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Jyoti Deshmukh

Inspirational

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Jyoti Deshmukh

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अपना काम खुद करे

अपना काम खुद करे

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राम के पापा अफसर थे। उनके घर में दो नौकर थे और यही वजह थी कि राम कभी अपने हाथ से कोई काम नहीं कर्ता था। उसे पानी भी पीना होता था तो नौकर ही उसे गिलास पकड़ता। 

एक दिन नौकरों को किसी काम से अपने गाँव जाना पड़ा। वे दस दिन तक नहीं आने वाले थे। राम पहली बार अपने मम्मी-पापा को काम करते हुए देख रहा था। उसे पापा को बाजार से समान लेकर आने और मम्मी को बर्तन साफ करते देख अच्छा नहीं लग रहा था। 

उसने माँ से कहा 'माँ आपने दोनों दोनों नौकरों को क्यों जाने दिया? एक को रोक लेती? माँ ने कहा, 'उन्हें जरूरी काम था, इसलिए वे गए। हमे अपना काम खुद करने की भी आदत होनी चाहिए। 

राम को माँ की बात अच्छी नहीं लगी। तभी माँ ने राम से कहा,राम आटा खत्म हो गया है। तुम एक काम करो। गेहूँ का थैला रखा है। उसे साइकल पर ले जाओ और पिसा वा कर लाओ। यह सुनकर राम बुहत परेशान हो गया। 

वह माँ को मना नहीं कर सकता था, क्योकि यदि वह मना कर्ता तो माँ स्वयं गेहूँ पिस वाने ले जाती। मन मसोस कर उसने गेहूँ का थैला उठाया और अपनी साइकल पर रखा। वह सोच रहा था कि यदि उसके किसी दोस्त ने उसे ये सब करते देख लिया तो सब उसकी खिल्ली उड़ाए गे। 

यह सोचते हुए वह उस रास्ते से गया, जहां उसके किसी दोस्त के मिलने की संभावना नहीं थी। चक्की पर पहुँचकर उसने थैला दे दिया। दुकानदार ने उसे आधे घंटे में आने को कहा। 

जैसे ही वह लौट रहा था, उसने देखा कि बाजार में मास्टर जी का बेटा चीकू अपने दादा की दुकान पर झाड़ू लगा रहा है। वह उसी की क्लास में था। चीकू ने राम को देखा तो उसे आवाज लगाकर बुला लिया। राम वहाँ चला गया। 

राम सोच रहा था मास्टर जी तो बुहत अमीर है, फिर भी चीकू खुद झाड़ू लगा रहा है। 

उसने पूछा, चीकू क्या तुम्हारी दुकान पर नौकर नहीं है, जो तुम खुद झाड़ू लगा रहे हो। 

चीकू बोला, वह देखो, चार नौकर है यहां। पर मैं खुद झाड़ू लगाता हू। दादाजी कहते हैं कि स्वावलंबी बनना चाहिए। अपना काम खुद करना चाहिए। इससे बुहत खुशी मिलती है। यह सुनकर राम का मन बदल चुका था। वह अपना काम स्वयं करने लगा। 


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