यजवीर सिंह ‛विद्रोही’

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यजवीर सिंह ‛विद्रोही’

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कठघरे में

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 शहर में एक स्वर्णकार के यहाँ चोरी हो गयी थी।शहर की पुलिस चारों तरफ चोर की तलाश में छापे पर छापे मार रही थी।लेकिन चोर मिलता ही नहीं था। पुलिस ने हार थककर एक मजदूर को चोरी के आरोप में पकड लिया और पूरी रात थाने में बंद रखा तथा अपने तरीके से खूब समझाया कि वो चोरी का आरोप स्वीकार कर ले।लेकिन वो मजदूर जो था,पुलिस की एक नहीं मान रहा था।उसने एक ही रट लगा रखी थी कि न तो मैंने कोई चोरी की है और न ही मुझे चोरों के बारे में जानकारी है।पुलिस ने चोरी का आरोप न स्वीकार करने पर उसकी खूब सेवा की और तब तक की जब तक कि वो बेहोश नहीं हो गया था।अगले दिन पुलिस उसे न्यायालय में पेश करने ले गयी।  "गीता पर दोनों हाथ रखकर कसम खाओ कि मैं सच ही कहुँगा और सच के अलावा कुछ नहीं।"  न्यायाधीश ने कटघरे में खडे मजदूर की तरफ मुखातिब होते हुए कहा।"जज साहब ! कटघरे में खडा आरोपी ही तो हमेशा गीता पर हाथ रखकर सच बोलने की कसम खाते आ रहा है।लेकिन आज आप दोनों हाथ संविधान पर रखकर कसम खाइये कि मैं आज पूर्णरुप से सम्यक न्याय करुंगा और न्याय के अलावा कुछ नहीं।"  कटघरे में खडे अनपढ़ मजदूर ने जज की तरफ देखते हुए जबाव दिया था।जज साहब कभी गीता की तरफ देखते तो कभी संविधान की तरफ........।  

विद्रोही शहर में एक स्वर्णकार के यहाँ चोरी हो गयी थी।शहर की पुलिस चारों तरफ चोर की तलाश में छापे पर छापे मार रही थी।लेकिन चोर मिलता ही नहीं था। पुलिस ने हार थककर एक मजदूर को चोरी के आरोप में पकड लिया और पूरी रात थाने में बंद रखा तथा अपने तरीके से खूब समझाया कि वो चोरी का आरोप स्वीकार कर ले।लेकिन वो मजदूर जो था,पुलिस की एक नहीं मान रहा था।उसने एक ही रट लगा रखी थी कि न तो मैंने कोई चोरी की है और न ही मुझे चोरों के बारे में जानकारी है।पुलिस ने चोरी का आरोप न स्वीकार करने पर उसकी खूब सेवा की और तब तक की जब तक कि वो बेहोश नहीं हो गया था।अगले दिन पुलिस उसे न्यायालय में पेश करने ले गयी।  "गीता पर दोनों हाथ रखकर कसम खाओ कि मैं सच ही कहुँगा और सच के अलावा कुछ नहीं।"  न्यायाधीश ने कटघरे में खडे मजदूर की तरफ मुखातिब होते हुए कहा।"जज साहब ! कटघरे में खडा आरोपी ही तो हमेशा गीता पर हाथ रखकर सच बोलने की कसम खाते आ रहा है।लेकिन आज आप दोनों हाथ संविधान पर रखकर कसम खाइये कि मैं आज पूर्णरुप से सम्यक न्याय करुंगा और न्याय के अलावा कुछ नहीं।"  कटघरे में खडे अनपढ़ मजदूर ने जज की तरफ देखते हुए जबाव दिया था।जज साहब कभी गीता की तरफ देखते तो कभी संविधान की तरफ........। 


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