तुझको क्या चाहिए ज़िन्दगी?
तुझको क्या चाहिए ज़िन्दगी?
यह काहानी अश्विता की है जो एक 17 वर्ष की स्कूल जाती लड़की है। अश्विता के बहुत अच्छे परिवार तो हैं और वो अपने परिवार और दोस्तों से बहुत प्यार भी करती हैं लेकिन फिर भी वो अपने परिवार के साथ रहने के जगह अकेले में रहने का फैसला किया जिससे पहले तो उसके परिवार वाले मानने को बिलकुल भी तैयार नहीं थे लेकिन फिर तैयार हो गए।
अश्विता अब परिवार और दोस्तों से दूर, लोगो से दूर एक समुन्द्र के किनारे एक छोटे से घर में रहती हैं। सुबह खिड़की से आती सूरज की रौशनी और चिड़ियों की आवाज़ से उसका नींद खुलता और रात में सनसनाती हवा, समुन्द्र की उठती गिरती लहर की आवाज़ सुनते सुनते कब नींद आ जाता उसे पता भी नहीं चलता। अश्विता इस समाज के शोर शरवो से दूर, अपने परिवार और दोस्तों से दूर रहा तो करती हैं लेकिन वो परिवार और दोस्तों को समय जरूर दिया करती हैं। अश्विता रोज शुबह या शाम को अपना समय अपने परिवार और दोस्तों को दिया करती हैं। हालांकि बहुत लोगो को अश्विता का ऐसे जीवन जीने का तरीका समझ नहीं आता था जिससे उसे कोई सेल्फिश बोल देता था।
एक दिन की बात हैं जब अश्विता शाम में समुन्द्र के किनारे कलम और खाता ले कर अपने प्रश्नों का उत्तर ढूंढ रही थी। वो हर शाम स्कूल का पढ़ाई ख़तम करने के बाद समुन्द्र के किनारे अपने हाथ में कलम ओर खाता ले कर बैठ जाती थी ओर अपने प्रश्नों का उत्तर ढूँढा करती थी। आज भी वो वही कर रही थी। अश्विता कभी डूबते हुए सूरज के तरफ देख रही थी तो कभी प्रश्नों का हल ढूंढ रही थी। अश्विता के मन में हज़ार सवाल थे जिसका जवाब उसे चाहिए था और इसलिए तो वो अकेले में अपने आप को वक़्त दे रही थी ताकि वो उत्तर ढूंढ पाए। उसके मन में बहुत सारा प्रश्न थे जो शायद आप लोगो के मन में भी उठते हो जैसे हम इस दुनिया में क्यूँ आये हैं ? आप लोगो ने भी खुद से प्रश्न किये होंगे और शायद उत्तर भी मिल गया होगा जैसे की हम कौन हैं? हम यहाँ क्यूँ आये हैं? हम आये हैं तो इस दुनिया में ऐसा क्या कर के जायेंगे? ऐसा क्या करूँ जिससे यह समाज का भला हो? अपने मुल्क, अपने वतन, अपने देश के लिए हम सच में क्या करना चाहते हैं? हम कैसे इंसान बनना चाहते हैं? अपनी ज़िन्दगी हम कैसे जीना चाहते हैं? आखिर क्या ढूंढ़ता हैं यह मेरा दिल? क्या चाहिए ज़िन्दगी या ज़िन्दगी से हमें क्या चाहिए?
अश्विता के दिमाग में इतनी बाते चल रहा था जिससे वो अपने आप से बात करने लगी -" आखिर क्यूँ आई हुँ मैं इस दुनिया में? मैं कौन हुँ? हाँ, यह तो अब साइंस इतनी तररकी कर चुके हैं की सबको पता हैं की हमारा बॉडी एनर्जी से बना हैं। हमारे ह्यूमन बॉडी में आर्गेन्स हैं उसमे सेल्स हैं फिर मोलेक्यूल्स,एटम्स, और पुरे लास्ट में एनर्जी हैं। एनर्जी के बाद कुछ नहीं आता हैं। सब कुछ एनर्जी हैं। एनर्जी को ना हम बना सकते हैं ना मिटा सकते हैं और बहुत महानवयक्ति, महान लोगे ने भी बोला हैं जैसे की स्वामी विवेकानंद का एक विचार हैं जिसमे यह बताया गया हैं की हम शरीर नहीं हैं ना ही मन हैं, ना ही हम बुद्धि हैं , हम एक आत्मा हैं। शौर्ट में बोले तो कुछ लोग बोलते हैं हम आत्मा हैं, हम कंस्यूशियसनेस हैं, हम अवेयरनेस हैं और विज्ञान कहता हैं हम एनर्जी हैं, खैर। हम बॉडी नहीं हैं,कैसे? क्यूंकि हमारा शरीर बदलता रहता हैं जो बच्चा जन्म होते ही 300 हड्डिया रहता हैं और फिर बड़े होने के बाद 206। हर 7 वर्ष में हमारा नया शरीर निर्माण होता हैं। जो जवान होता हैं उसे एक ना एक दिन बुड्ढा भी होना पड़ता हैं। हम माइंड भी नहीं हैं। एक पल में हम कुछ और सोचते हैं दूसरे पल में कुछ और। हमारा माइंड एक बन्दर की तरह हैं, जैसे की बहुत महान लोग बताये हैं। हमारा ईगो हैं जो हमें सच्चाई को देखने नहीं देता हैं। अरे! मैं कितना बोल रही