Sonam Sharma

Romance Tragedy

4.8  

Sonam Sharma

Romance Tragedy

एक होकर भी एक ना हुए

एक होकर भी एक ना हुए

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सुबह के 7:00 बजे का वक़्त हो चला था।नैनीताल के एक छोटे से शहर के शोर-शराबे से कुछ दूर पहाड़ों के ऊपर से गिरते हुए झरने से कुछ दूर बसा हुआ एक छोटा सा गांव था जिसका नाम ढोलकपुर था ।


उसी ढोलकपुर गांव में एक बड़ी सी बाजार में कोने पर स्थित एक छोटा सा जानवी ढाबा था। जानवी ढाबा के चारों तरफ लोगों की भीड़ लगी हुई थी। उस ढाबा के शोर -गुल और भीड़ के बीच भी लोग उसे बार बार मुड़-मुड़ कर देख रहे थे। कोई बगल के चाय के दुकान वाला, तो कोई साफ सफाई करने वाला, सबकी नजरें उस लड़की पर थी।और तो और उस ढाबा पर दो - चार लड़के उस लड़की को देखते हुए आपस में टकरा गए।


कत्थई रंग की आंखों वाली , लंबे कद की उस तेजस्वी स्त्री की सुंदरता ही कुछ ऐसा था कि हर व्यक्ति की आंखें अनायास ही उसके चेहरे, उसके सौंदर्य पर गढ़ जाती थी। पिले रंग की सलवार, नीले रंग की दुप्पटे, जो की कमर मे कसकर बांध रखा था, में उसका गौरा रंग और भी निखार आया था। उसके लम्बे खुले केश, उसकी कलाई पर बंधी चौड़े पट्टी में जड़ी घड़ी, अंगुली पर चमक रही सस्ती सी अंगूठी, लेहराता दुप्पटा और कंधे पर चौड़ा सा नारंगी रंग का कॉलेज पर्स का पट्टा। थी तो वह एक छोटे से ढाबे वाले की बेटी पर उसका व्यक्तित्व बिल्कुल विराट सा था।


छोटे से ढाबे के सबसे आगे वाले जगह पर उस लड़की के पिता मोहनलाल मोटी सीसे वालीं चश्मा लगाए हिसाब किताब कर रहे थे।


वह लड़की बार-बार चिंतित होते हुए अपने हाथों में लिए मोबाइल को बार-बार निहार रही थी ऐसा लग रहा था कि मानो वह किसी के फोन के आने का इंतजार कर रही थी। उस लड़की के पिता कभी हिसाब किताब करते तो कभी अपनी बेटी को देखते।


वह लड़की काफी गंभीर स्वभाव वाली थी। साथ ही साथ हर कार्य को वह हमेशा सोच समझकर किया करती थी। हड़बड़ी में किया गया कोई भी कार्य उसे पसंद नहीं था।


उस लड़की के घुंघराले सुनहरे बाल और कठ्ठई आंखें सबको आकर्षित कर रही थी। उम्र कठिनता से 22 से 23 साल की होगी किंतु लोग उसे देखकर यह सोच रहे थे कि इतनी खूबसूरत राजकुमारी की तरह दिखने वाली लड़की इस छोटे से ढाबा में क्या कर रही है? 


 जैसे ही उस लड़की के मोबाइल पर किसी शख्स का फोन आया वह लड़की फोन उठाते हुए उस ढाबे से बाहर जाकर कोने में एक बड़ी सी छायादार पेड़ के नीचे जाकर खड़ी हो गई। अचानक ढाबे से बाहर निकलकर कोने में खड़ा होना उस लड़की के पिता को पसंद नहीं आया क्योंकि वों अच्छी तरह जानते थे उस फ़ोन करने वाले शख्स को।


उस लड़की के चेहरे पर मुस्कान के भाव उभर आए। उसने फ़ोन उठाया और बोली " मैं कब से तुम्हारे फोन के आने का इंतजार कर रही थी तुषार।"


उधर से फोन पर एक लड़के की प्यार भरी आवाज आई। उसने प्रेम भरे स्वर मे कहा " वह सब छोड़ो जानवी, मैंने तुम्हें यह बताने के लिए फोन किया है कि मेरे पिताजी खुद तुम्हारे घर, तुमसे मिलने के लिए आएंगे। "


" तो क्या तुम्हारे पिताजी इस बात से सहमत हैं कि एक छोटे से ढाबे वाली लड़की उनके घर की बहू बनेगी? " जानवी ने अपने प्रेमी तुषार से उत्तेजित होते हुए फोन पर सवाल किया।


" पहले तो मैं डर गया था कि सब कुछ जानने के बाद मेरे पिताजी रायचंद कहीं इस रिश्ते को ठुकरा ना दे पर बार-बार उन्हें समझाने पर अचानक वह खुद तुम्हें देखने तुम्हारे घर आ रहे हैं।


तुम तैयार रहना, मैं और मेरे पिताजी तुम्हारे घर पांच दिन बाद सुबह 10:00 बजे तक पहुंच जाएंगे। यह बात तुम अपने पिताजी से कह देना।" तुषार नाम के लड़के ने फोन पर जानवी से कहा।


 सब कुछ सुनने के बाद जानवी ने फोन पर अपने प्रेमी तुषार से कहा " वह सब तो ठीक है पर पता नहीं क्यों मुझे घबराहट सी हो रही है। अगर तुम्हारे पिताजी ने शादी के इस रिश्ते से इंकार कर दिया तो..? हम ठहरे एक छोटे से ढाबे वाले... और तुम महलों में रहने वाले। "


" पहले मेरे पिताजी इस रिश्ते से सहमत नहीं थे पर मेरे लाख कहने के बाद उन्होंने यह तय किया है कि वह तुमसे और तुम्हारे पिताजी से कुछ दिनों के बाद मिलने आएंगे। तुम्हें घबराने की कोई भी जरूरत नहीं है अपने पिताजी के साथ में भी तो आऊंगा। " फोन पर तुषार ने कहा।


" वह तो ठीक है पर मान सिंह रायजादा के साथ एक छोटे से ढाबे वाले का रिश्ता.... "


