हे लगे कि तुम कोई गलत रास्ते में जा रहे हो तो फिर तुम अपने दिल के ऊपर हाथ रखना और आंख बंद करके अपने से पूछना क्या मैं यह सही कर रहा हुँ? यह दिल तुम्हे हमेशा सही रास्ता दिखायेगा और भगवान से प्राथना करना कि यदि मैं कभी भी गलत रास्ते में चला जाऊ या रास्ता भटक जाऊ तो फिर मुझे आप सही रास्ता दिखाना।

 बस इतना याद रखो, और भी बहुत कुछ है लेकिन रहने दो अभी के लिए बस इतना ही याद रखो। समझें?

और तुम्हारा दूसरा सवाल का जवाब है कि जीवन में लक्ष्य होना जरुरी है । लेकिन आशा मैं तुम्हे एक राज बताना चाहता हुँ। जानना चाहोगे वह राज?

आशा उत्सुकता से :-" जी बिलुकुल दादाजी। "

दादाजी :-" डॉक्टर, पुलिस अफसर , आर्मी ना जाने क्या क्या यह तो सब बन जाते है लेकिन अच्छा इंसान बहुत कम लोग बन पाते है । अब देखो किसी का बचपन से सपना है कि वह बड़े हो के वक़ील बनेगा और वो बन भी गया लेकिन पता है वह बनने के बाद भी एक अच्छा और ईमानदार वक़ील नहीं बन पाया। पता है क्यों? क्यूंकि वह वक़ील भ्रष्टाचार के चपेट में आ गया। वो घुश लेना देना, ऐसा थोड़ी एक सच्चा वक़ील होता है ? तुम बस इतना समझो जीवन में कुछ बनो या ना बनो लेकिन एक अच्छा और ईमानदार इंसान बनना। और क्या तुम्हे पता है यहाँ पे कोई कम्पटीशन भी नहीं है । "


आशा यह सब सोच ही रही थी कि तभी आयशा आशा के सामने चुटकी बजाये जिससे आशा सोच से बाहर आई।

आयशा :-" आशा, याद आया। तुम्हारा सपना। "

आशा कुछ पल के लिए निशब्द हो गई। इससे ऐसा देख नेहा बोली :-" आशा तुम इसकी बात मत सुनो। यह कितना बोरिंग है और बकवास कि बाते करती रहती है । "


यह सुन आशा वहा से किसी को कुछ नहीं बोल कर सीधा अपने घर में आ के अपने रूम पे चली गई। आशा को आज बहुत बड़ा धक्का लगा था। आशा अपने सामने आयने में अपने शक्ल भी नहीं देख रही थी। आशा को अपने आप से नज़र मिलाने में बहुत शर्म महसूस हो रहा था। आशा को रोना आ रहा था। आशा अपने आप को नहीं रोक पाई और रोते हुए बोली -" आखिर मैं ऐसा कैसे कर सकती? ऍम सॉरी दादजी आज आपकी पोती आपका बात नहीं रख पाई। मैं इतनी बुरी कैसे बन गई? आखिर मैं खुद अपने हाथो से अपने सपने को दफ़न कर रही थी। इस देश को एक अच्छा इंसान का जरुरत है एक ईमानदार इंसान का, और मैं? शायद मेरे अंदर अच्छा बनने का योग्यता ही नहीं है । आज में सिगरेट पिने जा रही थी। " इतना कह कर रोने लगी। तब आशा का फ़ोन रिंग हुआ। वो फ़ोन नेहा का था। यह देख आशा नेहा का न. ब्लॉकलिस्ट में डाल दी।

आशा को आज खुद से बहुत नफरत हो रहा था। फिर अचानक से आशा को अपना दादा का बात याद आया कि जब भी वह गलत रास्ते में जाये तो उसको यूनिवर्स से सही रास्ता दिखाने का बात करें। आशा को पता है कि उसे हमेशा दिल कि आवाज़ सुनना चाहिए। दिल से जो आवाज़ निकलता है वह हमेशा सही होता है ।


आशा अपने दादा को याद कर के अपने दिल पे हाथ रख के आँख बंद कर अपने आप से सवाल उठाई कि" आज जो भी मैंने किया क्या वह सही किया?" दिल से आवाज़ आया नहीं। फिर आशा ने प्रश्न किया -" तो फिर मैं गलती को सुधारने के लिए क्या कर सकती हुँ? "

दिल से आवाज़ आया -" बुरे संगत में मत रहो। हमेशा अच्छा संगत चुनो और आज कि गलती को मम्मी पापा के सामने स्वीकार कर लो "।


आशा ने अपने मम्मी पापा के सामने जा के अपना गलती स्वीकार कि जिससे उसके मम्मी पापा नारज़ तो हुए लेकिन बाद में माफ़ भी कर दिए।


10 वर्ष बाद


आशा अब 27 वर्ष कि हो चुकी थी और एक साधारण सा हिंदी शिक्षिका का नौकरी कर रही थी। आशा अपने कक्षा के छात्र और छात्रा को अपने दादा जी का बात सिखा रही थी। 


सारे जहां से अच्छा बिद्यालय,

कक्षा -8


आशा :-" तो बच्चो आज के पाठ से तुम्हे क्या शिक्षा मिली? "

छात्र / छात्रा :-" जीवन में लक्ष्य होना बहुत जरुरी है "।

आशा :-" हाँ, गुड। अब तुम लोग एक एक कर के बताओ कि तुम लोग बड़े हो के क्या बनोगे? "

पहला छात्र :- "मैम, मैं आई.ए. स बनूँगा "।

दूसरा छात्रा :-" मैम, मैं आई. पी. स "।

तीसरा :-" मैम, मैं कन्फ्यूज्ड हूँ "।

आशा :-" जिसको जो भी बनना है बनो, आई. ए. स या आई. पी. स लेकिन सबसे पहले एक अच्छा इंसान बनना जरुरी है । "






Rate this content
Log in