Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Drama

3.8  

Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Drama

एक गलत निर्णय

एक गलत निर्णय

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मृगांक आज रो रो कर अपनी व्यथा सबको सुना रहे हैं और अपनी पत्नी को निर्मोही बता रहे हैं। पहली बात वो पत्नी थी ही कब और दूसरी बच्चे की जिम्मेदारी तो शुरू से अपने सर उठाने की जहमत मोल ले कर ही बच्चे को अपनी दुनिया में लाए थे तो आज रोना कैसा।

जॉलिनी ने जो किया ये तो होना ही था। माँ-पिताजी ने कितना समझाया था -' बेटा जो तू कर रहा है ये सर्वथा अनुचित है। हमारे रीति रिवाज को नहीं मानता तो उसी धर्म को मान ले जिस धर्म की लड़की है। ये क्या बात हुई बिन फेरे हम तेरे। ये संस्कारहीन बात जाने कहाँ से सीख गया।' 

 पर नए जमाने की नई बात। शादी तो जिम्मेदारियों का वहन है। नहीं बनी तो बिना मतलब कोट कचहरी करते रहो। ये लिव इन में ये सब, कोई झमेला नहीं। जब तक बनी साथ रहो वरना अपना रास्ता अलग। कितना सरल है ये जीवन। 

माँ ने कितना समझाया था - सरल दिखने वाली चीज अंदर से पेचीदी होती है, पर तब तो विदेशी ज्ञान का भंडार सर चढ़ बोल रहा था। जब बच्चे की बात उठा कर माँ ने पूछा तो कितनी बेशर्मी से कह दिया - 'माँ नियमानुसार पति-पत्नी बनेंगे तो क्या बच्चे अपने आप बड़े हो जाएँगे। तब भी तो किसी एक को बच्चे की जिम्मेदारी उठानी होगी। जॉलिनी को घर गृहस्थी से ज्यादा ज्ञान नौकरी का है। वो अपने कैरियर के प्रति कुछ ज्यादा ही समर्पित है। अतः उसके साथ शादी करने पर भी बच्चे की जिम्मेदारी मेरी ही होगी। और ऐसे भी हम दोनों में से किसी को भी बच्चे की चाहत अभी कुछ सालों तक तो बिल्कुल ही नहीं है। 

जब माँ इस रिश्ते से नाराज हो गई तो उसे कहाँ फर्क पड़ा अपनी प्रेयसी को लेकर विदेश चल पड़े। कम्पनी दो साल के लिए अमेरिका भेज रही थी। अमेरिका क्या गए अमेरिकन ही बन गए। दो साल बाद वापस आए तो माँ- पिताजी ने कहा अब तो दो साल गुजर गया ये बेनामी जिंदगी के, अब तो शादी कर ले। कितनी हिकारत भरी दृष्टि डाली थी माँ पर और नाराज हो कर चला गया था। 

सालों घर की ओर रुख नहीं किया। माँ-पिताजी भी अपनी जिंदगी जीते रहे। जब तब कहीं-कहीं से खबर मिलती रहती । बेटा स्वस्थ्य है जान संतोष कर लेते। करीब पांच साल बाद किसी से खबर मिली की पोती हुई है। माँ का दिल नहीं माना और पियरी ले कर पहुँच गई पोती की छट्ठी करने। जॉलिनी से पहले मृगांक बरस पड़ा। रीति रिवाज की बात करोगी तो चली जाओ। दादी बिना पोती का मुँह देखे ही लौट गई।

आज क्या हुआ जो रोते हुए माँ को फोन किया - 'माँ मेरी बेटी को बचा लो। जॉलिनी इस सवा साल की बच्ची को छोड़ कर चली गई।'

पहले तो माँ को लगा जॉलिनी भगवान को प्यारी हो गई पर बात पूरी समझ में आई तो समझी जॉलिनी एक भगवान दास नामक युवक के साथ चल दी क्योंकि वो उसे नई और आजाद जिंदगी देने का वादा किया ।

  सच्चाई ये थी कि दोनों में से कोई भी बच्ची को इस दुनिया में लाना ही नहीं चाहते थे पर देर हो चुकी थी अतः जन्म देना मजबूरी हो गई। सोचा था जन्म के बाद किसी अनाथाश्रम में दे देंगे। पर नौ माह के प्यार ने दोनों को एक दूसरे के साथ और अपनी अजन्मी बेटी के साथ ऐसा बांधा की बच्ची के जन्म के बाद दोनों सुनहरे सपने देखने लगे। वे भूल गए कि वे माता-पिता तो बन गए पर पति-पत्नी नही हैं। एक आँधी आई और उस पेड़ को जड़ से उखाड़ कर अलग कर दी जिसकी जड़ मिट्टी को गहराई से पकड़े ही नहीं थी।

अब सवा साल की बच्ची के साथ भटक रहे हैं। उस जॉलिनी को बेवफा पत्नी और निर्मोही माँ बता रहे हैं। जब वो पत्नी ही नहीं बनी तो बेवफा कैसे हुई और उसने अपने को माँ नहीं सेरोगेट मदर ही समझा था तभी तो बच्चे को अनाथाश्रम अर्थात दूसरे की गोद में डालने की कल्पना कर जन्म दिया था।

एक मित्र थी जो सेरोगेट मदर बनी अनुबंध पूरा हुआ और चल दी।

जब मेरे पास आ कर अपना दुखरा सुनाने लगा मैं अच्छी तरह समझ रही थी कि वो अब एक ऐसी लड़की की तलाश में है जो पत्नी बन उसकी अबोध बेटी की माँ बन जाए। पर मैंने कहा ये सम्भव नहीं। कुछ गलतियाँ ऐसी होती हैं जिसकी कोई माफी नहीं। तुमने पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते का मजाक बनाया अब अकेले ही माँ बाप दोनों की जिम्मेदारी निभाओ शायद यही तुम्हारी माफी होगी। 


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