 फोन पर इतना ही जानवी ने कहा था कि उधर से तुषार ने फोन पर कहा" मैंने जैसे-तैसे अपने पिताजी को मनवा लिया है।हम दोनों एक दूसरे को चाहते हैं ना तो बस हम एक होकर ही रहेंगे। अब इसके आगे मैं कुछ भी नहीं सुनना चाहता हूं अच्छा तो मैं फोन रखता हूं। "


उसके बाद तुषार ने लव यू कहकर फोन कट कर दिया। थोड़ी देर के बाद जानवी ने अपने पिता मोहनलाल से सब कुछ कह डाला।


 जानवी के पिता मोहनलाल ने अपनी बेटी जानवी से कहा " मैं यह बात अच्छी तरह से जानता हूं कि तुषार तुम्हें चाहता है। पर इन अमीरों पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए। कभी-कभी तो लगता है कि कहीं वह तुम्हें धोखा ना दे दे।


ऊपर से उसके पिता हमारे घर आ रहे हैं.... कहीं ऐसा ना हो जो सोचा नहीं वही हो जाए....। "


 "अर्थात पिताजी...?" जानवी ने हैरानी के भाव से अपने पिता से सवाल किया।


" कहने का तात्पर्य यही है कि उनके घर आने के बाद कहीं उनका फैसला तुम्हारे और तुषार के फैसले के विपरीत ना हो जाए। " मोहनलाल ने चिंता के भाव से अपनी बेटी को कहा।


ढाबे के अंदर खड़ी जानवी ने अपने पिता की तरफ देखते हुए कहा " क्या मतलब पिताजी, मैं कुछ समझी नहीं...? "


 मोहनलाल मैज पर पड़े किताब पर हिसाब किताब करते हुए चेहरे पर मुस्कान लाएं और बोले " कुछ नहीं बेटी... अब तो कुछ दिन बाद ही पता चलेगा कि आखिर मान सिंह रायजादा जी का क्या फैसला होगा? "


 छोटे से ढाबे में अपने पिता की पास खड़े होकर जानवी ने सांत्वना देते हुए कहा " तुषार के पिता को मैं पसंद हूं तभी तो वह हमारे यहां मुझे देखने आ रहे हैं। "


" अगर तुषार रायजादा के पिता मान सिंह रायजादा हमारे यहां आए तो ना.... अगर नहीं आते हैं तो समझ जाना उन्होंने इस रिश्ते को अपनाने से ना कर दिया। "


 मोहनलाल ने अपनी बेटी की तरफ देखते हुए कहा। और फिर वह ढाबे से बाहर निकल कर अपने घर की ओर चल दिए।


कुछ दिनों के बाद,


 सुबह के 11:00 बजे का वक्त हो चला था। जानवी और उसके पिता तुषार और मानसिंह के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।


 सज धज कर जानवी मेहमान कक्ष में आई और अपने पिता मोहनलाल से बोली " सुबह के 11:00 बजे तुषार को अपने पिता के साथ आना था। पर अभी तो 11:40 बज चुके हैं और वह लोग आए नहीं...? ऊपर से तुषार ने भी मुझे एक बार भी फोन नहीं किया


 इससे पहले कि मोहनलाल कुछ कहते अचानक उनके छोटे से घर पर किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी...


 थक...थक... थक...


 जैसे ही मोहनलाल सोफे से उठकर दरवाजे की तरफ बढ़े तो उन्होंने देखा कि उनके सामने मान सिंह रायजादा खड़े थे और उनके पीछे उनकी बड़ी सी गाड़ी खड़ी थी और कार के पास ही उनका ड्राइवर खड़ा था । 


उन्हें देखते ही मोहनलाल जी आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि उन्हें लग रहा था कि वह रिश्ते को लेकर उनके घर नहीं आएंगे। फिर एक नजर उन्होंने दूसरी और दौड़ाया तो देखा उनके साथ तुषार मौजूद नहीं था।


 चेहरे पर हल्की सी मुस्कान भरते हुए, मोहनलाल ने हाथ जोड़ा और कहा "अरे मान सिंह रायजादा जी, आइए...आइए ना हम कब से आप ही का इंतजार कर रहें थे।"


 तभी अचानक कड़क और रौबदार आवाज़ में  मानसिंह ने मोहनलाल से कहा " अंदर आने का मेरे पास समय नहीं है। हो सके तो अपने साथ-साथ अपनी बेटी को भी दरवाजे तक बुला लाइए। "


 उनकी बात को जानवी भी सुनी जा रही थी। मानसिंह की इस तरह से बात सुनकर मोहनलाल जी को अच्छा नहीं लगा। उनके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई। उन्होंने पूछा " क्या बात है, स....सब ठीक तो है ना...?"


" पहले आप अपनी बेटी जानवी को बुलाइये। " मान सिंह जी ने कड़क स्वर मे ऐसे कहा मानो वह मोहनलाल जी को आदेश दे रहे हो।


 मान सिंह रायजादा की बात सुनकर मोहनलाल ने इस बात का अंदाजा लगा लिया था कि यह रिश्ता नामुमकिन है।


 उसके बाद उन्होंने अपनी बेटी जानवी को आवाज लगाते हुए कहा "अरे...जानवी, जरा इधर आना। देखो तुषार के पिताजी मान सिंह रायजादा हमारे यहां आए हैं।"


 जानवी सर पर सारी का पल्लू रखते हुए थोड़ी आगे आई और तुषार की पिता की तरफ देखकर हाथ जोड़ते हुए बोली" नमस्ते... आप अंदर आइए।"


 जानवी की बात सुनकर तुषार के पिता तीन चार कदम दरवाजे से अंदर की ओर बढ़ाते हुए आए और दोनों हाथों को पीछे करते हुए रोबदार आवाज में बोले "तो क्या तुम ही जानवी हो....?"


