एक पुरुष का प्रेम
एक पुरुष का प्रेम
स्त्री को रंगों से बहुत प्यार था। उसने अपने घर के आँगन में रंग-बिरंगे फूल और पेड़-पौधे उगाये ।आकर्षित हो अनगिनत रंगीन पंछी और तितलियाँ वहाँ बस गए। स्त्री उन सब के बीच हँसती, खिलखिलाती, चहचहाती - प्रसन्नता से भरी जिंदगी जी रही थी।
फिर एक दिन वहाँ एक पुरुष आया। स्त्री का हँसना, बोलना, बालोँ में उँगलियाँ फेरना -सब ने उसका मन मोह लिया। उसने स्त्री से प्रेम का इजहार किया। स्त्री अतिप्रसन्न हो गयी । कल्पना कर ली उसने एक सुखद संसार की। कितना अच्छा रहेगा ये साथ। फूलों, पेड़-पौधों, पंछियों और तितलियों के बीच वे दोनों और उनके प्रेम का परिणाम -उनकी संतानें।
स्त्री-पुरुष प्रेम की डोर में बंध गए। वे दोनों घंटों बातें करते। कभी -कभी एक दूसरे का हाथ भी थाम लेते। स्त्री तन-मन से पुरुष की हो जाने के लिए व्याकुलता से पुरुष से विवाह की प्रतीक्षा करने लगी। अंततः एक सुहाने दिन जिस दिन सूरज कुछ ज्यादा चमका, तितलियाँ खूब झूम कर नाचीं और पंछियों ने मुक्त स्वर में गीत गाये - पुरुष ने स्त्री के सामने विवाह -प्रस्ताव रख दिया। स्त्री ने तुरंत हाँ कर दी पर जाने कहाँ से एक पंछी आकर स्त्री के कान में कुछ कह गया।
पंछी की बात सुन, विवाह से पहले स्त्री ने पुरुष का घर देखने की इच्छा की। पुरुष खुशी-खुशी उसे अपने घर ले गया। रास्ते भर उसे बताता रहा कि उसके घर में भी खूबसूरत तितलियाँ और पंछी हैं ; जिनसे उसे बेहद प्रेम है।
पुरुष के घर पहुँच कर स्त्री की आँखे भय और विस्मय से फ़ैल गयीं। वो पुरुष का हाथ छुड़ा कर भाग गयी। प्रेम की डोर तोड़ दी।
पुरुष आज भी उस स्त्री को बेवफा कहता है। अपने प्रेम की डींगें हांकता हैं।
उसी प्रेम की - जिस प्रेम के वशीभूत हो उसने घर की दीवारों में रंगीन तितलियों के पंख जगह-जगह सजाये हैं। पंछियों को पिंजरे में कैद कर रखा है।