Saroj Prajapati

Inspirational

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Saroj Prajapati

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एक नई पहल

एक नई पहल

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आज सुबह जब सोनिया की मम्मी ने उसे फोन पर बताया कि उसकी नानी की तबीयत ज्यादा खराब है। आकर एक बार उनसे मिल जाओ ।तुम्हें बहुत याद कर रही है बेटा। तब से सोनिया बहुत बेचैनी महसूस कर रही थी। हो भी क्यों ना! आखिर 6 साल वह नानी के साथ जो रही थी। नानी को बहुत लगाव था उससे। छोटी मौसी की शादी के बाद नानी अकेली पड़ गई थी। उस समय सोनिया 12 साल की थी ।नानी ने हीं उसकी मम्मी से कहा था कि सोनिया को उसके पास ही छोड़ दें ।यहीं पढ़ लेगी और मुझे सहारा भी मिल जाएगा। सोनिया ने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई वहीं की थी। नानी का गांव उसे बहुत ही अच्छा लगता था। शहर की भीड़भाड़ से दूर एकदम शांत। दूर तक खेत ही खेत थे। एक छोटा सा तालाब भी था उनके घर से कुछ दूरी पर। जिसमें मवेशी नहाते थे ।उसकी मम्मी ने बताया था कि उनके समय में तो यह तालाब बहुत ही साफ सुथरा था और हम सब बच्चे यहां खूब तैराकी किया करते थे। सच कितने अच्छे दिन थे वो। सोनिया भी तो जब समय मिलता उस तालाब के किनारे पहुंच जाती और अपनी सहेलियों के साथ मछलियों को दाना डालती ।कभी कंकड़ पानी में फेंक उससे बनने वाली लहरों का आनंद लेती। खेतों की पगडंडियों पर मीलो दूर तक दौड़ना उसे बहुत पसंद था। खेत से उखाड़ कर मूली गाजर खाने का आनंद ही कुछ और था। जब वह खेत वाले नाना को उन्हें धोने के लिए कहती तो वह हंसते हुए कहते हैं " बिटिया यह तुम्हारे शहर की तरह खाद वाली नहीं बल्कि साफ-सुथरे पानी की पैदाइश है । खा लो इसे। खूब ताकत मिलेगी।" दूध पसंद ना होते हुए भी नानी उसे दोनों समय भर भर कर गिलास दूध पिलाती और रोटी पर मक्खन रख खिलाती । 12वीं में आते ही उसके मामा की शादी हो गई और नानी को एक सहारा मिल गया। अपनी 12वीं पास करने के बाद सोनिया वापस अपने घर आ गई ।नानी ने तो खूब जिद की थी कि वह यहीं से अपनी पढ़ाई पूरी करें लेकिन कॉलेज गांव से दूर होने के कारण उसके पापा ने उसे अपने पास ही बुला लिया। कितना रोई थी नानी उसके जाने पर।

एमबीए करने के बाद उसकी नौकरी लग गई। साथ ही साथ कुछ दिनों बाद राहुल से शादी कर वह चेन्नई शिफ्ट हो गई। घर परिवार, बच्चों में व्यस्त हो जाने के कारण वह दिल्ली मम्मी के पास कम ही जा पाती थी और जब जाती तो नानी को वही बुला लेती । धीरे धीरे वह भी कम हो गया क्योंकि बच्चे अब बड़े हो गए थे और उनका स्कूल होने के कारण वह भी अब ना के बराबर हो गया था।

 बच्चों के एग्जाम जैसे ही खत्म हुए , सोनिया 10 दिन की छुट्टी ले ,बच्चों के साथ नानी के घर रवाना हो गई। रास्ते भर वह बच्चों को नानी के साथ बिताए हुए दिन और गांव के खेत ,तालाब के बारे में बताती रही। एयरपोर्ट पर उतर उसने नानी के घर के लिए कैब ली।

