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Chandra prabha Kumar

Fantasy

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Chandra prabha Kumar

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गन्धराज और गन्धचोर

गन्धराज और गन्धचोर

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एक फूल होता है गन्धराज। गन्ध अर्थात् सुरभि-ख़ुशबुओं का राजा। इसके चमकीले हरे पत्ते, कोंपलें और हरी चादर ओढ़े कलियॉं आकर्षक होती हैं। कलियॉं जब खिलती हैं तो धीरे धीरे अंदर से मोती जैसे पंखुड़ियां और बाहर हरियाली लिए फूल धीरे धीरे खिलता है। सारे में सुगंध का झोंका फैलता है । एक फूल ही ख़ुशबू फैलाने को काफ़ी है। 

प्रसन्न होकर काफ़ी मन से हमने भी अपने बग़ीचे में गंधराज रोपा। उसे नन्हे पौधे से बढ़ते देखा। उसमें लगे एक नए फूल को सबको दिखाया, प्रशंसा अर्जित की। हर आने वाले मेहमान को गंधराज दिखाने की सामग्री था। हमको उस पर अभिमान था। प्रतीक्षा कर रहे थे कि कब वह ख़ूब फूले ,बढ़े। 

वर्षा ऋतु की गुनगुनाहट सुनाई दी, आषाढ़ का महीना आया। गंधराज नई नई कोंपलों से भर गया। सब ओर सुगन्ध फैल रही थी। पौधा बहुत सुन्दर लग रहा था। फूल खिलने वाले थे, पर अभी खिले नहीं थे। 

हमारे यहॉं एक मेहमान आए। उन्हें गन्धराज दिखाने ले गए। प्रशंसा करते गए ।ख़ुशबू सब ओर फैल रही थी। 

पौधे में फूल तो अभी नहीं खिला था, पर नयी नयी कोपलें थी, हरे चमकीले पत्ते थे। 

वहॉं जाकर देखा तो कलियों पर ढेरों पीले ततैयें बैठे हुए थे। पूरा पौधा ही ततैयों से ढक सा गया था। हम तुरन्त वहॉं से सावधानी से हट आए। 

पेड़ पौधों पर तितली घूमते उड़ते देखना आम बात थी। भौंरे भी दिख जाते थे। पर ततैयें वह भी पीले पीले इतने सैंकड़ों की संख्या में कभी न देखे थे ।वे पौधे से ऐसे सटे हुए थे जैसे मधुमक्खियाँ छत्तों से बाहर बैठी हों। हरे हरे पत्तों पर पीले पीले ततैयें! क्या ही नज़ारा था!बहार थी। 

बचपन में एक बार एक ततैयें ने काटा था, उसी का दंश इतना था कि अभी तक डराने को काफ़ी था। फिर ये इतने सारे ततैयें! पास जाओ तो उड़ जाते और फिर अाकर पौधे पर बैठ जाते। 

पता चला कि गन्धराज की उगती कोंपलों की ख़ुशबू ततैयों को बहुत पसन्द है और वे चौबीसों घंटे उस पर बैठे रहते हैं। फूल खिलने पर ही उड़ेंगे। गंधराज के पौधों पर ततैयों का इस तरह एकाधिकार देखकर आश्चर्य हुआ। अब उन्हीं पौधों से दूरी बन गई। ऐसी गन्ध किस काम की जो डंक को आमंत्रित करे। 

माली को बुलाकर पहली बार वे छोटे पौधे छंटवाए। चारों तरफ़ से पत्ते छँटते ही धीरे धीरे ततैयों का हजूम भी ग़ायब हो गया। ‘न रहेगा बॉंस न बजेगी बॉंसुरी ‘ वाली बात हो गई। 

 ख़ुशबू और ततैयों का रिश्ता ! यह भी सुगन्धप्रेमी निकला। ततैयें गन्धचोर निकले! गन्धराज की ही गन्ध चुराने आ गए। 

सच ही सृष्टि एक है, सृष्टिकर्ता एक है। घ्राण शक्ति केवल मानवों में ही नहीं, इतर जीवों में भी प्रबल है और गन्ध की आसक्ति भी। 


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