Anant Vijai

Others

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पुण्य-पाप

पुण्य-पाप

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वास्ता गहरा है, थोड़ा गहरा। हो सकता है उतना औरों से न हो, जितना कि लोगों का अपनी खुशियों से। एक हिस्सा तो गुप्त खुशियाँ भी हैं और ‛मन की खुशियाँ’ कह देने से इस बात का मतलब बिल्कुल नही बदल जाता। इनकी सबसे बड़ी खासियत जानेंगे, तो मिल जाएंगी आये दिन आपके मन के किसी कोने में पड़ी खिलखिलाती-बलखाती। बहुत छोटी या बहुत बडी, कोई फर्क नहीं। बस, उन छोटी-छोटी खुशियों को जी लेने की कोशिश-भर ज़िंदगी का एक खूबसूरत एहसास है।

हिंदी, इंग्लिश, मैथ्स और फिजिक्स परीक्षाओं का मनमाफिक सफाया करने के बाद मेघ भी ‛मन की खुशी’वाले दौर से गुज़र रहा था। अपने टुटेजा अंकल हैं ना। हाँ वही, मेघ की कॉलोनी वाले। कुछ दिन पहले मेघ से कह रहे थे कि अगर इंटर में बाजी मार ली, तो बेटा, ये चार दिन की ज़िन्दगी टॉप कर जाओगे। अब, कोई मामूली इंसान अगर इस बात को कहता तो शायद मेघ उतना भरोसा ना भी कर पाता, लेकिन ‛टुटेजा’ अंकल जब आयकर विभाग में अधिकारी है तो भरोसा करना एकदम जायज है। वैसे इस मामले में अभी तक जितना भी टुटेजा अंकल से उसने सुना, अमूमन वैसा महसूस भी किया। वह बात अलग थी कि हर कोई ट्वेल्थ स्टैण्डर्ड को लेकर अपने अलग-अलग अनुभव साझा करता था। लेकिन जितनी भी बातों को मेघ सुनता और समेटता, उन सभी के पॉजिटिव पॉइंट्स उसकी झोली में एक-एक कर आने लगते।

आखिरी पेपर ‛रसायन विज्ञान’ के दिन होने वाली हर चीज़ मेघ को याद है। बस तारीख दिमाग से फिसल चुकी है इसलिए आप लोग अपने हिसाब से कोई भी ऐरी-गैरी तारीख लेकर इस कहानी में एडजस्ट हो जाइयेगा। ज़रूरी लगे तो ठीक, नही तो मेरी साथ आगे बढ़ जाइयेगा।

‛श्याम नगर’ रोड से, ‛गोकुल इंटर कॉलेज’ की दूरी करीब १ कि.मी. थी। इस बीच ’गुप्ता स्टेशनरी’ इकलौती ऐसी स्टेशनरी थी, जो इस १ कि.मी. के दायरे में पड़ती थी। सो गुप्ता जी इस बात का ज़रा भी फायदा न उठाते, तो शायद अपनी गोत्र के लोगों में बाकी लोगों की तरह पक्के वाले ‛गुप्ता जी’नही कहलाते। 

 गुप्ता जी को कुछ लोग तोंदू कहकर बुलाते है। उनकी तोंद के बारें में लोगों का बस एक ही ख्याल है कि उनकी तोंद ठीक उसी तरह बाहर आई है, जैसे उनकी स्टेशनरी से भ्रष्टाचारी क्रान्ति। हाँ, थोड़े कट्टर हैं। स्टूडेंट्स के नाम की गंगा स्टेशनरी के आगे से बहती देख हाथ इतना साफ कर चुके है, कि खुद निहायती मैले हो चुके हैं। बेचारे मुकद्दस व्यक्ति, तोंद पर लुंगी की गाँठ लगाकर, बालों की मांग-पट्टी सजाकर सुबह ८ बजे स्टेशनरी खोलकर बैठ जाया करते हैं और आते-जाते स्टूडेंट्स को चाइनीज़ आइटम्स से रिझाकर ठग लिया करते हैं। दरअसल कॉलेज के रास्ते पर एकमात्र स्टेशनरी होने की वजह से स्टूडेंट्स को अपनी जरूरत की चीज़ दुगने मूल्य की खरीदनी पड़ जाती है और बदले में गुप्ता जी के मुँह पर सेंकडो गालियाँ बक दीं जाती हैं।

जवाब में गुप्ता जी भी कहकर कन्नी काट दिया करते हैं- “पूरे जिले में इससे कम में मिल जाये, तो नाम बदल देना।”


      ‛मार्च-2016’


