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Jyoti Deshmukh

Others

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Jyoti Deshmukh

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एक तस्वीर गरीब स्त्री की

एक तस्वीर गरीब स्त्री की

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देखी तस्वीर एक गरीब स्त्री की, कड़ी धूप में एक अबला स्त्री दिन भर कठिन परिश्रम करती, गरीबी की तंगी से चोट खाई वह फिर भी मेहनत करतीस्त्री को यौवन का लेशमात्र मद न होकर तन पर फटा हुआ झीना सा वस्त्र पहनती, कड़ी धूप में भूख प्यासी वो परिश्रम करने से न कतराती नमक रोटी खाकर अपनी गरीबी से बेहाल वह अपने भाग्य को कोसती पर अपने जीवन में रूखी सूखी खाकर फिर भी वह तृप्त हो जाती क्योंकि अपने बच्चों के लिए जीती

अक्सर वो फिरती अपनी मुफलिसी का बोझ रख नाजुक कंधे पर रद्दी का समान बोरे में डाल कर अपने बच्चों का पेट पालतीरंग सांवला मन बावला था उसका मद मस्त रूप गर्मी में जला साया था उसका, देख उसकी यौवन भरी देह कुछ लोग उसे मालिन नजर से दिखा रहे थे उसे स्नेह, उसकी चुप्पी साधे अवस्था बस हिम्मत न हार वह फिर भी परिश्रम करती 

एक स्त्री जो घरों में बर्तन धोती, जो सुबह शाम घर-घर भागती-दौड़ती ताकि भर सके अपने बच्चों का पेट उन्हें दे अच्छी शिक्षा, और सुरक्षित कल ऐसा अपने बच्चों के लिए अथक प्रयास करती बच्चों के लिए नए ख्वाब संजोए एक स्त्री आत्म विश्वास से लबरेज धान के खेतों में लग्न से काम करती तैयार फसलें कर बराबर श्रम करती एक स्त्री जो छोड़ अपने शराब पीने वाले पति को बेचती खिलौने फुटपाथ पर फिर भी उसके लबों पर मुस्कान रहती, अपने खिलौने से छोटे बच्चे के चेहरे पर खुशी लाती 

मैंने देखी एसी तस्वीर गरीब स्त्री की जो ना कभी हिम्मत हारती स्वयं कांटों भरी जिंदगी जीकर अपने बच्चों के जीवन को फूलों सा महकती 

मौन समाज है बेसहारा स्त्री के लिए ,निःशब्द हूँ मैं एक स्त्री की हिम्मत के लिए जो कष्ट सह कर अपने बच्चों का भविष्य संवारती



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