"जी मैं जानवी हूँ।आप बैठिये ना।" डरी डरी और सहमी हुई सी जानवी ने मान सिंह जी की तरफ देखते हुए कहा। फिर एक नजर जानवी दरवाजे पर टिका कर रखी कि वहां पर तुषार मौजूद है या नहीं।


 उन्होंने रोबदार आवाज में कहा " मैं यहां बैठने और किसी रिश्ते की बात करने के लिए नहीं आया हूं बल्कि यह बताने आया हूं कि एक हफ्ते के बाद मेरे बेटे तुषार की शादी नेहा नाम की लड़की से तय कर दी गई है इसलिए आइंदा से मेरे बेटे से मिलने की कोशिश भी मत करना।"


 इतना सुनते ही जानवी के पैरों तले से जमीन खिसक गया साथ ही साथ मोहनलाल जी के भी।


 मोहनलाल ने जानवी की तरफ देखा और जर्जर आंखों से आंसू बहाने लगे।फिर उन्होंने मान सिंह जी की तरफ देखते हुए कहा " यह आप क्या कह रहे हैं? "


 इतने में रोते हुए जानवी ने हाथ जोड़ा और मानसिंह की तरफ देखते हुए बोली " पर तुषार ने मुझसे शादी करने का वादा किया था यह बात आप भी जानते हैं तो वह किसी नेहा नाम की लड़की से कैसे शादी कर सकता है? "


 इतना कहते वक्त भी उसके जबान काँप रहें थे और साथ ही साथ उसके पैर भी लड़कारा रहे थे।


 मानसिंह ने जानवी से पूछा " क्या दो दिन से तुम्हें तुषार का फोन आ रहा है? "


" नही... दो दिनों से मैंने उसे फोन करने की कोशिश की पर उसने फोन नहीं उठाया। उसने कहा था आज की तारीख में तैयार रहना इसलिए हम तैयार थे। आप तो आ गए पर तुषार कहां है? " इतना कहते वर्क जानवी की धड़कने तेज हो रही थी।


" अगर तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा है तो अभी तुषार को फोन लगा कर उससे पूछ सकती हो। मैं नहीं चाहता कि दोनों का रिश्ता हो क्योंकि हमारे परिवार की मान-मर्यादा, इज़्ज़त की बात है और ना जाने कितनो के ताने भी सुनने पड़े। और मेरे इस बात से तुषार भी सहमत हो गया है। इसलिए उसने अपना फैसला बदल डाला..। " मान सिंह जी ने घमंड के भाव में कहा।


रायजादा की ख़बर से तो पहले तो वह इस बात को स्वीकार हीं नहीं कर पा रही थी । वो ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।घबराई हुई सी जानवी ने फौरन अपने आपको जैसे तैसे संभाला और मेज पर पड़े अपने मोबाइल को उठाया और तुषार को फोन लगाया।


जैसे ही तुषार के मोबाइल की रिंग बजी


 ट्रिंग... ट्रिंग...


 उधर से तुषार ने फोन उठाया...


 जानवी ने फोन पर तुषार से कहा "यह मैं क्या सुन रही हूं कि तुम किसी नेहा नाम की लड़की से शादी कर रहे हो...? तुम अपने पिता के साथ हमारे घर क्यों नहीं आए? "


 मोहनलाल चुपचाप मौन खड़े रहें । रायजादा के सामने वों अपने आपको कमजोर समझ रहें थे ।


उधर से फोन पर तुषार की गंभीरता से भरी हुई आवाज आई" मुझे माफ कर देना जानवी... शायद मेरे पिताजी ही सही थे। मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता क्योंकि एक अमीर परिवार के लड़के का रिश्ता एक गरीब परिवार की लड़की से कभी नहीं हो सकता। मुझे इस बात को समझने में देर लग गई।


डोंट टेक एनी टेंशन। आजकल तो यह सब आम बात हो चुकी है लव और ब्रेकअप।देखो तुम किसी और को अपना जीवन साथी बना लेना। आज के बाद से कभी इस नंबर पर फोन मत करना। हो सके तो जल्दी मुझे भूल जाना। मैं फोन रखता हूं।"


तुषार की बात सुनते ही जानवी को बहुत ही बड़ा धक्का लगा और वह वही फूट-फूट कर रोने लगी।


मान सिंह रायजादा ने जानवी की तरफ देखा और कहा " यह बात बिल्कुल सही है कि हमारे जैसे उच्च खानदान के लोग एक धाबे वाले से कभी रिश्ता नहीं जोड़ सकते इसलिए मैंने उसके लिए अमीर खानदान की लड़की को चुना जिसका नाम नेहा है... बहुत सालों से मैंने अपने दोस्त की लड़की नेहा से तुषार का रिश्ते के बारे में सोच रखा था। मैं यहां बस यही कहने के लिए आया हूं कि तुषार अब किसी और का होने जा रहा है। आइंदा से उससे मिलना जुलना और फोन पर बातें करना बंद कर देना। "


 इतना कहकर अभिमानी मान सिंह रायजादा घर से बाहर निकल कर अपनी गाड़ी में बैठ कर वापस अपने घर की तरफ चल दिए ।


और जानवी ने अपने पिता मोहनलाल के चरणों में गिरकर फूट-फूटकर रोते हुए कहा " मुझे माफ कर दीजिए पिताजी मुझे नहीं पता था कि तुषार अचानक मुझे धोखा दे देगा। पता नहीं अचानक मेरी जिंदगी में क्या हो गया। "


 अपनी आंखों से झर झर आंसू बहाते हुए मोहनलाल ने अपनी बेटी को भावुक होते हुए कहा" देख लिया कैसे तुषार ने हम दोनों के मुंह पर तमाचा मारा.... मैंने तो पहले ही कहा था कि यह अमीर घर के लड़के ऐसे ही होते हैं। "


रोते हुए जानवी अपने कमरे की ओर चल पड़ी। उसने दोबारा तुषार को फोन लगाया पर तुषार ने फोन नहीं उठाया।


कुछ देर के बाद, तुषार का मैसेज जानवी के मोबाइल पर आया। जैसे ही जानवी ने फोन पर मैसेज पढ़ा " मैं शायद गलत था... मेरे पिता के फैसले सही है... और मैं उनकी नफ़रत नहीं प्यार पाना चाहता हूँ। तुमसे पहले मेरे पिता है। तुम किसी और से शादी कर लेना। "


अचानक से मैसेज मे लिखी हुई तुषार की कड़वी बातों से जानवी का दिल दर्द से तङप उठा की ऐन वक़्त मे तुषार ने उसे धोखा दे दिया। उसके बाद जानवी ने अपने मोबाइल से सिम निकाल कर उसे तोड़ कर फेंक डाला।


