Anant Vijai

Inspirational Children

4.4  

Anant Vijai

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गरिमा

गरिमा

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आज सुबह कड़क चाय की पहली सिप के बाद गरिमा को अपनी बचकानी बात याद आ गयी- “मम्मी! चाय इतनी गर्म मत बनाया करो, मुँह जलता है।" संभवतः अपनी बीती बातों का स्मरण होना हास्य रस या करुणा रस को पैदा करता है। गरिमा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, इस आपबीती ने उसके मासूम चेहरे पर मायूसी को ढकेल दिया। लेकिन अगले ही पल उसे अपनी माँ की कही बात याद आयी-“ तू मेरी बहादुर बिटिया है, रोया मत कर।"

उसके बाद उसने अपने चेहरे पर आये दुःखमय भावों को तुरंत छिपा लिया और माँ को मुस्कुराते देख वह भी मुस्कुराने लगी।

भले ही वह सोलह साल की है, लेकिन माँ की कही एक-एक बात उसे बेहद मजबूत बनाती है। और उन्हीं बातों की देन है कि कुछ लोग उसकी तारीफ करते जरा भी पीछे नहीं हटते। अपनी बदसूरत ज़िन्दगी से वह कहीं ज्यादा खूबसूरत है। चेहरे से कहीं ज्यादा मासूमियत उसके ह्रदय में बसती है। उसकी कमर तक लहराते घने बाल लोगों को उसे एक प्रिंसेस कहने से नहीं रोक पाते।

चूँकि लगभग हर किसी के पास कोई न कोई टैलेंट होता है, बस कुछ शर्तें आवश्यक हो जाती हैं। जैसे कि- समय पर पकड़ में आये तो वाह-वाही, छूट जाए तो ज़िन्दगी तबाही।

लेकिन गरिमा तो अपने हुनर (डांसिंग) को बहुत पहले परख चुकी है। और आज वो दिन है, जब वह अपने स्कूल में न्यू ईयर इवेंट पर डांस परफॉरमेंस देगी। चूँकि ग्रुप परफॉरमेंस है इसलिए कुछ और लड़कियाँ भी शामिल है। जैसे हर एक कमेटी का हेड होता है, वैसे ही हर एक ग्रुप का सीनियर होता है। यहाँ कुल बारह लड़कियों में से दो लड़कियाँ इस डांस ग्रुप की सीनियर हैं, साक्षी और गीतिका। इस बार इन दोनों ने पूरे ग्रुप के सामने दो दिन पहले ढोल पीटा था, कि कोई भी लड़की इस बार ओल्ड फैशन फॉलो नहीं करेगी। यानि सूट, कुर्ती जैसे कपड़ो पर पूर्णतः पाबंदी। विशेष तौर पर यह बात गरिमा के कानों तक पहुँचाने के लिए कही गयी थी, क्योंकि पिछली दफा उसने रूल तोड़कर माँ की सिली कुर्ती पहनी थी।

चाय की आखिरी चुस्की के बाद गरिमा ने खाली कप मेज पर रखा और एक झलक सामने दीवार पर टँगी घड़ी को देखकर कपड़ो की अलमारी पर जा पहुँची। जितना वक़्त उसे अलमारी में रखे कपड़ों को देखकर लग रहा था। उससे साफ जाहिर था कि आज की परफॉरमेंस के लिए उसके पास कोई सेलेक्टेड ऑप्शन नहीं है। फिर उसे माँ की सिली वही कुर्ती दिखी, जिसे पहनकर उसने बीते साल डांस परफॉरमेंस दी थी। उसे देखकर उसे वही दिन याद आता है जब माँ ने उसके लिए यह कुर्ती सिली थी। उस दिन लगातार चार घण्टे सिलाई करने के बारे माँ ने मशीन छोड़ी थी। तब कहीं जाकर नए चमकार नारंगी रंग की कुर्ती तैयार हो पाई। उस वक़्त माँ का कहना था- “लड्डू! ले बेटा, ज़रा पहनकर देख।"

गरिमा- “मम्मी! आपने बेवजह मेहनत की, सब लोग मॉडर्न कपड़े पहनेंगे।”

