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Rubita Arora

Fantasy

4  

Rubita Arora

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घर परिवार से बढकर कुछ नहीं

घर परिवार से बढकर कुछ नहीं

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अभी सारे काम निपटा कर फोन उठाया ही था तभी दोनों बच्चे आकर बोले, "मम्मा भूख लगी हैं। "मैंने बोला,"अभी तो मैंने खाना बनाया था तब तुम दोनों ने एक-एक रोटी खाकर बस कर दी" तो बच्चे बोले,"रोटी नहीं, कुछ और चटपटा सा बनाकर दो। "फोन एक तरफ रखकर उठने लगी तो पतिदेव बोले, "अगर रसोई में कुछ बनाने जा ही रही हो तो आते हुए मेरे लिए भी एक कप चाय बना लेना। " मन मारकर उठी। काम करते हुए सोचने लगी कितना मुश्किल है इतनी गर्मी में काम करना। काश!!कभी तो इस सबसे छुट्टी मिले।

पति और बच्चों को उनका खाना पीना देकर मैंने कहा, अब मुझे आराम से सोना है, कोई मत उठाना। थोड़ी देर में मैंने देखा मेरे सामने बहुत सुंदर राजकुमारी खडी हैं। मैंने पूछा आप कौन हो और यहाँ क्या कर रही हों? राजकुमारी बोली, मैं परियों के देश की राजकुमारी हूँ और आज तुम्हें अपने साथ घूमाने लेकर जाऊँगी। मैं कुछ और कहती इससे पहले ही वह मेरा हाथ पकड़ चल पडी। थोड़ी देर में हम आसमान में उडने लगी। फिर राजकुमारी एक जगह रूकी। वहां बहुत सुंदर-सुंदर ड्रेसेज़ पडी थी। राजकुमारी बोली, यह सब तुम्हारे लिए है जो मर्जी पहन लो। मैं पागलों की भांति ड्रेसेज़ को देखने लगी। सब एक दूसरे से बढकर सुंदर थी। समझ नहीं आ रहा था कौन सी पहनूं। आखिर एक गुलाबी ड्रेस पहन कर तैयार हुई। राजकुमारी मुझे लेकर आगे चल पडी। फिर एक जगह बहुत सुंदर-सुंदर गहने पडे थे। राजकुमारी बोली, यह सब तुम्हारे लिए है। जो मन करें पहन कर तैयार हो जाओ। अब हमने बहुत सुंदर नजारे देखने जाना है। मैंने झट से ड्रेस से मिलते जुलते गहने पहन लिए। शीशे में अपने आप को देखा तो मैं भी किसी परी से कम नहीं लग रही थी। चेहरा एकदम साफ कोई दाग धब्बे नहीं,पूरा चमक रहा था और बाल भी एकदम सैट,लिपस्टिक, बिंदी, लाइनर सब अपनी जगह सही थे।

अब राजकुमारी आसमान में उडती हुई मुझे कई मनमोहक नजारे दिखाने लगी। फूल, बाग,बागीचे, पेड़-पौधे सब हमारे साथ-साथ चलने लगे। जहां भी जाते पंछी बोलते स्वागत है आप सबका। ऊपर बादलों में उडते हुए देखा, धरती बहुत सुंदर दिख रही थी। इंद्रधनुषी पींघ पर झूले लेते हुए मैने कई सैल्फी खींची। जन्नत के नजारों का आनंद लेते हुए अचानक मुझे भूख महसूस होने लगी। मैंने राजकुमारी को बताया तो वह मुझे ऐसी जगह ले आई जहाँ तरह-तरह के खाने उपलब्ध थे। राजकुमारी बोली, यह सब तुम्हारे लिए हैं जो मन करें खा लो और हाँ, इन्हें खाने से मोटापा नहीं आता। तुम बेफिक्र होकर जितना मर्जी खा सकती हो। हाय!!मैं क्या करूँ, यकीन नहीं आ रहा मुझे मेरी किस्मत पर। सोचने लगी शुरुआत किससे करूँ तभी मुझे सामने अपनी पसंदीदा पानी-पूरी नजर आई। हे भगवान!!पानी पूरी के लिए तो मैं पता नहीं कितने दिनों से तरस रही थी। झट से एक उठाकर मुँह मे डालने लगी तो ध्यान आया मैं यहां मजे ले रही हूं और उधर मेरे बिना मेरे बच्चों का क्या हाल हो रहा होगा। पता नहीं कुछ खाया भी होगा या मेरी इंतजार मे भूखे बैठे होंगे। पतिदेव भी मुझे घर न पाकर कितने परेशान हो रहे होंगे। सासुमां ने भी दवाई नहीं ली होगी। नहीं, नहीं!! मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हूं??


मैंने राजकुमारी से कहा,बस अब और नहीं, मुझे वापिस अपने परिवार के पास जाना है। राजकुमारी बोली, ऐसा कैसे हो सकता है अभी तो हमने और भी बहुत आनंद लेने है। मैंने कहा, नहीं!! अपने परिवार से दूर रहकर कैसा आनंद। मेरा असली आनंद तो मेरे बच्चों की बातों में है, पति की बाँहों मे हैं, उनसे अलग मैं कैसे रह सकती हूं। हो सकता है कभी सूरज अपना रास्ता भूलकर पूर्व की जगह पश्चिम से निकल आए परन्तु एक औरत का दिल कभी घर परिवार से दूर होकर नहीं धडक सकता। जैसे मछली पानी से दूर रहकर जिंदा नहीं रह सकती उसी प्रकार एक मां बच्चों के बिना मर जायेगी। राजकुमारी को गुस्सा आ गया। बोली, फिर तू मेरे साथ क्यों आई?? अब तो तुम्हें यही मेरे साथ रहना पडेगा। मै उसके पैरों में गिरकर गिडगिडाने लगी, मुझे माफ कर दो। मुझे अपने घर अपने बच्चों के पास जाना है। मैं उनके बिना नहीं रह सकती। मैं लगातार नींद में बोले जा रही थी। इतने में पतिदेव ने जोर से हिलाकर मुझे जगाया। जल्द ही अहसास हुआ मैं तो कोई सपना देख रही थी। मेरे पति मेरे बच्चे सब मेरे पास है तब जाकर जान मे जान आई। यूं लगा मानो सारे जहां की खुशियां मेरी झोली में सिमट गई हो। सचमुच हम औरतों के लिए तो घर परिवार ही सबकुछ हैं, इसके सामने जन्नत के नजारे भी कुछ नहीं।


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