कुछ दिनों के बाद,


ज़ब जानवी का मन नहीं माना तो वह फौरन तैयार होकर तुषार की घर की तरफ बढ़ चली। उस वक्त शाम के 7:00 बज रहे थे। जैसे ही जानवी तुषार के घर की तरफ पहुंची। उसने देखा तुषार रायजादा के घर पर शादी की शहनाइयां बज रही थी। पूरा घर रोशनी में डूबा हुआ था और फिर जैसे ही उसकी नजर तुषार पर पड़ी उसने देखा तुषार दूल्हा बनकर खड़ा था और साथ ही साथ उसके बगल में एक सजी-धजी दुल्हन पर जैसे ही नजर गई, उसके चेहरे को देखते ही जानवी समझ चुकी थी कि वही नेहा है जिसे तुषार आज शादी करने जा रहा है।


जो सपना जानवी ने देखा था कि वह तुषार को अपने दूल्हे के रूप में देखना चाहती थी वह सपना तो अधूरा रह गया।

जहां वो अपने शादी के और आने वाले कल के जिसमें वो और तुषार साथ होंगे, के ख़्वाब संजो रही थी, सब एक पल में ही टूट गए वह भी तुषार के धोखा देने पर।


जानवी अब बिल्कुल समझ चुकी थी कि वह जिसे सच्चे दिल से चाहती थी वह एक धोखेबाज निकला और फिर वह खून का घूंट पीकर वहां से अपने घर की तरफ बिना कुछ कहें चल पड़ी।


 और फिर जानवी अपने घर के दरवाजे के पास पहुंचते ही सर पटक पटक कर रोने लगी। उसने फैसला कर लिया था कि तुषार के साथ हुई पहली मुलाकात से लेकर आखिरी मुलाकात तक की यादों को मिटा देगी।


उस वक़्त रह रह कर वों कभी चीखती तो कभी जोर से चिल्लाती है तो कभी अचानक अपने आप को सन्नाटे में बदल देती ।


पीछे से मोहनलाल अपने ढाबे को बंद करके घर की तरफ आ ही रहे थे कि उसने देखा जानी दरवाजे पर सर पटक पटक कर रो रही थी  घर गई। जाकर अपने पिताजी मोहनलाल से कहा " मैं गलत थी पिताजी आखिरकार तुषार ने नेहा नाम की लड़की से शादी कर ही ली।"


"अपने आंसू को इस तरह से मत बहाव .. मैंने यह फैसला किया है कि यहां के ढाबे को बंद करके हम हमेशा के लिए दिल्ली चले जाएंगे। वैसे भी हमें हर साल बाढ़ का सामना करना पड़ता है। और यहां पर इतनी कमाई भी तो नहीं होती। देखना तुम्हें तुषार से भी ज्यादा अच्छा लड़का मिलेगा।"


और फ़िर अपने पिता की बातों को सुनकर जानवी ने तय किया कि वह अपने पिता मोहनलाल के साथ हमेशा के लिए दिल्ली चली जाएगी।


 जानवी ने अपने पिताजी की तरफ निगाहें उठाते हुए बोली " आप बिल्कुल सही कह रहे हैं पिताजी। हमें दिल्ली ही चलना चाहिए। और अब तो मेरी पढ़ाई भी पूरी हो चुकी है। मैं वही पर कोई अच्छी सी नौकरी ढूंढ लूंगी। और हमेशा के लिए तुषार को अपने दिलो-दिमाग से भुला दूंगी। "


जानवी ने यह बात अपने पिता से कह तो दिया था पर उसके लिए तुषार को भुला पाना मुमकिन नहीं था।


एक साल के बाद,


अपने दूर के मुँहबोले रिश्तेदारों की मदद से मोहनलाल और जानवी ने दिल्ली में ही अपना एक अच्छा सा ढाबा खोल लिया जिसका नाम उन्होंने जानवी ढाबा रखा। धीरे-धीरे उनकी कमाई भी अच्छी होने लगी। जानवी को भी क्लर्क की नौकरी मिल चुकी थी।


पर कहानी का यह सफ़र यहां पर ख़त्म नहीं होता। कहते हैं ना नियति जिंदगी के पड़ाव को कब आखरी पड़ाव बना दे यह कोई भी इंसान नहीं जान सकता ।


 एक दिन, जानवी ऑफिस में काम कर ही रही थी कि अचानक उसके पास ऑफिस के मैनेजर आए और बोले " मिस जानवी, कल हमारे घर मेरी छोटी बहन की शादी है। यह रहा शादी का कार्ड आपको भी जरूर आना होगा। "


 मैनेजर के हाथों में शादी का कार्ड देखते हुए जानवी चेयर से उठ खड़ी हुई और बोली " जी सर, यह तो बहुत ही खुशी की बात है। मैं आपकी बहन की शादी में जरूर आऊंगी। "


 इतना कहते हुए जानवी ने अपने मैनेजर के हाथों से शादी का कार्ड ले लिया और अपने मैनेजर को नमस्ते किया ।उसके बाद ऑफिस के मैनेजर अपनी केबिन की तरफ बढ़ चले।


अगले दिन,


 जानवी अपने ऑफिस के मैनेजर के आमंत्रित करने पर शादी में गई हुई थी। चारों तरफ शादी की चहल-पहल लगी हुई थी। जानवी भी अच्छे से सज धज कर आई थी। लाल रंग की जड़ी लगी हुई साड़ी में जानवी इतनी खूबसूरत लग रही थी कि सब लोग शादी में उसे ही घूर घूर कर निहारे जा रहे थे।


जानवी शादी में मौजूद अपने सभी स्टाफ मेंबर के साथ बात कर ही रही थी कि अचानक उसकी नजर नेहा पर पड़ी। वही नेहा जिसकी शादी तुषार से हो चुकी थी। उसे देखते ही जानवी दंग रह गई। उसने देखा नेहा के गोद में एक साल का बच्चा भी था जिसे वह खिलाई जा रही थी।


 मैनेजर के शादी में मौजूद अचानक नेहा को देखते ही जानवी को पता चल चुका था कि उस शादी में तुषार भी जरूर मौजूद होगा। जानवी अपने कदमों को आगे बढ़ाते हुए नेहा की तरफ गई और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली " आपका बच्चा बहुत ही प्यारा है।"


नेहा ने जानवी की तरफ गौर से देखते हुए कहा "जी शुक्रिया.... क्या आप मुझे जानती हैं?"


