नौटंकी

नौटंकी

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  सत्तारूढ दल के मुखिया ने दलितों के वोट पाने की खातिर दलितों से मेल-जोल बढाने के सख्त निर्देश दे रखे थे और कह रखा था कि वो सब करो जिससे दलितों को लगे कि हमारे दल के अलावा दलितों का दूसरा कोई हितैषी नहीं है।जबकि हकीकत बिल्कुल विपरीत थी।सत्तारुढ दल के प्रदेश संयोजक रामनाथ महाराज ने भीमनगर के सुनील रजक के यहाँ भोजन करने का फरमान भिजवा दिया था।

  वैसे तो सुनील की माली हालत दयनीय थी तथा कई दिन से काम भी नहीं लगा था और ऊपर से नेताओं के खाने का खर्चा।ये सोच-सोचकर सुनील की हालत पतली हुई जा रही थी।फिर भी 'अतिथि देवो भव : ' को ध्यान में रखकर पढोस के गुप्ता जी की दुकान से जरुरत भर का सामान उधार लाकर खाना बनवा लिया।तभी प्रदेश संयोजक पूरे लाव-लश्कर के साथ चमचमाती तीन -चार गाङियों से उतर पङे और अपने साथ लाये कश्मीरी गलीचे को आंगन में बिछाकर मसंद-तकियों के सहारे पसर गये।

 "महाराज ! खाना तैयार है।आप सभी खाना खा लें।"

   'सुनील एक ही सांस में बोल गया था।'

 "अरे ! सुनीलवा ; तुम काहे परेशान होते हो? हमरे पास सबही व्यवस्था है....."

   'मंत्री साहब ने पान की पीक मारते हुए कहा'

  "देखो ! सुनील ,हम तुम्हारे घर पर खाना खाने आये है न कि तुम्हारे घर का खाना खाने आये हैं।खाना हम अपने साथ लाये हैं उसी को खायेंगे.........."

   ' प्रदेश संयोजक रामनाथ महाराज एकदम आदेशात्मक लहजे में सुनील को समझाते हुए बोले'

  "जब किसी दलित के घर का बना खाना आपको खाना ही नहीं था तो फिर ई सब नौटंकी किसलिए ?......"  

    'सुनील हिम्मत जुटाते बोला'

 "औकात में रहकर बात करो सुनील........; ये सब राजनीति है । तुमको समझ नहीं आयेगी।"

   'महाराज गाड़ी में बैठते हुए बोले।'



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