Vigyan Prakash

Drama

5.0  

Vigyan Prakash

Drama

गली का आशिक

गली का आशिक

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राधे भईया ने जिन्दगी भर बस मोहब्बत की और कुछ नहीं किया। वैसे सही कहे तो उनका दिल और कहीं और लगता भी नहीं था।

पढ़ाई लिखाई वैसे भी कोई होती नहीं थी उनसे और खेल कूद बस गली तक ही रह गई। 

मगर मोहब्बत भी ऐसी नहीं की आज की और कल ख़तम। हमारे राधे भैया तो ऐसे है की अगर एक बार रिश्ता जोड़ ले तो फिर साथ कभी ना छोड़े। उनका उसूल है जहाँ इंसान दिखे उसकी मदद करो, उसे चाहिये हो या नहीं इस बात से फरक नहीं पड़ता।

वैसे तो राधे भैया ने कोई ऐसा बड़ा काम नहीं किया था कि उनको इतनी इज़्ज़त दी जाये मगर गली के सब लौंडों के लिये राधे भैया भगवान से कम नहीं थे। 

लड़कों के माँ बाप भी कम नहीं मानते थे उनको। मजाल है की किसी के घर का कुछ काम निकला हो और राधे भैया वहाँ प्रकट ना हुए हो। पूरे मोहल्ले का कोई घर ऐसा नहीं था जहाँ उन्होने अपने कंधे पर उठा कर सिलेंडर ना पहुंचाया हो। गर्मियों में पानी के टैंकर से पानी ले जाना, डिश वाली छतरी ठीक करना ऐसे जाने कितने काम थे जो राधे भैया यूं ही कर दिया करते थे।

और ऐसा ना था की बदले में उन्हें कुछ ना मिलता था। वो कितने सालों से वर्मा लौज में रह रहे थे ये मोहल्ले का कोई आदमी ना बता सकता था। वर्मा जी से पूछने पर वो कहते "जाने कितने दिन हुए भईया। अब तो हमारे लड़के जैसा हो गया है।"

और हर घर से लगभग हर दूसरे दिन कोई ना कोई सब्ज़ी, पकवान पहुँच जाता था वर्मा लौज के कमरा नम्बर पाँच में। यही था राधे भईया का शीशमहल। और ऐसा लगता था अब वो उसका हिस्सा बन गये थे। एक दिन भी अगर कहीं चले जाते तो उनके नाम की हर ओर पुकार मच जाती थी। 

SSC की तैयारी कर रहे थे राधे भईया।

साल भर में जितने त्योहार आते थे होली, दीवाली, दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा, जन्माष्टमी, सब का आयोजन करते थे और पूरे धूमधाम से करते थे। चंदा माँगने पर कोई उन्हें मना भी ना करता था।

त्योहार की रौनक थे राधे भईया और हमारी जान। फिर भी उनकी जिन्दगी के बारे में कोई ज्यादा ना जानता था। 

ऐसे में उनकी मुलाकात सपना से हुई और अंदर के मोहब्बत का ज्वालामुखी फटने के लिये तैयार हो गया। 

वैसे राधे भईया बहुत बातूनी किस्म के इंसान है मगर सपना के सामने आते ही उनके होठों पर जैसे ताला लग जाता। 

ये मामला आशिकी का था और राधे भईया सामाजिक प्रेम के आदमी थे आशिकी वाले नहीं।

ये परीक्षा मुश्किल होने वाली थी। और उनको सिख देने वाला भी कोई नहीं था। 

सपना जब से मोहल्ले में आई थी उसके घर की सारी जिम्मेदारियाँ राधे भईया ने अपने कंधे पे ले ली थी। उसका घर शिफ्ट कराने वालों में सबसे आगे राधे भईया ही थे। 

दो तीन दिनों में ही सपना के घरवाले भी राधे भईया को अच्छे से पहचान गये। मोहल्ले वालों की तारीफ ने अपना काम कर दिया। मगर ये तारीफें आपको स्नेह दिलवा सकती है मगर उनकी बेटी का हाथ नहीं। 

उधर राधे भईया भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश में लगे थे। 

सुबह सुबह उठ टहलने जाते और वापस आते वक़्त सपना के घर फूल पहुँचाते थे। 

माँ को पटाने का यही एक उपाय था। और उसके पिताजी को मनाने के लिये हर नुक्कड़ के पान का जायका ले चुके थे राधे भईया। 

दो तीन महीनों में तो उस घर के भी सदस्य जैसे हो चुके थे राधे भईया। 

मगर उनकी ज़ुबान थी की इश्क़ का इज़हार करने में कटी जाती थी। राधे भईया का इज़हार ना कर पाना हमें बड़ा खटकता था। मगर चुकीं वो हमको कुछ बोलते नहीं थे तो हम भी कोई सुझाव ना देते थे। 

मगर जो भी हो दिल के बड़े पवितर थे राधे भईया। 

देखते देखते महीने साल में बदल गये और सपना के ब्याह की बात चलने लगी। हमरे बाबूजी से भी रिश्ता देखने को कहा गया था। हमें जब ये पता चला तो हमसे रहा ना गया।

हम राधे भईया के पास गये और एकमुश्त उनसे बोला, "भईया अब और ई अन्याय नहीं देखा जाता। जा के बोल काहे नहीं देते सपना को?"

"अरे मन्ना तुम कब से जानते हो ई सब?"

"आपकी आँखें बोलती है राधे भईया। अब तो उसका रिश्ता भी होने जा रहा है।"

"तुम जानते हो मुन्ना रांझना मूवी देखे हो ना। जिन्दगी मूवी जैसी नहीं होती पर कतई कोई कोई डाएलाग फिट जाता है।"

"मोहल्ले के लौंडों का प्यार अक्सर डॉक्टर और इंजीनियर ले जाते है। तुम खूब पढ़ो मुन्ना इंजीनियर बनना तुम।"

और मुस्कुराकर उठ कर चले गये। अगली सुबह मैं वहाँ गया तो राधे भईया कमरा खाली करके जा चुके थे जाने कहाँ?



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