कवि हरि शंकर गोयल

Fantasy Inspirational

3  

कवि हरि शंकर गोयल

Fantasy Inspirational

एक और पन्ना भाग -3

एक और पन्ना भाग -3

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गतांक से आगे 


दिलावर के हाथों पारो के मालिक का खून हो जाता है। "बेड़नियों की बस्ती" में यह समाचार जंगल में आग की तरह फ़ैल जाता है। 


पारो दौड़कर उस स्थान पर आती है और दिलावर को वहां से भाग जाने को कहती है लेकिन दिलावर मना कर देता है। पारो उसे अपनी कसम देती है लेकिन दिलावर कहता है "पारो, तुम्हें मेरे बच्चे की मां बनना है। उसकी परवरिश करनी है। अब तुम आज़ाद हो। कहीं भी जा सकती हो। मेरा क्या है, मैं फांसी पर लटक जाऊंगा। मगर तुम अब एक मां जरूर बन जाओगी। अब तुम्हें मां बनने से कोई नहीं रोक सकेगा।" इतना कहकर दिलावर सीधा थाने पहुंचा और सारी घटना बताकर गिरफ्तार हो गया। 


उधर पारो ने अपने आपको संभाला और नियत समय पर एक बेटी को जन्म दिया। 


दिलावर बीच में ही बोल पड़ा। "हां, तुम वही बेटी हो, मेरी बेटी। मेरी बच्ची हो। आ जाओ, मेरे पास। मैं कब से तरस रहा हूं तुम्हारे लिए। ये बांहे कितनी बेचैन हैं तुम्हारे लिए" ? और वह सुबक पड़ा।


रीना भी दिलावर के सीने से लगकर फफक पड़ी। बाप बेटी के अद्भुत मिलन को देखकर जग्गू आश्चर्यचकित हो गया। उसने तो कभी ख़्वाबों में भी इस प्रकार की कहानी की कोई कल्पना भी नहीं की थी। उसकी आंखें भी नम हो गई थी। 


दिलावर और रीना बहुत देर तक रोते रहे और अपने ग़म उनके अश्कों के माध्यम से बाहर होते रहे। थोड़ी देर में दोनों संयत हुए तो रीना उनके लिए चाय बनाकर ले आई। 


रीना ने आगे कहना प्रारंभ किया। 

"आपके जेल जाने के बाद वकीलों को, पुलिस को पैसे देने के लिए कुछ नहीं था मां के पास। और फिर मुझको पढ़ा लिखा कर अफसर बनाने का आपका सपना भी था। इसलिए उसने फिर से "धंधा" शुरू कर दिया। मुझे एक शहर के अच्छे बोर्डिंग वाले स्कूल में भर्ती करा दिया। वह हर सात दिन में आकर मुझसे मिल जाती थी। वह अब केवल मेरे लिए ही जिंदा थी। 


समय धीरे धीरे कटता रहा। उधर आपके परिवार में आपके जेल जाने के बाद आपकी पत्नी और आपकी बेटी को आपके भाई बंधुओं ने मिलकर घर से निकाल दिया। आपकी पत्नी आपकी बेटी को लेकर अपने मायके चली गई। वहां पर वे दोनों जैसे तैसे करके रहने लगीं। 


बाद में वहां पर आपके साले साहब की मृत्यु हो गई। उनके रहते तो आपके साले साहब की पत्नी की ज्यादा नहीं चली मगर उनकी मृत्यु के बाद आपकी पत्नी और बेटी को उसके द्वारा तरह तरह से दुख दिया जाने लगा। आपकी बेटी रेशमा अब जवान हो चली थी। रेशमा की मामी की नजर उस पर थी। वह उसे अच्छे पैसों में बेचना चाहती थी। एक दिन उसने उसे एक लाख रुपए में बेच दिया। जिसने उसे खरीदा वह इसी डेरे का आदमी था। वह रेशमा को इस बस्ती में ले आया। 


उस आदमी ने रेशमा को धंधे पर बिठाने के लिए "पहली रात" की "बोली" लगवाई। उस दिन मैं स्कूल से यहां आई हुई थी। उस नीलामी को देखने के लिए मेरी मां भी चली गई। रेशमा की शक्ल आपसे बहुत मिलती जुलती है। इसलिए रेशमा को देखकर मां चौंकी थी। मां ने उस आदमी से छुपकर रेशमा से बात की और उसके बाप का नाम पूछा तो उसने आपका नाम बता दिया। मां को उस वक्त बहुत बड़ा सदमा लगा जब उसे पता चला कि तुम्हारी "जायज बेटी" अब एक वैश्या बनने वाली है। लेकिन वह क्या कर सकती थी ? उसके हाथ में था ही क्या ? ना धन दौलत और ना कोई ताकत ? 


अचानक उसके मन में एक विचार आया। उस विचार के कारण एक बारगी वह कांप गई थी। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था। वह असमंजस में थी। एक तरफ जिससे वह प्यार करती थी, जिसे अपना भगवान मानती थी, उसकी बेटी नर्क में जा रही है, यह सोचकर ही उसका कलेजा कांप उठता था। लेकिन वह उसे कैसे बचाए ? 


उसको पन्ना धाय की कहानी याद आ गई। किस तरह अपने स्वामी के पुत्र को बचाने के लिए पन्ना धाय ने अपने पुत्र का बलिदान कर दिया। उसी तरह मां ने भी मन ही मन फैसला कर लिया कि वह रेशमा को बचाने के लिए "मेरा" बलिदान दे देगी। 


घर पर आकर उसने मुझसे पूछा "बोल, तू मेरे लिए क्या कर सकती है" ? 

