यजवीर सिंह ‛विद्रोही’

Inspirational

5.0  

यजवीर सिंह ‛विद्रोही’

Inspirational

.......घर का न घाट का........

.......घर का न घाट का........

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 गेहूं की फसल पूरी तरह पक चुकी थी।दलित मौहल्ले में सभी ने अपने - अपने दरांती,हंसियों पर धार रखना शुरू कर दिया था।हरिया इकलौते सुमित को पढ़ाने की खातिर कभी भी दिन-रात नहीं देखता था।बस एक ही धुन सवार रहती कि सुमित को इस नरक से निकालकर बङा आदमी बनाना है।ज्यादा काम करने से हरिया जवानी में ही बुढ़ा गया था।वैसे भी गरीबी, लाचारी किसी गरीब को जवान होने ही कहाँ देती है ? सुमित भी पढ़ने में बाप की उम्मीद पर खरा उतर रहा था।दसवीं में जिले में पहला नम्बर आया था।सुमित शहर में रहकर जमींदारों की ज्यादती, तमाम तरह के भेदभाव,समाज पर होने वाले उत्पीड़न को कुछ-कुछ समझने लगा था।खेलने-कूदने के समय में अपने महापुरुषों की जीवनियां पढा करता था।बारहवीं की परीक्षा की तारीख घोषित हो गयीं थी।परीक्षा पूरे महीने भर चलनी थीं।इस कारण सोचा कि बापू क्या परेशान होंगे, मैं ही गांव जाकर कुछ खर्चा और राशन की जरूरी चीजें ले आता हूँ।सुमित गेहूं कटाई के मौके पर पहली बार गांव आया था।सुमित घर पहुंचा तो पता चला कि बापू ने बीमार होते हुए भी गेहूं काटने का काम बंद नहीं किया था।काम खत्म होने के बाद आज हरिया घर बङी ही मुश्किल से आ पाया था।जैसे-तैसे घर पहुंचा और धड़ाम से खाट पर गिर गया।कमजोरी के कारण चक्कर आ गये थे।काफी देर सुमित और उसकी मॉ रामरती ने हाथ-पैरों की मालिश की तब जाकर हरिया के शरीर में हरकत हुई थी।सुबह जब सुमित शहर लौटने को था तभी जमींदार आ धमका।

 ''अरे, हरिया आज कैसे अभी तक खाट पर पङा है ? चल,काम पर चल।बाली टूटकर धरती में गिरी जा रही हैं और तू नौ बजे तक आराम कर रहा है।''

  'जमींदार बोला था।बोला कहाँ खरीखोटी सुना रहा था।'

  ''मालिक, आज तबीयत ठीक ना है ,दो दिन की दवाई दी है डाक्टर ने और आराम करने को कहा है।आज तो नहीं कल काम पर जरूर आ जाऊंगो।बस,आज की मौहलत दे दैयो।''

 हरिया खाट में पड़े गिड़गिड़ाते हुए बोल रहा था। बेरहम जमींदार को हरिया की हालत से कोई मतलब नहीं था।  

''ठीक है,तो तू ना चलै तो अपनी छोरा कूं भेज दै।एक दिन में कछु नाय भयो जात।जमींदार भी तो दो जमात तक ही पढा था।पढाई से उसका इतना ही मतलब था।वैसे भी जमींदार लोग सोचते हैं कि इनको पढकर कौन सा बैरिस्टर बनना है ? चल री रामरती हरिया की जगह जा छोरा ले चल।'' 

जमींदार अपने अंदाज में बके जा रहा था।'

''जमींदार जी, मैं खेत काटने नहीं आया गांव।मेरी बारहवीं की बोर्ड परीक्षा हैं।मैं शहर जा रहा हूँ।नौकरी लग जाने के बाद तो मैं मॉ-बापू को भी काम न करने दूंगा.

 'सुमित जमींदार को अपनी कहकर चुप हो गया था।'

 हरिया,तेरो छोरा पागल है गयो है।जादा पढ़ गयो है।अरे तू जाकि पढाई बंद करा और कुछ काम-धंधों सिखा।तमाम पढे-लिखे अवारा की तरह घूम रहे हैं।छोरा हाथ सै निकर जायैगो।फिर जै 'घर को रहेगो ना घाट को' ......।''

जमींदार ,हरिया को एक दार्शनिक की मानिंद ज्ञान देने लगा था।'

"जमींदार, आप और अपने समाज को लेकर रहिये घर और घाट पर.......।मैं जा रहा हूँ पढ़ने शहर और बापू भी ठीक हो जाने के बाद ही काम देखेंगें।हमें घर और घाट पर अब ना रहना।हमें पढ-लिखकर ऊंची शिक्षा हासिल करनी है और परिवार, समाज व देश का नाम ऊंचा करना है।


 सुमित अपना बैग लेकर मां-बापू के चरण छूकर घर से निकल लिया था।


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