Saroj Verma

Tragedy

4.0  

Saroj Verma

Tragedy

दूसरी पत्नी...

दूसरी पत्नी...

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"अरी,ओ मनकी काकी तनिक निहारन की तैयारी जल्दी कर लेव,देखो तो नई बहु की गाड़ी दरवाजे पर आ खड़ी हैँ, पहिले गाड़ी के पास जाकर बहु को शरबत पिलाओ"

"हां...हां..बड़ी ठकुराइन अबही जात् हैं, बहु का हालचाल पूछे, तुम चिंता नाहीं करो",मनकी काकी बोली।।

थोड़ी देर मे अंदर निहारन की सब तैयारियां होने के बाद तारादेवी बोली_"अब बहु को अन्दर बुला लो!!"

मनकी काकी बाहर जाकर बहु से बोली_"चलो,नई बहु अब अन्दर चलो..!"

नई बहु जैसे ही पग जमीन मे रखती उसकी पायलों के घुंघरू बज उठते,वैसे भी नई दुल्हन की छवि की बात ही कुछ और होती हैं,...!!लाल जोड़े मे सजी नई बहु,महावर लगे पैरों के साथ द्वार पर पहुंची तभी तारादेवी कुछ औरतों के साथ बहु का निहारन करने आ पहुंची।।तारादेवी ने बहु का निहारन किया और बहु से हल्दी लगे हथेलियों के निशान दरवाज़े के दोनों ओर लगवाकर बोली, चलो बहु भीतर आओ, भीतर ले जाकर बोली चलो पहले मंदिर मे और बडें बुजुर्गों की तस्वीरों के आगे माथा टेकों, बाद मे और भी नेगचार निभाने हैं।।नई बहु सकुचाते सकुचाते सब बातें मानती जा रही थीं, भगवान के पास माथा टेकने के बाद तारादेवी नई बहु को बडे़ बुजुर्गों की तस्वीरों के पास ले गई, सारी तस्वीरों को नई बहु से प्रणाम करने को कहा,फिर ठाकुर साहब की तस्वीर के सामने आकर तारादेवी बोली__

"नई बहु ये हैं तुम्हारे मरहूम ससुर ठाकुर मानसिंह, इन्हें प्रणाम करो और इनके बगल में जिस महिला की तस्वीर हैं वो ही तुम्हारे पति की असली मां हैं, तुम्हें शायद कुछ अभी समझ नही आया होगा, लेकिन अब तुम इस परिवार की सदस्य हो और इन सब बातों के विषय मे तुम्हें पता होना चाहिए।

तुम्हारी सास जिसकी ये तस्वीर उसका नाम सिंदूरी था,वो एक किसान की बेटी थी,जब इसकी शादी हुई थी तब ये अल्हड़ सी लडकी थी,तब ये सिर्फ पन्द्रह साल की थीं और ठाकुर साहब पच्चीस साल के ,ये ठाकुर साहब से कम से कम दस साल छोटी थी और तब मैं बीस साल की थीं ठाकुर साहब से पांच सालछोटी।।

हुआ यूं कि मेरी शादी पन्द्रह साल की उम्र मे हो गई थीं, पांच साल तक मेरे कोई औलाद नही हुई, डाक्टरों से बहुत इलाज करवाने के बाद पता चला कि मैं तो कभी मां बन ही नहीं सकतीं, इस खबर से ठाकुर साहब बहुत ही निराश हो उठे,लेकिन इस बात को लेकर उन्होंने कभी भी मुझे कोई ताना नही मारा लेकिन अंदर ही अंदर कुढ़ते रहते थे, तब मैने उनकी दूसरी शादी करवाने का फैसला किया लेकिन कोई योग्य लड़की नही मिल रही थीं।।

एक दिन मैं ठाकुर साहब के साथ मेला देखने गई, तभी मेरी मुलाकात सिंदूरी से हुई, वो वहां चूडियां बेच रहीं थीं, उसने मुझसे चूडिय़ां लेने को कहा और मैं उसकी बात टाल ना सकी,पता नहीं कौन सी मोहनी थी उसमे कि जो भी देखता आकर्षित हुए बिना नही रह सकता था,मैंने उसे ठाकुर साहब के लिए पसंद कर लिया लेकिन ठाकुर साहब सिंदूरी को कभी पत्नी वाला दर्जा नही दे पाए क्योंकि वो तो मुझसे प्रेम करते थें, सिंदूरी उनके लिए पराई स्त्री समान थी।।

फिर एक रोज हम लोग अपने तांगे से कहीं जा रहे थे,हमेँ दूर से किसी छोटे बच्चे की रोने की आवाज़ आई,हमनें तांगा रूकवाया, वो आवाज कच्ची सड़क से उतर कर थोड़ा दूर झाड़ियों से आ रही थीं, हम सब पास गए देखा तो एक औरत लेटी थी और उसके बगल मे आठ नौ महीने का बच्चा बिलख रहा था। 

ठाकुर साहब ने कहा कि इसे छूकर देखो,शायद तबियत खराब हैं तो उठ नही पा रही इसलिए बच्चा रो रहा हैं।।

सिन्दूरी ने उस औरत की नब्ज टटोली,माथे पर हाथ रखा ,देखा तो उसका शरीर एकदम ठंडा था,शायद वो मृत थी,लेकिन ठाकुर साहब ने तसल्ली करने के लिए तांगे वाले को बुलाया, उसनें भी उसकी नब्ज टटोलकर यही कहा।तब सिन्दूरी उस बच्चे को झट से अपनी गोद में उठाकर बोली___

"दीदी, आज से यही हमलोगों की संतान होगा, मैं आपसे कुछ भी नही मांगती,आप मुझे इस वंश की बेल बढ़ाने के लिए लाई थीं लेकिन ठाकुर साहब तो आपसे प्रेम करते हैं इसलिए वो मुझे आज तक पत्नी की दृष्टि से देख नही पाए तो क्यों ना हम इस बच्चे को अपनाकर इस अधूरे परिवार को पूरा कर लें।"

और उस दिन उस बच्चे को सबने दिल से अपना लिया, जिसकी बहु तुम आज बनकर इस घर मे आई हो,वो थी तो ठाकुर साहब से दस साल छोटी लेकिन काम सयानों वाला करके चली गई,तारा देवी के इतना कहने के बाद उनकी आंखें छलक पड़ी।"


             


      


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