Savita Negi

Drama Inspirational

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Savita Negi

Drama Inspirational

एक नए रिश्ते की शुरुआत

एक नए रिश्ते की शुरुआत

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तुम्हारे पापा दो दिन से बीमार हैं थोड़ा उनके पास कुछ देर के लिए बैठ जाओ। तबियत पूछ लो उनसे, कैसे हैं? क्या है?" शिल्पा ने पति सुधीर से कहा।

"तुम देखभाल कर तो रही हो उनकी। उनके लिए जो मंगवाती हो वो मैं ला देता हूँ। इससे ज्यादा और क्या करूँ? ..तुम देखो या मैं देखूँ एक ही बात है।"

"नहीं सुधीर!एक बात नहीं है। मैं कितना भी कर लूँ उनके लिए रहूँगी फिर भी बहु ही, दूसरे घर से आई हुई। तुम उनके बेटे हो । तुम्हारे पूछने से, उनके पास बैठने से बहुत फ़र्क पड़ेगा। उनका बेटा उनको देख रहा है इस भावना से ही उनको संतुष्टि मिलेगी।"

"कोई संतुष्टि नहीं मिलने वाली उनको , न ही उनको कोई फ़र्क पड़ता है। वो भावनाओं में बहने वाले इंसान नहीं है ,न थे कभी।"

शिल्पा के बार- बार समझाने का भी सुधीर पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। पाँच साल हो गए दोनों की शादी को ,शिल्पा ने कभी भी ससुराल में वैसा माहौल नहीं देखा जैसा सामान्य परिवारों में होता है। माँ पापा के साथ बैठकर बात करना , कुछ पुराने किस्से कहानी याद करना या साथ बैठकर खाना, खाना । यहाँ तक कि बेटे अपनी माँ के बहुत करीब होते हैं परंतु सुधीर कभी अपनी माँ से भी ज्यादा बात नहीं करता था। खींचा- खींचा सा रहता था। 

एक ही बात दोहराता था 'तुम देख तो रही हो।' सास तो गुजर गईं परंतु ससुर जी के साथ भी सुधीर का व्यवहार वैसा ही बना रहा।

सुधीर का अपने पिता से यूँ मुँह फेर कर रहना शिल्पा को अच्छा नहीं लगता था । दोनों के बीच संवाद की एक मात्र कड़ी शिल्पा ही थी। 

शिल्पा इन अलग हुई कड़ियों को जोड़ने का पूरा प्रयास करती रहती थी। एक दिन शिल्पा ने सुधीर से यूँ ही कह दिया " तुमको भी बेटा है, कल वो भी तुमसे ऐसा ही रूखा व्यवहार करेगा। बच्चे जो देखते हैं वही सीखते हैं।"

"सही कहा तुमने, तभी तो मैं उसके साथ बहुत अच्छे से पेश आता हूँ ताकि वो अपने दिल में अपने पिता को स्थान दे सके। मैं पिता न बनकर अगर दुश्मन की तरह व्यवहार करूंगा तो वो कहाँ मुझे अपना पिता मानेगा?"

"ऐसा क्या किया था तुम्हारे पापा ने?"

"छोटे में पढ़ाई के वक़्त खासतौर पर मैथ पढ़ाते हुए छड़ी लेकर बैठते थे। खौफ़ के मारे निक्कर में ही सुसु निकल जाती थी। कान खींच खींच कर लाल कर देते थे। पढ़ाई को मेरे लिए सजा बना दी थी इस आदमी ने। रोज दो घंटे आठ साल का छोटा बच्चा पढ़ाई के नाम पर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना झेलता था । ग्यारहवीं मे था मैथ में फेल हो गया। पूरे दिन कमरे में भूखा प्यासा बंद रखा। छड़ी की मार से उंगलियाँ तक सूज गयी थी। 

माँ बहुत डरती थी पापा से ,कभी खुलकर मेरा बचाव नहीं करती थी। दोनों से दूरियाँ खुद ही बनने लगी थी। कभी पापा ने प्यार से सर में हाथ नहीं फेरा। कभी मेरे अच्छे काम की तारीफ़ नहीं की।बड़ी उम्र में भी हाथ उठा देते थे। दूसरों के सामने हमेशा बुराई करते थे। 

धीरे-धीरे वो मेरे मन से उतरते चले गए। नौकरी लगते ही हमारे बीच संवाद और कम हो गया। मैं ऑफिस या फिर अपने कमरे में ही रहता था। छुटियों के दिन दोस्तो के साथ।

अब चाहते हुए भी बात नहीं कर पाता हूँ । उनके सामने जाते ही उनका पुराना व्यवहार याद आने लगता है।"

ये सब सुनकर शिल्पा का मन भी उदास हो गया। परंतु ससुर जी अब वृद्धावस्था में हैं और लाचार भी हैं । बेटे के प्यार भरे शब्द उनके अंदर जीने का हौंसला बढ़ा सकते हैं।

"उस वक़्त तुम लाचार थे , छोटे थे बगावत नहीं कर सकते थे। परंतु आज बिल्कुल उसी अवस्था में वो भी हैं । तुम्हारी तरफ आस भरी नजरों से देखते हैं कि काश तुम उनसे बात करते उनका हाल चाल पूछते। अब वो भी तुमसे दो शब्द प्यार के सुनने के लिए तरसते होंगे। तुम उन जैसे मत बनो न। पुरानी बातों की कड़वाहट को भुला देना चाहिए और एक नई शुरुआत रिश्तों को बनाये रखने के लिए अवश्य करनी चाहिए।"

शिल्पा के समझाने से और उसकी मदद से सुधीर धीरे धीरे अपने पिता से संवाद की कोशिश करने लगा। शिल्पा सुधीर को जबरदस्ती ससुर जी के पास कुछ कुछ बहाने से पूछने भेजती। सुधीर दरवाज़े से ही पूछता।

"दवाई खाई आपने... आराम से लेट जाओ.....दर्द होगा तो बता देना।"....जितना शिल्पा सिखाकर भेजती थी बस उतना ही पूछता था।

ऐसे ही करते -करते अब सुधीर पिता के कमरे में भी जाने लगा। अपने हाथों से दवाई निकालकर देने लगा। धीरे धीरे उन्हें अपने कांधे का सहारा देकर धूप में बिठाने लगा। और खुद भी साथ मे बैठने लगा। इसी बीच सुधीर ने जब अपने प्रमोशन की खबर सुनाई तो पिता की आँखों में खुशी के आँसू थे। बुढ़ापा और बीमारी से काँपते हाथों को उठाकर सुधीर की पीठ क्या थपथपायी तो सुधीर के मन में वर्षो से जमा रोष भी पिघलकर आँखों के रस्ते बहने लगा।

अपने पिता से प्यार और शाबाशी पाने की इच्छा किस बेटे में नहीं होती? वही दबी इच्छा सुधीर की आज वर्षो बाद पूर्ण हुई थी। बेटा बड़ा हो या छोटा पिता से हमेशा शाबाशी चाहेगा। थोड़ी देर के लिए सुधीर भी पिता के सामने छोटा बच्चा बन रो पड़ा। 

उधर पिता की आँखों से भी ग्लानि भरे आँसू बह रहे थे और शिल्पा की आँखे भी नम थी ये देखकर कि दो टूटी हुई कड़ीयां फिर से जुड़ गई और एक नए रिश्ते की शुरुआत के साथ परिवार की परिभाषा भी पूर्ण हो गयी।


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