सोनिया तो वही अपने 20 साल पुराने गांव की यादों में खोई हुई थी। लेकिन जैसे-जैसे वह गांव की ओर बढ़ रही थी ,उसे सब कुछ बदला-बदला सा नजर आ रहा था। गांव के चारों ओर उसे ऊंची ऊंची इमारतें दिखाई दे रही थी।जैसे ही उसने गांव की सीमा में प्रवेश किया, उसका दिल धक से रह गया। वहां अब कोई खेत ना था बल्कि उनके स्थान पर कॉलोनी बन गई थी। सोनिया को यह सब पता नहीं क्यों अच्छा नहीं लग रहा था। उसके सपनों का गांव इस तरक्की के बीच कहीं खो गया था।

सामान उतार कर जैसे ही वह अंदर गई। चारपाई पर लेटी नानी उसे देख मानो फिर से जी उठी। उठकर उन्होंने सोनिया व बच्चों को ढेरों आशीर्वाद दिए। खुशी के मारे उनकी आंखों से आंसू निकल रहे थे और हाथ कंपकंपा रहे थे। मामा मामी ने बच्चों और उसकी खूब आवभगत की। नाश्ता करने के बाद बच्चों ने रट लगा दी "चलो मम्मी आपका बचपन वाला तालाब हमें भी देखना है। हम भी मछलियों को दाना डालेंगे।"

उनकी जिद देख सोनिया व उसके मामा उन्हें लेकर तालाब की ओर निकले। सोनिया देख रही थी कि गांव में कोई कच्चा मकान नहीं था अब। उनकी जगह अब सुंदर आलीशान मकान बन गए थे । गलियां भी पक्की थी, मवेशी भी नजर नहीं आ रहे थे। देखने से लग ही नहीं रहा था कि यह वही 20 साल पहले वाला गांव है। तालाब के पास पहुंचकर सोनिया हक्की बक्की रह गई । तालाब का पानी गटर के पानी से भी बदतर हो चुका था। चारों ओर कूड़े व पॉलिथीन के ढेर लगे हुए थे। उसने ध्यान दिया कि तालाब के चारों ओर बड़े-बड़े पाइप लगे थे। उसने अपने मामा से पूछा तो उन्होंने बताया कि" गांव की नालियों का गंदा पानी इसी तालाब में आता है क्योंकि गांव में अभी सीवर लाइन नहीं है तो लोगों ने उसकी व्यवस्था इस प्रकार कर ली।"

"लेकिन पहले भी तो गांव से का पानी कहीं जाता होगा ना।"

"तुम्हें तो पता है ना कि गांव में पहले निकासी का पानी खेतों के चारों ओर बनी छोटी नालियों से बाहर बड़े नाले में चला जाता था ।लेकिन अब खेत नहीं हैं और उन पर लोगों ने अपने मकान बना लिए हैं तो नालियों का रास्ता भी रुक गया।उन लोगों में और गांव के लोगों में आपसी तालमेल कम है तो गांव वालों ने यही सरल उपाय अपना लिया।"

" लेकिन मामा जी यह तो गलत है ना! आप देख रहे हो यह साफ सुथरा तालाब अब सूखकर एक कूड़े के ढेर में तब्दील हो गया है। हम तरक्की कर रहे हैं यह अच्छी बात है लेकिन अपनी धरोहर की बलि चढ़ाकर यह कहां तक तर्कसंगत है।"

