घर में राजनीति
घर में राजनीति
मैं नौवीं कक्षा में आ गया था तब भी मुझे किन्हीं कार्यों के लिये मम्मी पापा की आज्ञा लेनी पड़ती थी। ऐसा मेरे घर का अनुशासन था। मुझको जब भी स्कूल से पिकनिक जाना होता या दोस्तों के साथ कहीं जाना होता था तो मैं मम्मी से पूछता तो मम्मी कहती पापासे पूछ लो। पापा या तो मना कर देते या कहते मम्मी कहे तो चले जाना। दोनों को पता था कौन किस काम के लिए मना करेगा इसलिए जिस काम को पापा मना करते मम्मी उसे पापा पर छोड़ देतीं और जिस काम को मम्मी मना करने वाली होतीं पापा उन पर छोड़ देते थे ।
मैं उन दोनों की राजनीति को अच्छी तरह समझ चुका था। उस राजनीति के जवाब में मैंने राजनीति खेली। अबकी बार मेरे दोस्तों ने सिनेमा देखने का प्रोग्राम बनाया। उन दिनों दादाजी आये हुए थे। मैंने अपने जेबखर्च से कुछ पैसे बचाये हुए थे। मैंने माँ से सुबह सुबह पूछा, “मम्मी मेरे दोस्त आज सिनेमा देखने जा रहे हैं उनके साथ मैं भी चला जाऊँ?”
मम्मी ने कहा, “पापा से पूछ ले।”
मैं बोला, “पापा से मैं पूछ लूँगा। आपकी तरफ से तो हाँ है न?”
मम्मी काम में व्यस्त थीं।
उन्होने कह दिया, “पापा कह दें तो चले जाना।
मैं ने पापा के काम पर जाने का इंतजार किया। उनके जाने के बाद मैंने दादाजी से पूछा, “दादाजी, एक अच्छी पिक्चर लगी है। मेरे दोस्त जा रहे हैं। मैं भी चला जाऊँ?”
दादाजी ने कहा, “मम्मी पापा से पूछ लो।”
मैं ने कहा, “पापा तो काम पे चले गये।”
दादाजी ने कहा, “तो मम्मी से पूछ लो।”
मैं ने कहा, “मम्मी ने तो हाँ कर दी है।”
दादाजी बोले,“फिर क्या दिक्कत है? जाओ। क्या पैसे चाहिये?”
मैं ने कहा, “ पैसे तो हैं मेरे पास।”
दादा जी ने फिर भी अपने कुर्ते की जेब से दस रूपये का नोट निकाल कर मुझको दे दिया।
सिनेमा का समय 12:30 बजे था। मैं खाना खाकर लगभग 12 बजे मम्मी से बोला, “मम्मी! मैं, राजीव और बंटी के साथ डिलाइट टाकीज़ में पिक्चर देखने जा रहा हूँ।”
मम्मी ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा, “क्या तुमने पापा से पूछा था? उन्होने हाँ कर दिया था?”
मैं ने मुस्कराते हुए कहा,” पापा तो काम पर जा चुके थे। मैंने पापा के पापा से पूछ लिया।“
और फिर मैं बाहर भाग आया। दोस्त सिनेमा जाने के लिये मेरा इंतजार कर रहे थे। डिलाइट टाकीज़ अधिक दूर न थी। हम तीनों पैदल ही टाकीज़ के लिये चल दिये।