गंगा नदी का निवेदन

गंगा नदी का निवेदन

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मैं हूँ गंगा, एक नदी। मुझे देव नदी का सम्मान मिलता है आपलोगों से। हर पूजा पाठ में मेरे जल को शुद्ध मान कर प्रयोग किया जाता है। इसका कारण है मेरी शुद्धता। मेरे गर्भ में अनेक जीव-जंतु पलते हैं किंतु मेरे जल को जब बहते नदी से बाहर ला संग्रहित किया जाता है तो सालो-साल इसकी शुद्धता बनी रहती है। अर्थात इसमे कोई भी कीटाणु नहीं पनप सकते, यह बिल्कुल स्वच्छ रहता है।

मैं भारत भूमि पर 2525 किलोमीटर की यात्रा तय करती हूँ, अपनी शुद्धता को बरकरार रख। इस लम्बी यात्रा में यमुना, रामगंगा, घाघरा, कोसी, महानदी एवं सोन के साथ अनेक उपनदियों को अपना साथी बनाते हुए मैं सदा लोक कल्याण को तटपर रही और सबों का भरपूर प्यार पाया। पर आज मैं अपने अति प्यार करने वालों की आस्था की शिकार बन बीमार हो रही हूँ। मेरे जल की शुद्धता इस कदर समाप्त हो रही है कि कहीं-कहीं तो मेरे जल में आश्रय पाने वाले नन्हें-नन्हें जीव-जंतु अपनी जान गंवा दे रहे हैं, जिसे देख मुझे बहुत पीड़ा होती है। 

मैं अपने प्यारे बन्धुओं से निवेदन करती करती हूँ कि आपलोग मेरी बीमारी के कारण को समझें और एक वृहद अभियान चला मुझे रोग मुक्त करें। अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब मैं धरती से विलुप्त हो जाऊँगी। 

धरती से विलुप्त होना मैं बिल्कुल नहीं चाहती क्योंकि भारत भूमि को हरा भरा रखने का मैंने प्रण लिया था। मेरी प्रतिज्ञा आपके हित में है और अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिए मैं आपलोगों का साथ और सहारा चाहती हूँ। 

कृपया मेरे निवेदन पर ध्यान दे कर मेरे और अपने, दोनों के अस्तित्व को बचा ले।

इति गंगा।


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