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Shiv kumar Gupta

Horror Tragedy Fantasy

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Shiv kumar Gupta

Horror Tragedy Fantasy

एक छलावा

एक छलावा

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मध्य प्रदेश के मालवा अंचल का एक गांव, 90 के दशक के शुरुआती साल। ये दौर तब था जब गांवों में जल्दी कोई यातायात व्यवस्था जल्दी मिला नही करती थी। ऐसे में शादियों का सीजन था और न्योता आया था थोड़ी दूर से , पुराने रिश्ते थे कभी पटीदारी थी अब वो लोग यहां से दस कोस दूर जाकर बस गए थे। पुरुष तो शायद सीधे बारात वाले दिन ही जाएं मगर औरतें पहले से जाकर थोड़ा मजे करना चाहती थी आखिर यही तो मौका होता है जब उन्हें भी हंसी मजाक करने का संयोग मिलता है।

चार औरतें , घर की तीनों बहुएं और एक ननद, अब जाकर तो इस अधेड़ावस्था में मौका मिला था जब बिना किसी पुरुष के जा सकती थीं सब। विचार था की सुबह पैदल निकलेंगी और खेतों के रास्ते शाम शाम तक तो पहुंच ही जाएंगी ब्याह वाले गांव।

मगर औरतों को सजने संवरने से फुर्सत कब मिली है, कहां तो बात थी की पौ फटने से पहले निकल जायेंगे और अब यहां सूरज सर पर चढ़ आया था, हालांकि गर्मी नही थी बहुत ज्यादा वसंत की शादियां इसीलिए तो सब पसंद करते हैं। खैर एक अच्छी खासी देरी के बाद सब निकलीं, खाने का इंतजाम साथ था कौन जाने गांव खेड़े में कुछ खाने को मिले या न कहीं रास्ते में और पहुंचते पहुंचते रात हो जानी थी।

सफर शुरू हुआ और शुरू हुईं बातें, कभी न खत्म होने वाली बातें। परिवार , गांव , समाज सब की बातें, किसकी बहु अच्छी है और किसकी बुरी से लेकर न जाने कौन से कौन से रिश्तेदारों की बाते, शायद पगडंडियों के रास्ते चलते एक पहर बीत गया हो और कम से कम तीन कोस तो चले होंगे, की एक कुंवा दिखा, पेड़ था बड़ा सा उसकी छांव में बैठ , थोड़ा कुंवे का पानी पिया, कुछ जो लाए थी साथ वो खाया , कुछ बतियाया और हुआ की थोड़ा आराम कर लें।

ये आराम भारी पड़ गया, पहले ही देर हुई थी और यहां थोड़ा ज्यादा ही आराम हो गया। दिन का तीसरा पहर चालू हो गया था, हालांकि जरूरी तेज कदमों की थी मगर बातों के क्रम में कहीं थोड़ा बहुत रास्ता भूल गए तो कभी चाल धीमी हो गई और अब भी उस गांव से अच्छी खासी दूरी थी जहां जाना था और गोधुली वेला आ गई थी। औरतें परेशान हो रही थी।

ऐसे में रास्ते में एक घर दिखा , एकदम अलौता खेतों के बीच वहां, वहां से गुजरते वक्त एक औरत निकली घर से , उससे रास्ता पूछने पर उसने कहा की वो तो आप उल्टे रास्ते आ गई , काफी देर हो जायेगी वहां पहुंचने में और आजकल आंखे

निकाल लेने वाला एक गिरोह घूम रहा है तो फिर कुछ बातों के बाद उस औरत ने उन्हें वहां उसी मकान में रात बिता लेने का उपाय दिया। यहां अब कुछ खास विकल्प बचा नही था, मरता क्या न करता तो वो चारों औरतें वहीं रह गईं

उस घर वाली औरत ने बताया की उसके पति कहीं बाहर गए हैं तो वो घर पर अकेली ही है, उसे भी अच्छा लगेगा आप सब रहोगी तो। रात उसने खाना बनाया बेहद साधारण रोटियां और साग, लेकिन खाने में कोई स्वाद ना था इतनी भूख होने के बावजूद वो खाना ऐसा था मानों खाया ना जाए। रात को मौसम ऐसा था की गर्मी भी लगती और ठंड भी अहले सुबह तो सबके सोने का इंतजाम आंगन में ही किया और ओढ़ने को कंबल दे दिया।


खैर थकी ही थी सब तो बस लेटते नींद आ गई, हालांकि कंबल की ही जरूरत पड़ी तो सब अपने अपने हिस्से का कंबल लेकर सो रही थी, इनमें से एक औरत की आंख रात को खुली और उसने जो देखा वो देख उसकी चीख निकल गई मगर वो चाहकर भी चीख ना पाई, शायद मानों लकवा मार गया हो, वो दृश्य था की आंगन के मुंडेर पर दर्जनों औरतें नीचे देखी जा रहीं थी और वो औरत जिसने उन्हें शरण दी थी वो हवा में बीचों बीच बैठी थी बिना किसी आधार के। और मुंडेर पर बैठी औरतों ने कहा की तुमने अच्छा किया इन्हें रोककर अब हम इन्हें। खा लेते हैं, मगर वो औरत जिसने उन्हें शरण दी थी वो अड़ी थी की नही हम मनुष्य नही जो विश्वास में लेकर विष दें।

खैर वो यात्री औरत ये सब देख सुन रही थी मगर उसे ऐसा महसूस हो रहा था की उसके प्राण निकल गए हों, वो चाह कर भी कुछ बोल ना पा रही थी और ना ही हिल डुल कर अपने बाकी भाभियों को उठा पाने में समर्थ थी खैर किसी तरह आंखे बंद हुई मन में नाम जप करके मौत का इंतजार करती रही और फिर शायद डर से सो गई।

सुबह भैंसों की घंटियों की आवाज ने नींद खोला, जब चारों जागें तो देखा चरवाहों ने उन्हें घेर रखा है, और अचानक ध्यान आया, ना वहां कोई मकान था, ना वो औरत और तो और वो खाट कंबल भी नही जिसपर वो सोयीं थी, वास्तविकता में तो वो जमीन पर लेटी थी, मगर ये क्या था किसी को कुछ समझ नही आया और जब उसी चौथी औरत ने रात की बात बताई की उसने क्या देखा ये सुनकर सबके होश फाख्ता हो गए। 

पता नही वो औरत क्या थी, मदद करने वाली कोई देवदूत या कोई डायन मगर जो भी था ये अनुभव उन चारों औरतें का जीवन का सबसे डरावना किस्सा था।


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