 जानवी नेहा और उसके गोद में बच्चे को देख समझ चुकी थी कि नेहा ने जिसे गोद में लिया है वह उसका और तुषार का बच्चा है।


 जानवी अंदर से भावुक होते हुए नेहा से बोली " लगता है आप मुझे नहीं जानती पर मैं आपको बहुत ही अच्छी तरह से जानती हूं मिसेस रायजादा। "


नेहा जानवी की बात सुनकर गौर से उसे ऊपर से लेकर नीचे तक निहारती रही।


नेहा को सुहागन के रूप में देखकर और तुषार के बच्चे को अपनी गोद में लिए हुए देखकर जानवी ने ईर्ष्या के भाव से नेहा से कहा " आप मुझे नहीं जानती हैं पर आपके पति मुझे बहुत ही अच्छी तरह से जानते है। अगर आप अपने पति से पूछेंगी कि जानवी कौन है तो आपको मेरे बारे में पता चल जाएगा और हां उसे कह दीजिएगा कि मेरी सगाई हो चुकी है और बहुत ही जल्द में शादी करने वाली हूं। "


फिर अंदर ही अंदर आग बबूला होते हुए वह वहां से जल्दी जल्दी निकल पड़ी। सोलह श्रृंगार मे सजी-धजी सी नेहा अपनी गोद में बच्चे को लिए एकटक उस जानवी को निहारती ही रह गई।


घर जाकर जानवी अपने पिता से बिना कुछ कहे अपने कमरे के अंदर जाकर, अपने बिस्तर पर बैठकर फूट-फूट कर रोने लगी।


 अपनी बेटी को इस तरह से रोता देख मोहनलाल फौरन अपनी बेटी जानवी के कमरे के अंदर उत्तेजित होते हुए गए और घबराते हुए बोले " अरे...! क्या बात है बेटी.... तुम अचानक से क्यों रो रही हो....? किसी ने कुछ कह दिया क्या...? "


और फिर मोहनलाल अपनी बेटी को दुख भरी निगाहों से देखने लगे।जानवी ने अपने हाथों से आंसुओं को पोंछते हुए अपने पिता की तरफ देखी और बोली " कुछ नहीं पिताजी अतीत की कुछ बातें याद आ गई इसलिए मेरे आंखों में आंसू भर आए। "


 तभी मोहनलाल ने अपनी बेटी के हाथों में तुषार की तस्वीर को देखें।


" अच्छा...तो मैं समझ चुका हूं। जरूर तुम्हें तुषार नजर आया होगा अपने परिवार के साथ। तभी तो तुम्हारे आंखों में आंसू भर आए। तुम्हारे आंखों में आंसू देने वाला एक वही तो लड़का था... धोखेबाज। और तभी उसकी तस्वीर तुमने अपने हाथों में ले रखी है। " मोहनलाल ने अपनी बेटी से गुस्से में कहा।


 जानवी ने अपने पिता से कहा " आप बिल्कुल सही कह रहे हैं पिताजी। आज मैंने शादी के माहौल में तुषार की पत्नी नेहा और उसके गोद में बच्चे को देखा। मैंने तो सच्चे दिल से तुषार को चाहा था... मुझे नहीं पता था कि तुषार मुझसे प्यार करने का नाटक कर रहा था। "


" बीती बातों को भूल जाओ। तुम्हारे लिए मैं कुछ लड़के ढूंढ रहा हूं। पसंद आने पर जल्द से जल्द तुम्हारी शादी करवा दूंगा। " इतना कहने के बाद, वह जानवी के कमरे से निकलकर अपने कमरे की तरफ चल पड़े।



तुषार की तस्वीर देख कर जानवी अपने कमरे में तुषार के साथ बिताए हुए अतीत के पलों को याद करते हुए मन ही मन बोली " मेरे पिताजी ने तो बड़ी आसानी से कह दिया कि वह मेरी शादी करा देंगे। पर पता नहीं क्यों मेरा मन नहीं मान रहा है कि मैं किसी और से शादी करूं।

तुषार ने मुझे अचानक से ही धोखा दे दिया पर पता नहीं क्यों मैं उसे भुला नहीं पा रही हूं.. शायद इसीलिए क्योंकि मेरा प्यार सच्चा था। "


इन्हीं सब बातों के बारे मैं सोचते-सोचते अचानक जानवी सो गई।


जानवी के पिता कुछ साल बाद गुजर गए।अब किसी और का कंधा उसके रोने के लिए था भी तो नहीं। जानवी के पिता ने जहां कहीं भी जानवी के लिए रिश्ता ढूंढा वहां पर दहेज की मांग इतनी ज्यादा की गई कि जानवी ने जिंदगी भर कुंवारी रहने का फैसला कर लिया। अब जैसे-तैसे जिंदगी उसने खामोशी के साथ गुजारना शुरू कर दिया था।उसने धीरे-धीरे अपने हालातों से समझौता करना सीख लिया था।


अब बिस साल बाद,


जानवी अब लगभग 46 साल की हो चुकी थी। उसके सर के कुछ बाल हल्के सफेद हो चुके थे। पर अब भी वह तुषार को अपनी यादों से मिटा नहीं पाई थी।

और जानवी अब भी यही सोचती रही की आखिर ऐसा क्या उसका गुनाह था कि उसका प्यार अधूरा रह गया?


जानवी ने क्लर्क की नौकरी छोड़ कर अपने ढाबे की मालकिन बन कर जीवन यापन करना शुरू कर दिया था।


एक दिन, हाइवे के पास, जानवी को एक बड़े से प्लाजा रेस्टोरेंट के बाहर नेहा नजर आई। जानवी अपने आंखों के चश्मे को ठीक करते हुए बार-बार नेहा को देख रही थी और मन ही मन कह रही थी " यह तो नेहा ही है तुषार की पत्नी। पूरे 20 साल बाद आज मुझे अचानक नेहा नजर आ गई। "


 जैसे ही नेहा की नजर जानवी पर पड़ी वह एकटक उसे निहारती ही रह गई और फौरन उसके पास अपने कदमों को तेजी से बढ़ाते हुए आई और अपने हाथों की उंगली से जानवी की तरफ इशारा कर, उत्तेजित होते हुए जानवी से बोली "तुम...तुम जानवी ही हो ना... तुषार का पहला प्यार?"