माँ-“अरे तो पहनने दे बेटा! कोई कुछ भी पहने, तू कुर्ती ही पहनना। देख! कितनी सुंदर लग रही है, बहुत खिलेगी तुझ पे।” माँ ने कुर्ती का एक-एक हिस्सा गरिमा को दिखाते हुए कहा।

गरिमा- “मम्मी! कुर्ती, सूट जैसा कुछ भी नहीं पहन सकते, ये रूल है।"

माँ “बेटा वहाँ हजारों लोग होंगे और हर किसी की नज़र साफ नहीं होती। अलग-अलग किस्म के लोग होते है, किसी का मन पानी जैसा, तो किसी का कूड़े से भरे कुएँ जैसा।"

माँ, ये सब मुझे समझ नहीं आता।" इस बार गरिमा ने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा।

“अरे! तुझे ही तो समझना होगा। तू नहीं समझेगी तो और कौन समझेगा। यूँ ही ‛गरिमा’ नहीं रख दिया तेरा नाम। परिवार की गरिमा, संस्कारों की गरिमा और न जाने क्या-क्या। सब कुछ तेरे कंधों पर है। नाम के साथ-साथ उसके मतलब की भी समझ।"

इसके पहले गरिमा कुछ और सोच पाती, मेज पर रखे फोन की घँटी बजने लगी। शायद डांस ग्रुप से किसी लड़की का कॉल था। जिसे सुनने के बाद कुर्ती पहनकर शीशे के सामने जा खड़ी हुई। माँ की सिली वही कुर्ती, जिसे पहनकर उसने बीते साल परफॉरमेंस की थी। कुछ देर उसने खुद को शीशे में सँवारा और माँ को मुस्कुराते देख एक धीमी-सी मुस्कान माँ के हवाले कर स्कूल पहुँच गयी।

स्कूल परिसर में उसके इस पहनावे का ढिंढोरा पिट चुका था। आज उसे ग्रुप से खूब खरी-खोटी सुनने को मिली थी। किसी ने उसे कोसा, तो किसी ने डांस ग्रुप से बाहर करना चाहा। हाँ, वह बात अलग थी कि ऐसा हुआ नहीं।

 ग्रुप परफॉरमेंस के बाद आज का न्यू ईयर इवेंट समाप्त हुआ। इतनी यातनायें सहने के बाद अब वह भी खुद को इस पहनावे के लिए कोस रही थी। लेकिन आज के इम्पोर्टेन्ट अनाउसमेंट के बाद ग्रुप की हर लड़की की जुबान पर ताले पड़ चुके थे। ऐसा किसी ने सोचा नहीं था कि उसकी माँ की सिली मामूली कुर्ती स्कूल के नए सेशन की यूनिफॉर्म का हिस्सा बन जाएगी। माँ की कारीगरी का इस हद तक आना सिर्फ एक ही बात याद दिला रहा था- ‛हर किसी का मन एक जैसा नहीं होता, किसी का पानी जैसा तो किसी का कूड़े से भरे कुँए जैसा।'

आज उसे ग्रुप की हर-एक लड़की उसी गन्दे कुएँ जैसी लग रही थी जिन्होंने उसे मामूली-सी बात पर शर्मसार और बेज्जत किया। जबकि प्रिंसिपल सर साफ पानी की तरह, जिन्होंने एक मामूली-सी कुर्ती को इतना बेहतर समझ लिया, कि उसे नए सेशन की यूनिफॉर्म के लिए सेलेक्ट कर लिया।

अब वह घर लौट चुकी थी। आज माँ की बातों ने मजबूत नहीं, कमजोर बना दिया था। उसकी मोती जैसे आँखें मोती जैसे आँसुओं से भरी हुई थी। थकी हुई काया को माँ के सहारे की ज़रूरत थी। उसके कोमल हाथ माँ के पैरों को स्पर्श करने चाहते थे। उसकी माँ हमेशा उसे देखकर मुस्कुराती थी। लेकिन आज इस बात की पुष्टि करना थोड़ा मुश्किल था क्योंकि माँ की मुस्कुराती तस्वीर और उस पर सुसज्जित माला, दोनों ही उसकी तड़पती-बिलखती बांहों में ढक चुकी थी।

     


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