गर्ल फ्रेंड

गर्ल फ्रेंड

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हबीब को लगा वह जन्नत में आ गया है। उसके मामू उसे गाँव से शहर ले आये और अपने एक दोस्त की मदद से एक रेडीमेड कपड़ों की फेक्टरी में सुरक्षा गार्ड की नौकरी पर लगवा दिया। उस फैक्टरी में बड़ी सख्या में लड़कियां और महिलायेँ काम करतीं थी। ज़्यादातर वे कपड़े सिलाई का कार्य करतीं थीं शायद उनको इस कार्य में मर्दो से बेहतर माना जाता था। या जो भी वजह हो। और भी सुरक्षा गार्ड थे लेकिन हबीब उम्र में सबसे कम 19 का और कुँवारा था। हबीब ने बर्दी भी खोज कर अच्छे दर्जी से सिलवाई थी जिसकी फिटिंग उम्दा थी। जहां दूसरे गार्ड लुंज पुंज से वर्दी पहनते वहीं हबीब अच्छी फिटिंग की वर्दी में अलग चमकता। वह खुद को किसी हीरो से कम नहीं समझता था। सुबह फैक्टरी के चालू होने के समय और शाम को छुट्टी के समय हूरों की फौज निकलती और वह उन्हें जी भर देखता और सोचता क्या इतनी सारी लड़कियों में कोई एक भी ऐसी न होगी जो उसे पसंद करे और जिसका दिल उस पर आ जाये। वह भीड़ में उसी की तलाश करता। वह इस विषय में खुद उलझन में रहता था किसी दिन एक पसंद आती तो दूसरे दिन उससे बढ़ चढ़ कर कोई और दिख जाती फिर कोई और दिख जाती और वह पहले वाली रिजेक्ट करता जाता।

एक दिन एक खूबसूरत लड़की उसे देख कर मुस्काई। हबीब को कुछ समझ नहीं आया क्योंकि उसने वैसी लड़की की उम्मीद नहीं की थी। वो खूबसूरत फैशनेबल और अमीर दिख रही थी। वह साधारण कर्मचारी तो नहीं लगती थी। या तो ऊंची पोस्ट वाली मेम थी या मालिक की बेटी। उसे फैक्टरी के अंदर जाना था। हबीब ने अपने सेक्योरिटी गार्ड की ड्यूटी मुस्तैदी से की। उसने उसका परिचय पत्र देखा। उस पर लिखा था असिस्टेंट मेनेजर। उसने विशेष सम्मान दिखाते हुए अंदर जाने दिया। लड़की ने जाते जाते मुसकराकर मधुर आवाज में कहा, “थैंक्स।”

हबीब भी स्मार्ट था। उसने तुरंत कहा, “वेलकम”। लड़की शायद उससे जवाब की उम्मीद नहीं करती थी। उसने पलट कर मुस्कराते हुए हबीब पर नजर डाली। हबीब के दिल की धड़कन इतनी बढ़ गयी कि वह डर गया। उसने सोचा हार्ट फेल ऐसे ही तो नहीं होता है।

वह किशोर अवस्था के आखरी और युवावस्था के पहले पड़ाव पर था। उसकी कल्पना इतनी प्रबल थी उसे कल्पना में हकीकत का एहसास होता था। उसने सुन रखा था शहरों में लड़के लड़कियों की दोस्ती आम बात है। यहाँ गर्ल फ्रेंड भी बना सकते है। दोस्ती करो और साथ में घूमो फिरो। गाँव की तरह लोग बुरा नहीं मानते। छुट्टी वाले दिन जब वो सिनेमा देखने जाता। ऐसे अनेक जोड़े दिखायी देते।

कल्पना में वो मेनेजर मेम उसकी गर्ल फ्रेंड बन चुकी थी और वो उसे सिनेमा दिखाना चाहता था। किन्तु दुबारा वो सामने आयी तो हबीब की बात करने की हिम्मत ही नहीं हुई। उसे ये भी डर लगता कि कुछ गड़बड़ हो गयी तो नौकरी न खतरे में पड़ जाये। मामू के पास शिकायत के पहुंचने का भी डर था। फिर सोचता अगर वो राजी हुई तो फिर डरने की बात नहीं। वह सबको बता देगा वह गर्लफ्रेंड है। लेकिन क्या वो उसकी गर्लफ्रेंड बनेगी? इस विचार के जवाब में उसे अनेक हिन्दी फिल्में याद आ जाती जिनमें हीरो की हैसियत हीरोइन से कम होती है फिर भी हीरोइन हीरो को चाहती है। उसने थोड़े दिन पहले फिल्म राजा हिन्दुस्तानी देखी थी जो उसे बहुत पसंद आयी थी। उसमें हीरो टैक्सी चलाता था और हीरोइन करोड़ पति घर से थी। ये सब सोचता तो उसे सब कुछ संभव और आसान लगने लगता था। और फिर वो मुस्कराती भी थी। उसे लगता था उसके पहल करने भर की देर थी और काम बन जाना था।

एक दिन सेक्योरिटी अफसर ने हबीब को एक पार्सल दिया और कहा, “इसे तुरंत अभी फैक्टरी में प्रताप सुपरवाइजर को देकर आओ। उन्हीं के हाथ में देना”

वह फैक्टरी में गया और प्रताप को पूछा। एक व्यक्ति ने उसे गैलरी में रखी कुर्सियों पर बैठने को कहा और कहा प्रताप थोड़ी देर में इधर आयेँगे हबीब ने देखा बगल के कमरे के दरवाजे पर प्रताप की नेमप्लेट लगी थी।

हबीब ने पार्सल बगल की कुर्सी पर रखा। और इधर उधर देखते हुए प्रताप का इंतजार करने लगा।

अचानक गैलरी में वही लड़की उसकी ओर चली आ रही थी। हबीब खड़ा हो गया और सोचने लगा पास आके वो क्या बोलेगी और उसके जवाब में वह क्या बोलेगा।

लड़की पास आती जा रही थी। हबीब मुस्कराता हुआ उसकी ओर बढ़ा। उसने फैसला कर लिया था कि अब वो पूछ ही लेगा, “क्या मुझसे दोस्ती करोगी?

अचानक लड़की बाईं ओर मुड़ी और गायब हो गयी। हबीब तेजी से वहाँ पहुंचा जहाँ से लड़की मुड़ी थी। हबीब ने देखा लड़की जिस ओर मुड़ी थी वहाँ एक छोटी गैलरी थी जिसके आखिर में बोर्ड लगा था “लेडीज वाशरूम ।”

हबीब को अपनी गलत फहमी का एहसास हुआ। दरअसल लड़की वहाँ जाने के लिए आ रही थी, उससे मिलने नहीं। हबीब चुपचाप अपने पार्सल के पास लौट आया। इसी बीच प्रताप भी आकर अपने कमरे में बैठ गये। हबीब उन्हें उनका पार्सल देकर वापस फैक्टरी के गेट पर आ गया । फिलहाल उसने गर्लफ्रेंड का मामला किस्मत पर छोड़ दिया। 


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