गरीब
गरीब
साड़ियों के विशाल शोरूम में बैठी मिसेज कामना जैन ने मन से सारी दुकान में नजर घुमाते हुए इशारा कर रही थी वह बताना वह नीली नहीं उसके पास की ऑरेंज नहीं, ऊपर की सिल्क, बनारसी, नहीं और भी ऊँची।
दरअसल उनका मन कुछ और सोच रहा था, दुकानदार उनके मन की पसंद को पढने की कोशिश करते हुए अलमारी से साड़ियों का ढेर लगा रहा था। वह जानता था कि कामना जी को साड़ियां पसंद आ जाती वो पचास हजार की ग्राहक है।
मगर कामना जी की नजर शोरूम के ठीक सामने फुटपाथ पर साड़ियों की दुकान को देख रही थी जहां मुश्किल से पंद्रह- बीस साड़ियां लकड़ी के तख्त पर फैलाए दुकानदार अपने ग्राहकों को साड़ियां दिखा रहा था।
एक ग्राहक पति- पत्नी बड़े तन्मयता के साथ साड़ियां देख रहे थे। ग्राहक पति पत्नी बड़े शौक से अपनी पत्नी के रंग के अनुसार साड़ियों का चयन कर रहा था।
कामना जी बड़ी देर से उन दोनों पति- पत्नी के क्रियाकलापों को देख रही थी और तोल रही थी अपने जीवन के रेगिस्तान से उनके मनुहार, अनुराग भरे सच को।
पति ने एक धानी रंग की साड़ी पत्नी के सिर से कंधों तक फैला दी फिर छोटे शीशे में देख पत्नी खुशी से चहक उठी जी यही ले लेते हैं, बुहत सुन्दर लग रही है।
कामना जैन वर्तमान को ठेलते जीवन के 25 वर्ष पीछे जाकर खंगाल आई। उनके पति एक बड़े व्यापारी थे जिन्हें पैसे की कोई कमी न थी लेकिन प्यार मनुहार ,अनुराग की खुशबू को कभी महसूस नहीं किया समझाना चाहा तो जवाब था पैसे से चाहो तो बाजार खरीद लो।
कामना जी आवेश में थरथरा उठी उसे अपनी शक़्ल सूखे पेड़ की ठूंठ की तरह बेज़ान और दयनीय लगी।
कामना जी मुड़कर फुटपाथ वाली दुकान की ओर देखा। पति पत्नी ( ग्राहक) के साथ गले में हाथ डाले खड़ा है, आईने में अपने सुख के वैभव को देख रहा था जो करोड़ों की मालकिन गरीब कामना जी के पास नहीं था।