रास्ते में आते हुए सोनिया को गांव के कई बड़े बुजुर्ग मिले मामा ने जब उसका परिचय कराया तो सभी उसे पहचान गए और खूब खुश होते हुए आशीष देने लगे। सोनिया उनके पास ही बैठ गई और बातों ही बातों में उसने तालाब का किस्सा छेड़ दिया। बड़े बुजुर्गों ने कहा "बिटिया हम तो खुद अपने तालाब की यह दुर्दशा देख दुखी हैं। बचपन में जिस तालाब में हम नहाते थे, वहां इंसान तो क्या जानवर भी नहा नहीं सकते। इस नए जमाने की नई हवा ने तो गांव की हवा को जहरीला बना दिया है। बच्चे जल्द से जल्द तरक्की करने व शहर की तरह आधुनिक बनने के चक्कर में अपने गांव की पहचान को ही मिटाने पर तुले हैं। क्या करें कोई सुनने को तैयार ही नहीं है। शहरों में स्विमिंग पूल में नहाने के लिए हजारों रुपए खर्च करते हैं और अपने गांव के तालाब की उन्हें कद्र नहीं।"

सोनिया उन सब की बातें सुन बोली "नानाजी जब छोटे अपना कर्तव्य भूल जाए तो हमें उन्हें एक बार फिर से याद दिलाना चाहिए !"

"कैसे बिटिया?"

" चलो नानाजी हम अपने तालाब को साफ करने की पहल शुरू करते हैं। शायद देखा देखी उन्हें भी कुछ शर्म आ जाए।"

अगले दिन सोनिया, उसके बच्चे व गांव के बड़े बुजुर्ग हाथों में बड़े-बड़े थैले लेकर तालाब के पास आए और उन्होंने वहां पर पड़ा हुआ कचरा बीनना शुरू कर दिया। गांव में जब यह बात पहुंची तो गांव के नौजवान भी वहां आ गए। अपने बुजुर्गों को तालाब की सफाई करते देख उन्हें बड़ी शर्मिंदगी हुई और वह भी श्रमदान में लग गए। शाम तक तालाब के आसपास की गंदगी हट गई। यह देख सभी बहुत खुश हुए।

सोनिया ने सबसे हाथ जोड़ विनती करते हुए कहा कि "1 दिन के साझा प्रयास से हमारे तालाब की गंदगी साफ हो सकती है तो क्यों ना इसको हम आगे भी जारी रखें!"

" कैसे?" उसके मामा ने पूछा ।

"देखो मामाजी गांव की नालियों का जो रुख हमने तालाब की ओर कर दिया है ।उसका हमें समाधान निकालना चाहिए। तालाब के आसपास मिट्टी का जो अवैध खनन हो रहा है उसे रोके और यहां पर फिर से पेड़ पौधे लगाएं। आपको तो पता है ना हमारे देश में हर साल गर्मियों में पानी की कितनी किल्लत हो रही है तो क्यों ना हम अपने गांव से इस पानी की किल्लत का नामोनिशान दूर कर दे ।अब तो सरकार भी गांव आदि में जो तालाब है। उसके पुनरुद्धार के लिए फंड मुहैया करा रही है और उसको साफ करने के तरीके भी बताती है तो हमें सरकारी मदद लेने में भी कोई परहेज नहीं करना चाहिए। सबसे बड़ी बात हमें पॉलिथीन का प्रयोग बंद करना होगा। क्योंकि यह नष्ट नहीं होती। जमीन को बंजर करती है ,जानवरों के लिए हानिकारक है और नालियों आदि को अवरूध करती है। आप अपने स्तर पर तालाब को साफ करिए और सरकारी मदद भी लीजिए। फिर देखिए हमारे गांव की पानी की किल्लत दूर हो जाएगी साथ ही साथ हर साल हवा में बढ़ते प्रदूषण से भी इन पेड़ पौधों के कारण निजात मिलेगी और हां बड़े बुजुर्गों को उनका वही तालाब और छोटों को गांव में ही स्विमिंग पूल मिल जाएगा।"उसकी बातें सुन सभी गांव वाले बहुत खुश हुए और उसे खूब आशीर्वाद दिए।

10 दिनों में सोनिया को अपने पास देख उसकी नानी ही स्वस्थ नहीं हो गई बल्कि बरसों से मृत पड़े तालाब में भी प्राणों का नया संचार हो गया।


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