जो जानवी नेहा को बार-बार घूर घूर कर देख रही थी वह अचानक ही जानवी के पास आकर इस तरह से बोल खड़ी हुई कि जानवी दंग रह गई।


जानवी ठीक से कुछ भी नेहा से कह नहीं पा रही थी। नेहा ने जानवी से कहा "तुम जानवी हो ना...? तुम तुषार से प्यार करती थी ना....?"


" हां पर आज तुम मुझसे इस तरह से उत्तेजित होते हुए क्यों कह रही हों ? " जानवी गौर से नेहा के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली।


 तब अचानक नेहा के आंखों से झर झर आंसू बहने लगे और वो बोली " पूरे 20 सालों से हम तुम्हें ढूंढ रहे हैं... और आज जाकर तुम मिली हो मुझे। "


 जानवी ने नेहा से सवाल किया " 20 साल से मुझे क्यों ढूंढ रही हो... आखिर बात क्या है? "


 आंसू बहाते हुए नेहा ने कहा " पूरे 20 सालों से तुम्हें तुषार ढूंढ रहा है... तुम्हें भी यही लगा होगा कि मेरी शादी तुषार से हो गई होगी पर यह गलत है। तुषार तो आज भी तुम्हें ही चाहता है। "


नेहा के मुंह से यह सब सुनते ही जानवी चौक गई। अचानक ही उसके हाथों से उसका पर्स छूट कर नीचे जमीन पर गिर गया।


 कुछ देर तक नेहा की आंखों में निगाहें गड़ाए जानवी के होठ खुले के खुले रह गए और वह बोली " यह तुम क्या कह रही हो नेहा...? शादी में तो मैंने तुम्हें सुहागन के रूप में और तुम्हारे गोद में तुषार के बच्चे को देखा था। और यहां तक कि तुषार ने मुझे फोन पर कहा था कि वह तुमसे शादी कर रहा है और जब मैं शादी वाले दिन तुषार के घर गई तो देखा कि वह तुम्हारे साथ दूल्हे के लीबास में खड़ा है। इसलिए मैं अपने पिता के साथ हमेशा के लिए दिल्ली आ गई थी। और जब तुम्हें अपने मैनेजर की बहन की शादी में देखा तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ क्योंकि जो सपना मैंने देखा था वह पूरा नहीं हुआ।इसलिए वहां की नौकरी छोड़ कर दूसरी जगह आ गई। "


 "सच तो यह है कि मेरी और तुषार की शादी तो हुई ही नहीं। "


 नेहा के मुंह से निकले इन शब्दों को सुनते ही जानवी दंग रह गई । वह बोली " यह तुम क्या कह रही हो, तुम दोनों की शादी नहीं हुई तो वह बच्चा किसका था ?"


" बताती हूं सब बताती हूं...। " इतना कहकर नेहा ने बताना शुरू किया।


 नेहा रोते हुए जानवी से बोली " यह बात बिल्कुल सच है कि तुषार के पिता ने अपने दोस्त राजेंद्र रायजादा की बेटी यानी मेरी शादी तुषार से तय कर दी थी क्योंकि तुम एक गरीब परिवार से थी। तुषार के पिता मान सिंह रायजादा को जब पता चला कि उनका बेटा तुषार तुमसे प्यार करता है उस समय से वह अपने किसी दोस्त की अच्छी बेटी को ढूंढ रहे थे जो कि बिल्कुल उन्हीं के खानदान की तरह रईस हो। इसलिए उन्होंने मुझे अपनी बहू बनाने का फैसला किया। "


 इतना नेहा ने कहा ही था कि जानवी ने उत्तेजित होते हुए पूछा " फिर क्या हुआ? "


आंखों से आंसू बहाते हुए नेहा बोली " मैं तो अभिलाष  नाम के लड़के से प्यार करती थी। और कुंवारी में ही उसके बच्चे की मां बनने वाली थी। मैं और अभिलाष शादी करने ही वाले थे कि अचानक मुझे पता चला कि अभिलाष जिस ट्रेन से आ रहा था अचानक उस ट्रेन हादसे में अभिलाष मारा गया। मेरे घर वालों को सारी बातें पता चल चुकी थी।


अचानक हमें पता चला कि मान सिंह जी रिश्ते के लिए आए हैं इसलिए मैंने शादी के लिए हां कर दी ताकि मेरी भी इज्जत बच जाएं पर शादी वाले दिन अचानक मंडप के पास अभिलाष जीता जगता आकर खड़ा हो गया और उसने सबके सामने सारी बातें बता दी।


 फिर क्या था सारी बातें जानने के बाद तुषार ने सभी के सामने यह ऐलान किया कि मेरी शादी अभिलाष से उसी मंडप में करवाया जाए।"


तो क्या तुम दोनों की शादी नहीं हुई उस दिन...? " जानवी ने हैरान होते हुए नेहा से पूछा।


" नहीं जिस मंडप में मेरी और तुषार की शादी होने वाली थी उसी मंडप में तुषार ने मेरी शादी अभिलाष से करवा दी। और इस बात से मान सिंह रायजादा जी भी सहमत हुए।


कुछ दिनों के बाद तुषार ने मुझे बताया कि वह किसी जानवी नाम की लड़की से प्यार करता था। पर उसके पिता ने जानबूझकर आत्महत्या करने की कोशिश की ताकि तुषार तुमसे शादी ना करके मुझसे शादी कर ले। यही वजह थी कि तुषार ने तुमसे फोन पर झूठ कहा। तुषार को भी नहीं पता था कि उसके पिता आत्महत्या के नाम पर उसे मानसिक पीड़ा देंगे।


 उसने तुम्हें बहुत बार फोन करने की कोशिश की पर तुम्हारा फोन नहीं लगा। ज़ब वह तुम्हारे गांव तुम्हें ढूंढने के लिए पहुंचा तब उसे पता चला कि अचानक बाढ़ आ जाने पर कुछ लोगों की मृत्यु हो गई तो उसे भी यही लगा कि तुम और तुम्हारे पिता भी बाढ़ में बहकर  दुनिया से चल बसे। और फिर कुछ दिनों के बाद मान सिंह जी की भी दिल का दौरा पड़ने से अचानक मृत्यु हो गई। "