मार्च की किसी दोपहर के बाद आखिरी इम्तिहान से रिहाई पाने स्टूडेंट्स का महकमा सड़क पर उतरने लगा था। ट्वेल्थ स्टैंडर्ड के बाद मेघ कम्पटीशन के लिए लाखों की भीड़ में शामिल होना चाहता था। इसलिए कॉलेज में एंट्री करने से पहले गुप्ता स्टेशनरी पर कुछ ज़रूरी कॉम्पिटिटिव बुक्स देखने पहुँच गया, कुछ किताबें देखता, उसके पहले सड़क पर एक वाहन के घिसटने की जोरदार आवाज फूटी। नज़रे घूमी, तो एक लड़का तकरीबन १३-१४ फिट ऊंचाई पर हवा में दिखाई दिया, जब तक वह नीचे गिरा, तब तक भीड़ उसके चौगिर्द थी। जितनी तेजी से लोगों की भीड़ उस तक पहुँची, मेघ भी उतनी ही तेज़ी से इसके पास पहुँचा। यह एक स्कूटीसवार स्टूडेंट और एक राह चलते व्यक्ति की जोरदार भिड़त थी जिसमें दोनों बुरी तरह घायल हुए थे। स्कूटी सवार स्टूडेंट के मुँह से खून बह रहा था। एक हाथ से पैरालिसिस था वो। दूसरे बन्दे के सर में गहरी चोट थी, जोकि मौके पर ही बेहोशी में समा गया। कुछ तमाशबीन लोगों की जमाअत से ९०% लोग उसी फार्म हाउस से थे जो गुप्त स्टेशनरी के ठीक सामने था, शायद यही लोग उस दोपहर की वेडिंग-सेरेमनी का भी हिस्सा थे।

 कायदे से यहाँ एक एम्बुलेंस की सख्त ज़रूरत थी, जिसे फार्म हाउस पर आकर अपना पहला ब्रेक कसना था। हालाँकि नंबर डायल का अदना-सा काम उस भीड़ के लिए कोई बड़ा काम था। शायद उतना बड़ा, कि इतना करने से उन लोगों के हक का कुछ छीन जाता। सो लोगों से सिर्फ वही सुनने को मिला जो लंबे अरसे से हिंदुस्तान के चप्पे चप्पे ने सुना।

’बैटरी लो!’ 

 ‛नो बैलेंस!’ 

 ’आई डोंट हैव मोबाइल!’

एक के बाद एक(तमाम) झूठी बात गढ़ने के बाद तमाशबीन भीड़ छंटती रही और दोनों की सांसे ढीली पड़ती रही। फार्म हाउस पर मौजूद सैंकड़ो लोग और उनकी गाड़ियाँ सिर्फ अपने ब्रांड और उन बुझदिल लोगों की मरती इंसानियत बयां करती रही। किसी की इतनी मजाल नही थी कि इन दोनों को गाड़ी में बैठाकर किसी हॉस्पिटल पहुँचा दिया जाए।

खैर, एग्जाम शुरू होने में केवल दस मिनट बाकी थे। कॉलेज का मेन गेट कभी भी बंद हो सकता था। इसलिए अब ज़रूरी था उन सभी स्टूडेंट्स का एंट्री कर लेना, जो मेघ के साथ इत्मिनाम से सड़क पर पड़े उन दोनों को देख रहे थे।

 परीक्षा के नजरिये से बेशक मेघ क्लासरूम में मौजूद था लेकिन कहीं-न-कहीं खुद को वह उसी फार्म हाउस पर छोड़ आया था। जहाँ एक एम्बुलेंस की ज़रूरत से कहीं ज्यादा ज़रूरत थी।

इस हादसे के बाद मेघ अपने रिधम से टूट चुका था। परीक्षक की कोई गलती नही थी, न ही उसे परीक्षक से कोई शिकायत थी। सारे प्रश्न उसकी तैयारी के हिसाब से उतरे थे। लेकिन उस दर्दनाक हादसे के बाद वह अधिकतर प्रश्नों के सही उत्तर नही दे पाया।

 K2So4.(Al2So4)3.24H20 सूत्र व इसकी विशेषताएं लिखते-लिखते मेघ को वही बेबस लड़का याद आ रहा था। सोच रहा था कि आज उसके साथ यह हादसा न होता तो वो भी किसी क्लासरूम में बैठकर इत्मिनान से यह सूत्र लिख रहा होता और अपने २ नम्बर पक्के कर चुका होता। कभी-कभी सब कुछ कितने इत्तेफाक से हो जाता है ना। शायद हम सभी जानते हैं कि रक्त स्त्राव रोकने के लिये इस सूत्र का प्रेक्टीकली यूज़ कितना फायदेमंद है। लेकिन यूजफुल होते हुए भी यह सब उस लड़के के लिए बहुत अनयूजफुल था।

 चलिए ये तो अलग बात हुई लेकिन हाँ! उस भीड़ से मेघ की बहुत-सी फरियादें जुड़ी थी। किसी की साँसों से बढ़कर आज आज दुनिया के लिए ज़रूरी हो चुका था। असल में कुछ नहीं; फिजूल में बहुत कुछ। 