मैं अचानक इस प्रश्न से स्तब्ध रह गई। मुझे कुछ भी नहीं सूझा तो मैंने कहा दिया " यह शरीर आपका है मां, मेरा तन मन धन सब आपका ही है। आप जो चाहें वो कर सकतीं हैं इसका।" 

"ठीक है। तो मैं जैसा कहूंगी वैसा करेगी ? वो भी बिना प्रश्न पूछे" ? 

"हां, मुझे मंजूर है।" 


"तो ठीक है। चल, मेरे साथ।" और मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे वहां पर ले गई। उसने उस आदमी से अलग ले जाकर सारी बात बताई और कहा कि वह रेशमा को इस दलदल में नहीं धकेलने देगी। इसलिए वह रेशमा की जगह मुझे नीलाम कर दे। 


पहले तो वह माना ही नहीं लेकिन जब मां ने अपनी बस्ती का हवाला दिया तब वह माना। और इस प्रकार वहां पर रेशमा की जगह मेरी नीलामी हो गई। उस दिन से ही मैं इस धंधे में आ गई।  

बाद में मां ने मुझे सब कुछ बता दिया था। तब मेरे मन में मां के प्रति श्रद्धा और बढ़ गई। ऐसी मां पाकर मैं धन्य हो गई। मैंने पन्ना धाय को तो नहीं देखा लेकिन "पारो मां" को पन्ना धाय बनते हुए देखा है। मां, तुम्हारा यह बलिदान मैं हमेशा याद रखूंगी ।" और रीना की फिर से रुलाई फूट पड़ी।


दिलावर की आंखों से भी गंगा-जमुना बह निकली। पारो के त्याग से वह हतप्रभ था। एक वैश्या होकर भी उसने मेरी पत्नी होने के धर्म से भी ऊंचा काम किया है। अपनी ममता का गला घोंट कर उसने जो काम किया है वह अवर्णनीय है। उसका नाम तो आसमां पर सुनहरे अक्षरों में लिखा जाना चाहिए। वह सोचने लगा। दिलावर ने पूछा "अब कहां पर हैं, वे दोनों" 


रीना ने बेझिझक कह दिया "दिल्ली।" 


अब दिलावर ने रीना से कहा "बेटी, वैसे मुझे कुछ मांगने का हक तो नहीं है लेकिन अगर मैं तुमसे कुछ मांगू तो क्या तुम दे सकोगी" 


"अब मेरे पास देने को केवल जान ही बची है बापू। चाहो तो ले लो।" रीना ने उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा। 


"नहीं, मुझे जान नहीं चाहिए तुम्हारी जिंदगी चाहिए। बोलो दोगी" ? 


रीना कुछ समझी नहीं। उसने प्रश्नवाचक निगाहों से दिलावर को देखा। 

दिलावर ने कहा " अरे, घबराओ नहीं बेटी। इनसे मिलो। ये जग्गू है। बहुत अच्छा और सच्चा लड़का है। मैं चाहता हूं कि तुम इसके साथ घर बसा लो। इससे शादी कर लो।" 


रीना खामोश हो गई। कुछ नहीं कहा। दिलावर ने फिर कहा "क्या तुम मेरी बात रखोगी" ? 


रीना दिलावर के सीने से लग गई। जिस दिन उसकी नीलामी हुई थी उस दिन उसने सोच लिया था कि अब सारी जिंदगी इसी दलदल में रहना है। लेकिन आज उसके अनदेखे बाप ने उसकी मुक्ति का रास्ता तैयार कर दिया था। अपने पिता के प्रति आज पहली बार उसके मन में श्रद्धा के भाव आए थे। वह जोर जोर से रोने लगी। दिलावर ने उसे अपनी बाहों में कसकर बांध लिया। 


दिलावर ने जग्गू और रीना से कहा "अब मेरे दुबारा जेल जाने का समय आ गया है। तुम दोनों चुपचाप यहां से चले जाओ। मैं इसके "मालिक" से निपट कर आता हूं। 


उसके खतरनाक इरादे भांप कर रीना बोली "क्या करना चाहते हो, बापू ? अब मैं फिर से तुम्हें नहीं खोना चाहती हूं। प्लीज़, बापू।" 

"इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है बेटी। तेरी कीमत चुकाने के लिए मेरे पास पैसा नहीं है और मैं तुझे अब इस नर्क में और नहीं रहने देना चाहता हूं। मैंने अपनी पूरी जिंदगी जी ली है। और जीने की तमनु नहीं है। और जीने से भी क्या फायदा है ? मैं जानता हूं कि तेरा मालिक तुझे यहां से जाने नहीं देगा। इसलिए मुझे उसकी हत्या ही करनी पड़ेगी। और कोई रास्ता नहीं है। तुम दोनों यहां से दिल्ली चले जाना और वहां पर अपनी मां और बड़ी बहन के साथ सुखी जीवन बिताना। क्यों है ना जग्गू" ? 


"उस्ताद, जग्गू ने एक बार वचन दे दिया सो दे दिया। अब कोई चिंता फिकर नहीं।" जग्गू मुस्कुरा कर बोला। 

" मुझे तुमसे यही उम्मीद थी जग्गू। तुम दोनों अब जाओ। मैं उस आदमी से निपटता हूं।" और दिलावर ने उन दोनों को वहां से भेज दिया। 


फिर वह उस आदमी के पास गया और उसे सारी बात बताई। स्वाभाविक है कि वह आदमी बहुत क्रुद्ध हुआ और उसने दिलावर पर आक्रमण कर दिया। फिर से वही कहानी दोहराई गई। दिलावर ने फिर से थाने में जाकर अपना गुनाह कबूल कर लिया। अबकी बार उसे फांसी की सजा हुई। 


समाप्त 



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