 नेहा के मुंह से सारी सच्चाई सुनकर जानवी के पैरों तले से जमीन खिसक गई। और अचानक ही उसकी आंखों के आंसू उसके गालों को भिगोने लगे।

वह बोली " बाढ़ आने के दौरान ही हमने उस जगह को छोड़ दिया था। "


" 20 साल पहले, ज़ब शादी में तुमने बताया कि तुम्हारा ही नाम जानवी है, मैंने सोचा था कि उसी दिन तुम्हें सारी बातें बता दूं पर जब तुम्हारे मुंह से सुना कि तुम्हारी सगाई हो चुकी है और बहुत ही जल्द शादी भी होने वाली है इसलिए मैं अचानक सोच में डूब गई और फिर सोचा की सारी सच्चाई तुम्हें बता दूं तब तक तुम मेरे आंखों से ओझल हो चुकी थी।


उसके बाद जब मेरी मुलाकात तुषार से हुई तब मैंने उसे सारी बातें बता दी पर आज भी वह तुम्हारे यादों के सहारे ही जी रहा है, बिल्कुल अकेला.. गुमसुम...।"


 नेहा की सारी बातें सुनते ही जानवी के आंखों से आंसू झरझर बहने लगे ।


 फिर उदासी के भाव से नेहा ने जानवी की तरफ देखते हुए कहा " मैं जानती हूं कि तुम्हारी शादी हो चुकी है पर चाह कर भी रहा नहीं गया तो इसलिए आज सारी सच्चाई तुम्हें बता दी। " इतना कहने के बाद नेहा ने एक लंबी सांस ली। मानो सब कुछ बताने के बाद उसके माथे से बोझ उतर चुका हो।


 अचानक जोर जोर से रोते हुए जानवी ने नेहा के कंधे को पकड़ते हुए कहा " यह तुम मुझे क्या कह रही हो? तुमने मुझे उस दिन शादी में यह बात क्यों नहीं बताया की तुम्हारी शादी तुषार से नहीं हुई।


मैंने तो कभी कोई शादी की ही नहीं थी।मैंने तो उस दिन तुमसे झूठ कहा था क्योंकि जो सपना मैंने देखा था, उस जगह तुम तुषार की बीवी बनकर खड़ी थी। इसलिए मैंने भी जल भून कर झूठ कह डाला। "


 जानवी की बात को सुनते ही नेहा दंग रह गई और उसने हैरानी के भाव से जानवी की तरफ भौहे उठाते हुए देखा और कहा " यह तुम क्या कह रही हो जानवी...??? तो उस वक्त शादी के माहौल में तुमने मुझसे झूठ कहा था... तुमने झूठ क्यों कहा जानवी?


अगर तुम झूठ नहीं कहती तो आज तुम और तुषार एक साथ एक बंधन में बंध चुके होते। "


 जानवी अचानक पश्चाताप के आंसू बहाने लगी। नेहा ने जानवी की आंखों में आंखें डालते हुए अचानक भावुक हो उठी। उसने जानवी से कहा " काश! तुषार के पिताजी आत्महत्या करने पर उतारू न होते तो तुषार भी मजबूर ना होता।

 तुषार आज भी अपने अकेलेपन की जिंदगी को तुम्हारी यादों के सहारे ही बिता रहा है। उसे तो आज तक यही लगता है कि तुमने किसी और लड़के से शादी कर लीं।


 और तुम्हें भी यही लगता रहा कि तुषार ने मुझसे शादी की... सच कहूं तो तुम दोनों के साथ बहुत ही गलत हुआ। "


अचानक से अपने चश्मे को हटा कर अपनी आंखों के आंसुओं को पोंछते हुए जानवी ने नेहा से पूछा " अ..अभी मेरा तुषार कहां है? मुझे उससे मिलना है। बताओ ना मेरा तुषार कहां है...? "


जानवी अचानक तुषार से मिलने के लिए उत्सुक हो बैठी।


इतने में नेहा ने जानवी से कहा " मेरी और अभिलाष की शादी करवाने के बाद से ही तुषार और मेरे मध्य दोस्ती का एक प्यारा सा रिश्ता बन चुका था, जो आज भी बरकरार है।

रुको, मैं अभी तुषार को फोन करके उसे इस प्लाजा रेस्टोरेंट के पास बुलाती हूं। "


 उसके बाद फौरन ही नेहा ने अपने पर्स के अंदर से अपने मोबाइल को निकालकर तुषार के नंबर को डायल किया।


उस वक्त भीड़ भाड़ सड़क पर तुषार अपनी गाड़ी चला रहा था। गाड़ी चलाते वक्त भी तुषार जानवी के बारे में ही सोच रहा था " काश! आज जानवी मेरी होती तो पूरी जिंदगी उसके साथ जीता।

 काश! मैं उसे बता पाता कि मेरी शादी नेहा से नहीं हुई।

 काश! तुमने किसी और से शादी नहीं की होती तो आज.... "


 तभी तुषार के मोबाइल की घंटी बजी

 " ट्रिंग... ट्रिंग..."


उसने देखा कि उसके फोन पर अचानक नेहा का फोन आया। नेहा का नंबर फ्लैश होता देख तुषार ने मन ही मन कहा "क्या बात है आज कई महीनों के बाद मुझे नेहा ने फोन क्यों किया...??

 इतना कहते हुए उसने तुरंत ही नेहा का फोन उठाया और कहा " हेलो..!!! क्या बात है नेहा, आज अचानक मेरी याद कैसे आ गई? "


 इसके बाद आंखों से आंसू बहाते हुए नेहा ने फोन पर सारी सच्चाई तुषार को बता दी और साथ ही साथ यह भी बता दिया कि हाईवे से कुछ दूर प्लाजा होटल के बाहर उसके साथ खड़ी जानवी उसकी राह देख रही है।


 सारी सच्चाई जानने के बाद तुषार से भी रहा नहीं गया और वह आंसू बहाते हुए उत्तेजित हों उठा। उसने सड़क किनारे गाड़ी रोकी और फोन पर नेहा से कहा" "जल्दी से मेरी बात जानवी से करा दो।"


 नेहा ने हां कहते हुए तुरंत अपना मोबाइल जानवी की तरफ बढ़ाया और कहा " तुमसे तुषार बात करना चाहता है। "


 अपने चेहरे पर मुस्कान भरते हुए जैसे ही जानवी ने नेहा का मोबाइल अपने हाथों में लिया, उसकी धड़कने अचानक तेज हो गई।

धक... धक..


