Saroj Verma

Tragedy

4.0  

Saroj Verma

Tragedy

एक लेखक का सपना....

एक लेखक का सपना....

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आओ अमर बैठो, कहो कैसे मित्र मंडली की याद आ गई या रास्ता भूल बैठे, अमर के दोस्त प्रीतम ने कहा।

  बस, मित्र कुछ उधार मिल जाता तो, बस किताब छपते ही तेरे सारे पैसे चुका दूंगा, अमर ने प्रीतम से कहा।

  मित्र, बैठो तो कुछ लिखा है सुनकर तो जाओ, बताओ तो हमारी कविता में दम है कि नहीं, श्रृंगार रस पर लिखा, संयोग रस में डूबी हुई रचना है, प्रीतम ने अमर से कहा।

  मुझे मालूम और तुम लोगों से आशा भी क्या की जा सकती है, बस ऐसा ही बेहूदा लिखना, नारी रूप, नारी सौंदर्य, कहीं नारी शिख नख वर्णन, अच्छा साहित्य तो जैसे लोग लिखना ही भूल गए हैं, जो सब लिखते हैं वो फूहड़ता है, अमर ने कहा।

   मित्र! तुम तो लिखते हो, अच्छा साहित्य, आज तक भला कौन सी किताबें छपी तुम्हारी, बड़े लेखक होने से कुछ नहीं होता, मैं तो वहीं लिखता हूं जो बिकता है, प्रीतम गुस्से से बोला।

परन्तु मित्र, मैं बिका हुआ नहीं हूं, मैं अपने जमीर को मारकर नहीं लिख सकता, मैं वो नहीं लिख सकता जो बिकता है, मैं वो लिखता हूं जो मुझे अच्छा लगता है, अमर बोला।‌

    सही कहा दोस्त, तुम्हारा सपना है कि तुम बहुत बड़े लेखक बनो, वो भी अपनी पसंद का लिखकर तो अगले महीने साहित्य प्रतियोगिता है, अगर तुम उसमें जीत गए तो तुम्हारा लोहा मान जाऊंगा, प्रीतम बोला।

 तो ठीक है, यही सही, मैं अपना सपना हर हालत और हर कीमत पर पूरा करूंगा, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी क्यों ना खोना पड़े, अमर ने प्रीतम से कहा।

  अब बचा ही क्या है तुम्हारे पास, तुम्हारी सूखी शान देखकर भाभी भी तो बबलू के साथ घर छोड़कर चली गई, एक बीमार मां बची है वो भी ना जाने कितने दिन की मेहमान है, प्रीतम बोला।

  और उस दिन की बहस के बाद अमर जी जान से जुट गया लेकिन कुछ ना सूझता, ऐसे ही सारे दिन निकल गए, परेशान हो गया सोच सोचकर, फिर भी कुछ ना सूझा, प्रतियोगिता के दो दिन शेष रह गए था, तब एकाएक उसकी मां बहुत ज्यादा बीमार हो गई, मरणासन्न अवस्था में आ गई, अमर के पास ना पैसे थे और ना घर में अन्न का दाना, खुद भी भूखा था कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें, प्रतियोगिता के लिखने के लिए भी कुछ नहीं सूझ रहा था।

   तब एकाएक उसका माथा ठनका और उसके मन में एक विचार कौंधा, उसने अपनी मरती हुई मां की अवस्था को लिखना शुरू किया, जैसे जैसे मां की अवस्था होती गई अमर की कलम वैसे वैसे चलती गई, अंत में मां ने दम तोड़ दिया और मां की इस अवस्था को अमर ने ऐसे दर्शाया... ऐसे दर्शाया कि लोगों के आंसू बह चले, जिसने भी सुना और पढ़ा वो रोए बिना ना रह पाया और इसका नतीजा ये हुआ कि अमर को उस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मिला।

   उसे मंच पर सम्मान के लिए बुलाया गया और दो शब्द बोलने के लिए कहा गया, अमर ने बोलना शुरू किया___

   एक लेखक का सपना होता है कि वो बड़ा लेखक बने और आज ये मेरा सपना पूरा हो गया, परन्तु मैं ये पुरस्कार नहीं ले सकता, आप लोगों को नहीं मालूम कि मैंने अपना सपना पूरा करने के लिए क्या खोया है।

   और अमर अपने हाथ जोड़कर सबको नमस्कार करते हुए मंच से नीचे उतर गया।


   सरोज वर्मा.....



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