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Kanchan Pandey

Drama

4  

Kanchan Pandey

Drama

एक त्याग–अनोखा

एक त्याग–अनोखा

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गुस्से में तमतमाते हुए रानी घर के अंदर आई हाथ में पकड़े अखबार को इसतरह मचोड़ कर फेंकी की अख़बार सीधे लक्ष्मी के पैरों में लगा क्या क्या हुआ रानी आवाज अटकते अटकते हुए बाहर आई थूक निगलते हुए लक्ष्मी ने फिर पुछा क्या हुआ ? रानी –क्या हुआ, कुछ नहीं मैं बाजार जा रही हूँ कुछ घर के लिए चाहिए।लक्ष्मी –हाँ बेटा चलो मैं भी चलती हूँ इस बहाने तेरे साथ कुछ समय भी बीत जाएगा।कुछ दिन से रानी का यह व्यवहार उसके समझ में नहीं आ रही थी, इसलिए वह कुछ समय साथ बीता कर अपनी बेटी की परेशानी जानना चाहती थी, ल्रेकिन रानी ने जोर से मना करते हुए कहा नहीं माँ नहीं मुझे आपके साथ नहीं जाना।लक्ष्मी –क्यों बेटा ?रानी –कुछ नहीं और वह चली गई।लक्ष्मी नीचे पड़ी अख़बार को उठाई ज्यों हीं खोली उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा अपनी और रानी की तस्वीर अख़बार में देखकर वह बहुत खुश हुई लेकिन रानी का व्यवहार बहुत अटपटा लगा इसलिए जब वह काम पर जाने लगी तब वह अख़बार लेती गई।रीमा [मालकिन ]-आ गई लक्ष्मी ! आज बहुत जल्दी आ गई, कहीं बाहर जाना है ? लक्ष्मी नहीं - नहीं मालकिन लेकिन इस अख़बार में क्या लिखा है पढकर थोड़ा बताएंगी। मालकिन –क्या पढ़ना मैनें तो सुबह तुम्हारे जाने के बाद पढ़ा बेटी तो नाम रौशन कर दी तुम्हारा।लक्ष्मी –तब रानी ने इस अख़बार को यूँ क्यों फेंका ? एकबार पढ़कर तो सुना दीजिए।मालकिन को समझते देर नहीं लगी फिर भी लक्ष्मी की ख़ुशी के लिए कुछ आधा अधुरा।

रात में रानी जब आई तब लक्ष्मी ने उसे बांहों में समेट कर ज्यों हीं गले से लगाना चाहा, रानी –क्या है माँ एक

बात बता देती हूँ। लक्ष्मी- क्या ?रानी –अब हमदोनों इस जगह नहीं रहेंगे और तुम यह काम भी नहीं करोगी।लक्ष्मी-ओ यह बात तुम्हें परेशान कर रही है जिस काम के बल पर मैनें तुम्हें पढ़ाया लिखाया वह तुम्हारे शर्मिंदगी की वजह बन गई है सुनो रानी मैं यह काम कभी नहीं छोडूंगी।रानी -क्यों ? लक्ष्मी-तुम्हें नहीं पता कि जब तुम्हारे पिता हमदोनों को सिर्फ इस घर के सहारे छोड़ गए थे तब से आज तक मालिक और मालकिन ने हीं सहारा दिया है और सब जगह काम छोड़ने के लिए तुम्हें कहना भी नहीं पड़ा।रानी -कोई उपकार नहीं किए।लक्ष्मी –उपकार की बात करती हो आज जो तुम हो वह उनकी वजह से समझी।रानी –उनकी वजह, कहाँ से अगर मैं मेहनत नहीं कि होती तब क्या यह संभव था।लक्ष्मी –यह बोलना आसान है लेकिन जब पेट भरा नहीं हो तो पढ़ाई समझ में नहीं आती है और आज जब वेदोनों इतने बूढ़े हो गए हैं तब उनको छोड़ने की बात करती हो।रानी –तुम मानने वाली नहीं हो अब रोज –रोज अख़बार में एक बात पढ़ते पढ़ते मेरा सिर लज्जा से जमीन में गड़ता जा रहा है। ओह !लक्ष्मी –क्या ?