 अचानक जानवी के होंठ कांपने लगे और उसने कहा " ह... ह... हेलो तुषार " और फिर अचानक वह रोने लगी।


 पूरे 20 साल के बाद जानवी की आवाज सुनते ही तुषार का भी गला भर आया। और फिर आंसू बहाते हुए उसने एकटक आसमान की तरफ देखा और अपनी आंखें बंद करते हुए फोन पर जानवी से कहा " काश! तुम नैनीताल छोड़कर दिल्ली नहीं आती। मैं तो तुम्हें सब कुछ बताने ही वाला था।"


 जानवी ने फोन पर भावुक होते हुए तुषार से कहा " काश! मैं नेहा से झूठ ना कहती तो आज हम एक होते। "


 कुछ देर तक उन्होंने फोन पर बातें करके जितने भी गिले-शिकवे थे सब दूर कर लिए।


 तुषार ने फोन पर जानवी से कहा "तुम होटल प्लाजा के बाहर रुको मैं अभी अपनी गाड़ी लेकर तुमसे मिलने आ रहा हूं।

 देखना अब हमें एक दूसरे का होने से कोई भी रोक नहीं सकता।"



 उसके बाद तुषार ने फोन रख दिया और झट से अपनी गाड़ी के अंदर बैठकर उसने अपनी गाड़ी को दाई तरफ घुमाई और होटल प्लाजा की तरफ जाने के लिए रवाना हो गया।


 उधर जानवी चिलचिलाती धूप में बार-बार अपनी पलके झपकाते हुए, अपने दोनों हाथों को मलते हुए उत्तेजित सी हुई जा रही थी कि कब उसकी निगाहें तुषार यानी अपने प्यार को देखेगी।


 आगे की सड़क पर गाड़ियां बहुत ही तेजी से आना-जाना कर रही थी। तभी अचानक नेहा के मोबाइल पर उसके पति अभिलाष का फोन आया। अपने पति के नंबर को फ़्लैश होता देख नेहा ने जानवी से कहा "मैं अपने पति से बात कर लेती हूं। तुम यही खड़े रहना, तुषार अभी अपनी गाड़ी लेकर आता ही होगा।"

 इतना कहकर नेहा अपने पति अभिलाष से बात करने में व्यस्त हो गई।


 सड़क किनारे खड़ी होकर जानवी बार-बार तेजी से चलते हुए गाड़ी को अपनी आंखों के चश्मे को ठीक करते हुए देख रही थी कि कौन सी है गाड़ी तुषार की ।

वों आज बहुत खुश नज़र आ रही थी की मानो चकोर को चांद से मिलने के सारे विघ्न खत्म हो गए हों, सारी गलतफहमी खत्म हो गए हों।


 उस वक्त हाईवे वाले रोड पर सभी गाड़ियां बहुत ही तेजी से आना-जाना कर रही थी । तुषार भी बहुत ही तेजी से गाड़ी को चला रहा था ताकि अपने प्यार को देख सकें।


दोनों का मन बैचेन है अपने प्यार से मिलने के लिए।


 तुषार ने  सड़क के किनारे अपनी गाड़ी रोकी और फौरन अपनी गाड़ी से उतरा। उसने सड़क के पार निगाहे दौड़ाते हुए देखा कि सड़क के किनारे जानवी खड़ी थी।


वर्षों तक जिंदा होकर भी जो मरता रहा , वह आज फिर से जानवी को देखकर जीवित हो उठा। जानवी को देखते ही तुषार फुला ना समाया और उसने जोर से आवाज लगाते हुए इशारा किया " जानवी..... "


 अचानक से जैसे ही जानवी की नजर तुषार पर पड़ी उससे रहा नहीं गया और उससे मिलने के लिए वह बिना सोचे समझे जैसे ही सड़क को पार करने गई। उसके पाँव अचानक ही उसकी साड़ी में फस गए जिस वजह से जानवी रास्ते के बीचो बीच गिर पड़ी।


 उस वक्त नेहा का ध्यान अपने पति अभिलाष से बात करने में लगा हुआ था। जैसे ही तुषार ने देखा कि जानवी बिच सड़क में गिर चुकी है और अचानक ही आगे से एक बड़ी सी ट्रक आ रही थी। उसे बचाने के लिए तुषार जैसे ही भागते हुए आया, उन दोनों को एक बड़े से ट्रक ने टक्कर मार दी। और उस वक़्त जैसे ही नेहा ने सड़क की तरफ नजर दौड़ाया तो देखा दुर्भाग्यवश दोनों जानवी और तुषार खून से लथपथ नीचे पड़े थे।


 अचानक ही उन दोनों को ऐसी हालत में देखकर नेहा भी उन दोनों के पास जाकर खड़ी हो गई और जोर-जोर से चिल्लाते हुए मदद मांगने लगी। हाईवे वाली सड़क पर चारों तरफ लोगों की भीड़ जमा हो गई।


 तुषार और जानवी खून से लथपथ हो चुके थे और रह रह कर एक दूसरे को देखते हुए बस इतना ही कह रहे थे " ह.. ह....हम एक होकर भी एक ना हुए..."


और उसके बाद दोनों ने एक साथ ही दम तोड़ दिया। इससे पहले कि एंबुलेंस सही वक्त पर पहुंचती दोनों ने दुनिया को अलविदा कह दिया।


आखिरी समय में नेहा जोर-जोर से रोते हुए बस इतना ही कहते रही " तुषार और जानवी का प्यार सच्चा था। वह दोनों जिंदगी भर एक दूसरे की याद में जीते रहे पर एक होकर भी शादी के बंधन में ना बंध पाए। वों एक होकर भी एक ना हुए।"


और फिर जिंदगी भर नेहा, तुषार और जानवी के प्यार को भुला ना पाई।


कहानी के मुख्य तीन किरदार के नाम :

तुषार ( अधूरी कहानी),

जानवी ( सातों जन्म में तेरे साथ रहूंगा ) और

नेहा ( तुम ना होती तो ना जाने क्या होता )

से लिया गया है।

© कहानी : एक होकर भी एक ना हुए

© लेखिका : सोनम शर्मा 



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