 मेघ कॉलज से बाहर निकले और फॉर्म हाउस पर जा पहुँचे। वहाँ का दृश्य अब पूरी तरह बदल चुका था। वाहनों की दौड़ जैसे पहले हुआ करती थी, अब होने लगी थी। जिस स्कूटी से एक्सीडेंट हुआ था, पुलिस उसे थाने में ले जाने की तैयारियाँ कर रही थी। मेघ के अंदर एक अजीब-सी बैचैनी थी। उसके लिए बहुत ज़रूरी हो चला था उस दोनों के मरते हालातों से मुखबीर होना। घटना का अंत जो भी हो, जैसा भी हो, लेकिन पूरा कॉलेज उन दोनों की सलामती के लिहाज से एकजुट होकर इबादत कर चुका था। 

उस दोनों के साथ क्या हुआ क्या नही। ये सब जानने के लिए मेघ की कोशिशें लगातार जारी थी। उसने कुछ लोगों से पूछताछ भी की। लेकिन कोई कुछ नही बता पाया। मेघ को लगा कि, गुप्ता जी शायद कुछ बता पाएँ, आखिर उनकी स्टेशनरी के सामने का मामला है। लेकिन पता चला, गुप्ता जी भी तभी से दुकान बन्द करके गायब है। मेघ भी पापा का देरी से घर लौटने वाले गुस्से को ध्यान में रखते हुए वापस घर लौट गया।


      अगली सुबह

      ‛सिटी न्यूज’-

 “सत श्री काल, नमस्कार, आदाब! स्वागत है आपका अपने चैनल ‛सिटी न्यूज’पर और मैं ‛पंकज श्रीवास्तव’ हाजिर हूँ आज की खास खबरों के साथ। आइये डालते है आज की सुर्खियों पर एक नज़र।"

“ ‛दिव्य फार्म हाउस’ में चल रही वेडिंग सेरेमनी में उपस्थित बाराती पक्ष के एक ड्राइवर को स्कूटी ने खदेड़ा। एक्सीडेंट के दौरान पता चला कि स्कूटी चालक एक स्टूडेंट है और एक हाथ से पैरालिसिस है, जोकि अपनी आखिरी परीक्षा देने के लिए रोड़ से गुजरते हुए एक ड्राइवर से भिड़ गया। बड़े दुख की बात थी कि सैंकड़ो की भीड़ पुलिस का इंतज़ार करती रही लेकिन किसी ने इतनी परेशानी नहीं उठाई, कि उस लड़के (स्टूडेंट) को किसी हॉस्पिटल तक पहुँचा दे। जबकि दूसरा युवक, जो की बारातियों का ड्राइवर था, कुछ देर बाद बारातियों द्वारा हॉस्पिटल पहुँचा दिया गया। करीब आधे घण्टे बाद फार्म हाउस के सामने मौजूद ‛गुप्ता स्टेशनरी' के मालिक जॉनी गुप्ता को जब इस बात की भनक लगी तो ऑन द स्पॉट उस लड़के को अपने स्कूटर पर बैठाकर हॉस्पिटल पहुँचाया। लड़के को होश आने पर पता चला कि वह अनाथ है और एक फैक्ट्री में काम करके अपनी पढ़ाई और घर चलाता है। जानकारी मिलने के बाद जोनी गुप्ता ने हॉस्पिटल और डॉक्टर की सारी फीस भरी। और साथ-साथ उस लड़के की सारी पढ़ाई-लिखाई का ज़िम्मा अपने सर लिया।

 ऐसा शख्स, जिसने मरती इंसानियत से अलग हटकर इंसानियत का फर्ज अदा किया है ‛सिटी न्यूज’ ऐसे व्यक्ति (जोनी गुप्ता) को सेल्यूट करता है। ‛The happiest update of this accident'- स्टूडेंट अब खतरे से बाहर है।”

” यार, गजब आदमी है। एक तरफ पुण्य, एक तरफ पाप। लूटता भी है, लुटाता भी है।"

मेघ के पापा अनिल ने टी.वी. स्क्रीन पर नज़र गड़ाते हुए श्रीमती जी से कहा।

मेघ को टी.वी. देखना पसंद नही था, न्यूज चैनल तो बिल्कुल नहीं। लेकिन जब न्यूज चैनलों पर छाने वाले गुप्ता जी, मेघ के कानों तक पहुँचे तो आंखे हैरत से ऊपर चढ़ने लगी। हाँ, वह बात अलग थी कि उसने अपनी इन आंखों को एक इब्तिसाम से बदल लिया और बहुत जल्द ‛गुप्ता स्टेशनरी’ जाने का फैसला कर लिया। मेघ ने यह बात घर बताई कि वह बुक्स खरीदने ‛गुप्ता स्टेशनरी’ जा रहा है। लेकिन असल में वह कॉम्पीटिटिव बुक्स खरीदने नही, बल्कि कल की आपबीती गुप्ता जी की मुँह जुबानी सुनने निकला था। 


    

  


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