वक्त
वक्त
गाँव छोडने के बाद इं आर.के.शास्त्री जी ने गाँव की तरफ न तो देखा और न जाने की कभी जहमत उठायी।चूंकि उनकी प्रियतमा निधि शर्मा को ग्रामीण जीवन सपने में भी नहीं सुहाता था।मॉ भयंकर रुप से बीमार पड गयी थी।अंतिम समय जानकार पिताजी ने खबर भिजवायी कि बेटा तुम्हारी मॉ तुम्हें बहुत याद कर रही है।वक्त हो तो खडे-खडे आ जाओ।न जाने कैसे अबकी बार शास्त्री जी का मन पिघल गया था और निधि को गाँव चलने के लिए मनाने लगे।
"आपको पता तो है कि हमारे पास वक्त कहाँ है, गाँव जाने के लिए?पिताजी को बोल दो कि वो मम्मी को लेकर यहीं हमारे पास आ जायें।"
'निधि ने दो टूक अपना फैसला सुना दिया था।' हर बार की तरह इस बार भी बेचारे शास्त्री जी को मायूस होना पडा।शास्त्री जी का मूड जब थोड़ा ठीक दिखाई पडने लगा तो निधि शर्मा बैडरूम से चहकते हुए आयी और गले में हाथ डालकर बोली, "जानू ! .....देखो न काफी समय से हम किसी बङे टूर पर घूमने नहीं गये।"
"अभी पिछले महीने एक सप्ताह का गोवा टूर करके आये हैं।अब फिर इतनी जल्दी........।"
'शास्त्री जी धीरे से बोले थे।'
"फिर भी एक महीना तो हो ही गया।अब फटाफट दस दिन के शिमला टूर के लिए ऑनलाइन टिकट बुक कर लीजिए और मैं जब तक सामान पैक करके रखती हूँ।आज ही निकलेंगे।"
'निधि शर्मा ने अपना फरमान सुना दिया।'अब शास्त्री जी क्या मजाल कि किंतु परंतु कर दें?शाम को ही शास्त्री जी और निधि टूर पर चले गये।