रानी-एक काम करने वाली की बेटी ने क्या कमाल कर दिया, उस हिम्मत को सलाम। यही सब बकबास और क्या तुम्हारी इसी जिद की वजह से पिता जी छोडकर गए होंगे।लक्ष्मी आवाक होकर देखती रही।

दूसरे दिन सुबह, माँ माँ, लक्ष्मी - हाँ, रानी -देखो मुझे सरकार की तरफ से घर मिला है तुम तो नहीं जाओगी लेकिन मैं आज से वहीं रहूंगी।लक्ष्मी –लेकिन बेटा।रानी –हाँ हाँ कभी मिलने आ जाया करूंगी। रानी चली गई।लक्ष्मी ने जीवन में बहुत दुःख के थपेड़े खाए थे लेकिन यह दुःख ने उसे अंदर से हिला दिया। आंचल से अपने आंसू को पोछते पोछते अपने काम के लिए निकल गई, अब तो खाली घर उसे खाने के लिए दौड़ता लेकिन जब जब रानी आती तो वह रात दीपावली से कम नहीं होता था लेकिन रानी रात के अँधेरे में आती और रात के अँधेरे में निकल जाती लक्ष्मी ने कितनी बार रात में रूकने के लिए कहा लेकिन रानी ने साफ़ मना कर दिया उसको अपने पद का घमंड ने अंधा कर दिया था।अब तो कितने कितने दिन बीत जाते रानी को देखे हुए तब तो हद हीं हो गई जब रानी दो महीने तक मिलने नहीं आई इस सोच के कारण वह खोई खोई रहने लगी एक दिन अचानक रानी के आने से लक्ष्मी के होंठ फूल की पंखुड़ी की तरह खिलना हीं शुरू किया था कि रानी ने कुछ कपड़े और कुछ खाने का सामान रखकर बस इतना बोली सिर्फ तुम्हारे कारण मुझे यहाँ आना पड़ता है मैं जा रही हूँ।रानी उधर निकली और लक्ष्मी के प्राण इधर छूटे।दूसरे दिन शाम में एक पड़ोसी ने रानी को और उसके मालिक को खबर किया कि अब लक्ष्मी नहीं रही। भाग्य की विडम्बना देखिए कि माँ के गुजरे अभी छह महीने भी नहीं हुए थे कि रानी की अकड़ और रौब के कारण उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया, कुछ दिन तो कमाए हुए पैसे चले लेकिन पैसा तो किसी का नहीं होता है। अब वही माँ का छोड़ा घर सहारा था। एक दिन लक्ष्मी के मालिक मालकिन उससे मिलने आए रानी उन्हें देखते हीं घबरा गई अचानक मुँह से निकल गया मैं आपके यहाँ काम नहीं करने वाली।शर्मा जी [मालिक ]-नहीं नहीं बेटा हमदोनों को तुम से काम नहीं करवाना है।हमने तो अपनी बेटी खोई है लेकिन तेरी माँ सचमुच में लक्ष्मी थी,सच कहते हैं एक माँ अपनी संतानों पर आने वाली संकटों को बहुत पहले हीं भांप जाती है बेचारी ने जीवन भर अपनी पेट काट कर तुम्हारे लिए कुछ पैसे जमा किया लो यह कागज कल बैंक जाकर उठा लेना और इससे कुछ काम शुरू कर लो जिससे तुम्हारी माँ की आत्मा को शांति मिले।मालकिन –मैने कितनी बार कहा लक्ष्मी आकर मेरे पास रहो लेकिन उसका एक हीं जवाब था नहीं मालकिन उस घर में मेरे पति के साथ होने का अहसास होता है और तुम्हारे छोड़ जाने के बाद तो कितनी बार मैने तुम्हारे कपड़े को सहलाते हुए देखा है तुम्हारा एक कपड़ा वह हमेशा अपने साथ रखती थी।यह सुनते हीं रानी दहाड़ मार कर रोने लगी हे भगवान मैने अपनी देवी सामान माँ को कितना दुःख दिया माँ माँ ...मुझे माफ़ कर दो, लेकिन अब देर हो चुकी थी कहते हैं ना लक्ष्मी जब रूठ जाती है तब वापस नहीं आती है लेकिन एक माँ अपनी रानी को रानी बनने का आशीर्वाद जरुर दे रही होगी।


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