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Avinash Agnihotri

Drama Classics Inspirational

3  

Avinash Agnihotri

Drama Classics Inspirational

geeli mitti

geeli mitti

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दुकान पर डुग्गु बड़ी उत्सुकता से कुम्हार को अपने चाक पर मिट्टी से मटका बनाते देख रहा था।

फिर उसने बड़े आश्चर्य के साथ अपनी माँ से पूछा ,मम्मा क्या ये मटका जो हमारे घरों में ठंडा पानी भरने के काम आता है।

क्या वो मिट्टी से बनाया जाता है। तब उसकी उत्सुकता भांपते हुए माँ उससे बोली, हाँ बेटा ये मटका सुराही व घर के फ्लॉवर पॉट सब मिट्टी से ही बनते है।

और जब खेत की इसी काली मिट्टी में किसान अनाज के कुछ दाने डालता है। तब वह उसका असंख्य गुना कर देती है। फिर जिसे हम भोजन के रूप में पाकर पोषण व ऊर्जा प्राप्त करते है।

डुग्गु क्या अब तुम समझे ये साधारण सी दिखने वाली मिट्टी हमारे लिये कितनी उपयोगी है। डुग्गु ने अपनी माँ की बात पर अपना सर हिलाया ही था कि अचानक कुम्हार के हाथ से उस कच्चे घड़े का आकार बिगड़ गया पर फिर कुछ ही पलों में उसने मटके को पुनः सुंदर आकर दे दिया।

डुग्गु को ये सब देखते जब माँ ने देखा। तो फिर बोली तुमने देखा डुग्गु ये गीली मिट्टी का बर्तन भी ठीक बचपन की ही तरह है। जिसमें अपने बच्चे के व्यक्तित्व को आकार देते मातापिता के हाथों से अगर कोई चूक हो भी जाए।

तो उसमें फिर सुधार की गुंजाइश बनी रहती है। इतना कहते माँ के स्वर अब गंभीर हो चुके थे।


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