हुँ। अच्छा हैं मैं अकेली हुँ वरना सब पागल कहते की मैं खुद से बात कर रही हुँ। हाँ, तो यह सब जानते हैं की हम सब एनर्जी हैं। हम सब एक हैं। फिर एक क्वेश्चन उठता हैं की वो चाहे किसी भी धर्म के हो। हर धर्म मे हिन्दू धर्म या , क़ुरान, बाइबिल आदि ग्रन्थ सब मे यही बात हैं की ईश्वर एक हैं। ". इतना कहते कहते अश्विता चुप हो गई फिर खुद से ही बोलने लगी -" विथ माय लिमिटेड नॉलेज आगे तक बोलना ठीक नहीं होगा क्यूंकि मैं किसी की सुनी सुनाई बात या कही पे पढ़ा हुआ कैसे बोल सकती हुँ , जब तक वो चीज मैंने खुद ही अनुभव ना किया हो। वैसे, हाफ नॉलेज इस डेंजरस " इतना कह कर चुप हो गई और अश्विता पश्चिम की औऱ डूबती सूरज और पक्षियों को अपने घोंसले में जाते हुए देख रही थी। अश्विता समुन्द्र के किनारे बैठी उठती गिरती लेहरो को देख रही थी। उस वक़्त उसके अंदर एक अजीब सा खुशी आ रहा था जो वो शब्द में बयां नहीं हो सकता। अश्विता के मन में इतनी ऊर्जा और आनंद से भरा हुआ था जो अश्विता सच्चे दिल से इस यूनिवर्स से कहने लगी -" आई लव यू "।
अश्विता को एक अलग ही कुछ महसूस हो रहा था जो शायद ही शब्द में बयां हो पाए। वो क्या था, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक आनंद, ऊर्जा, प्यार जो उसके अंदर से आ रहा था। तब उसके सामने उसके जितने भी समस्या थे सब छोटे लगने लगे लेकिन यह कुछ पलो के लिए ही था। अभी अश्विता को एक जोर का झटका लगने वाला था जिससे अश्विता अनजान थी।
अश्विता के कानो में जोर जोर से स्कूल की घंटी का आवाज़ सुनाई दिया। अश्विता अपने खयालो के दुनिया से बाहर आई। अश्विता के सामने मिस रितु खड़ी थी जो इकोनॉमिक्स के टीचर हैं।
मिस रितु :-"स्टैंड अप, अश्विता। मैं तुम्हे कब से बुला रही हुँ और तुम सुन ही नहीं रहे हो।"
अश्विता :-" सॉरी, मिस "
मिस रितु :-" बताओ, मेरिटस एंड डीमेरिटस ऑफ़ बैलेंसड बजट "।
अश्विता :-" मेरिटस ऑफ़ बैलेंसड बजट आर इफेक्टिव चेक एंड बैलेंस, इकोनॉमिक स्टाबिलिटी.... मिस याद नहीं आ रहा हैं "।
मिस रितु :-"अभी अभी तो मैंने समझाया था, तब क्या कर रहे थे? बॉडी प्रेजेंट, माइंड एब्सेंट"।
स्कूल के छुट्टी के बाद अश्विता के बेस्ट फ़्रेंड श्वेता ने उसे उसका ऐसा अचानक बीहेव चेंज होने का कारण पूछा।
श्वेता :-" आज कल तुम्हे हो क्या गया हैं? क्या तुम परेशान हो या हमारे क्लास के स्टार रोहन के बारे में सोचती हो? "
अश्विता :-" क्या? मुझे वो सब फालतू के बातो को सोच कर समय बर्बाद करने का वक़्त नहीं हैं"।
श्वेता :-" तो फिर तुम्हे क्या हो गया हैं? पहले तो मैम के पूछने पर सीधा उत्तर दे देते थे लेकिन अब। "
अश्विता :-" छोड़ो ना इतनी सी बात को अब हववा मत बनाओ। एक सवाल पुछु? क्या तुम्हारे मन में सवाल उठा हैं की तुम कौन हो? काहा से आई हो? क्या करना चाहती हो? अपने मृत्यु से पहले समाज को क्या दे कर जाना चाहोगी जिससे पूरा समाज का भला हो और तुम्हारा नाम अमर हो जाये?"
श्वेता :-" अच्छा सवाल हैं लेकिन फिलाल पढ़ने का उम्र हैं और हमें पढ़ाई करना चाहिए। "
अश्विता :-" अरे! नहीं। मेरा मतलब हम जो अभी कर रहे हैं वो क्यूँ कर रहे हैं? हाँ, यह क्लियर हैं हम पढ़ रहे हैं फिर जॉब करेंगे, फिर शादी। आखिर हमारा सच में एक एम होना चाहिए, एक लक्ष्य होना चाहिए।"।
श्वेता :-" तुम्हारा बात समझ नहीं आ रही है, वैसे तुम चाहती क्या हो.?"।
अश्विता :-" मैं चाहती हुँ की मुझे कुछ महीने अकेले छोड़ा जाये बिलकुल अकेले ताकि मैं अपने आप को जान सकूँ, अपने प्रश्नों का उत्तर ढूंढ पाओ फिर मैं एक मीनिंगफुल लाइफ जी पाउँ। मुझे ज़िंदा लाश बन कर नहीं जीना ना ही यहाँ वहा भागना है।"।
श्वेता :-" एक काम करो तुम संत बन जाओ "।यह बात सुन दोनों दोनों पर हंस दिए।
इतने में अश्विता का घर आ गया और वो श्वेता को बाय बोल अपने घर चली गई।
