दूसरा रास्ता

दूसरा रास्ता

8 mins
479


सुबह के आठ बजे रहे थे। सुदूर पहाड़ी की ओट से सूरज मुस्कुराता हुआ आ रहा था। आसमान नीला और साफ दीखाई दे रहा था। पंछियों की चहचहाहट और बैलों की घंटियों की ध्वनि चारों ओर सुनाई दे रही थी। किसान हल लेकर खेतों की ओर जाने लगे थे। ग्वाले गाय-बकरियों को जंगल की ओर ले जाने लगे थे।

इस गाँव का नाम था राजपुर। गाँव में यद्यपि ब्राह्मण, ठाकुर और अनुसूचित जाति तीनों जातियों के लोग रहते थे, किंतु फिर भी ठाकुर परिवारों की बहुलता थी। गाँव के सभी लोग खेतीबाड़ी करके अपना जीवन यापन कर रहे थे। इसी गाँव में ठाकुर रघुवीर सिंह का परिवार भी रहता था। इन्हीं रघुवीर सिंह का छोटा बेटा था गोपाल। गोपाल, जिसे प्यार से उसके माता-पिता गोपू भी कहा करते थे। गोपाल पढ़ाई में एकदम फिसड्डी था, जबकि उसका बड़ा भाई किसन पढ़ाई में ठीक था, इसीलिए जब किसन इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था, तभी उसका चयन भारतीय सेना में हो गया था। वर्तमान में वह कश्मीर बौर्डर में तैनात था।

रघुवीर सिंह का छोटा लड़का गोपाल पढ़ाई-लिखाई में तो सबसे पीछे रहता था, लेकिन लड़ाई- झगड़े और उछलकूद में अव्वल नंबर पर था। यद्यपि वह अभी सातवीं कक्षा में ही पढ़ता था, लेकिन उसके कारनामों के चर्चे पड़ोसी गावों में भी हुआ करते थे।

एक दिन की बात है पूरा गाँव हर्षोल्लास से दीपावली का पर्व मना रहा था। शाम ढल चुकी थी। लोग अपने घरों में दीए जलाने लगे थे। बच्चे पटाके, अनार, फुलझड़ियां और राकेट छोड़ने लगे थे। भट-भट, भटाम-भटाम, भड़-भड़-भड़ और साईं सुईं सूंऊऊऊऊ की आवाज से वातावरण गुंजायमान हो रहा था। गोपाल भी उस समय अपने पड़ोसी जतिन के साथ पटाखे फोड़ रहा था। उसने जतिन से कहा कि अगर तू लक्ष्मी बम को हाथ में फोड़ देगा तो तुझे दस रूपये दूंगा। उसने बकायदा बम हाथ में फोड़ने का तरीका भी बताया। उसने खुद एक मुर्गा छाप पटाखा पकड़ा और उसकी बत्ती जलाकर उसे पीछे की ओर कर हाथ में ही फोड़ दिया।

जतिन ने भी दस रूपये के लालच में आकर उसी तरीके से बम हाथ में पकड़ा और उसकी बत्ती जलाकर उसे पीछे की ओर कर दिया। बड़ाम की आवाज आई। जतिन को एकबारगी लगा कि शायद उसका हाथ उसके शरीर से अलग जा गिरा है और उसे कुछ सुनाई भी नहीं दे रहा है। उसे दुनिया गोल घूमती नजर आ रही थी। वह वहीं बैठकर रोने लगा। गोपाल तब तक उसकी माता जी को बुला लाया- "ताई, जतिन ने अपने हाथ में लक्ष्मी बम फोड़ दिया।"

सभी को लगा कि गलती जतिन की है, लेकिन जब एक घंटे बाद जतिन पूर्वावस्था में आया तो उसने सारी कहानी बता डाली। सबने गोपाल को खरी-खोटी सुनाई। पिता ने तो यहाँ तक कहा कि अगर आइंदा से ऐसी गलती की तो घर से निकाल दिया जायेगा।

इस घटना के बाद गोपाल कुछ दिनों तक शांत रहा, लेकिन कुछ दिनों बाद फिर वह अपने ही रंग में लौट आया। उसने अपने जैसे तीन और शरारती दोस्तों के साथ मिलकर एक ग्रुप बनाया। इस ग्रुप का काम था, लोगों के खेतों में हुई ककड़ियों पर हाथ साफ करना। इसके लिए चारों सदस्यों को अलग-अलग काम बांटे गए थे। एक सदस्य का काम था, ककड़ी की खोज करने का, दूसरे सदस्य काम था ककड़ी चोरी करने के लिए उपयुक्त समय व माहौल तैयार करने का, सबसे महत्वपूर्ण काम था ककड़ी चोरी करने का, वह काम स्वयं गोपाल किया करता था, जबकि चौथा सदस्य ककड़ी चोरी करते समय निगरानी का काम करता था। इस ग्रुप ने गाँव में इतनी ककड़ियां चोरी कि लोगों ने इस ग्रुप का नाम 'ककड़ी चोर गिरोह' ही रख दिया। यह गिरोह गाँव में पिछले दो साल से सक्रिय था। हालांकि यह गिरोह सीजनल ही अपना काम कर पाता था।

इसी तरह एक दिन जब गोपाल शाम को गाँव के लड़कों के साथ क्रिकेट खेल रहा था, तभी हुए मामूली से विवाद में उसने साथी खिलाड़ी की नाक में घूंसा दे मारा था। घूंसे से उसके नाक से खून बहने लगा था। खून बहता देखकर गोपाल वहाँ से रफूचक्कर हो गया था और पिताजी के डर से उस दिन वह घर गया ही नहीं और दूसरे दिन शाम को घर लौटा। घरवाले उसे खोजते-खोजते परेशान हो गये थे। पता नहीं उस रात वह कहाँ रहा ! कुछ लड़कों का कहना था कि उन्होंने उसे सुबह के समय काली चुड़ैल के खंडहर के पास से आते देखा था। 

काली चुड़ैल के खंडहर का नाम सुनकर गाँव के बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े-बुजुर्ग भी भयभीत हो जाया करते थे। लड़कों की यह बात कि गोपाल सुबह-सुबह काली चुड़ैल के खंडहर के पास से गुजरता दीखा, सीधे-सीधे किसी को हजम नहीं हो रही थी, लेकिन सच गोपाल के सिवा कोई जानता भी नहीं था। वह इतना जिद्दी था कि घरवालों के द्वारा मार खाने के बाद भी उसने किसी को कुछ नहीं बताया। 

गोपाल सिंह के कारनामों से स्कूल भी अछूता नहीं रहा। उन दिनों स्कूल में खेलकूद प्रतियोगिताएँ आयोजित हो रही थीं। स्कूली स्तर पर आयोजित हो रहीं इन प्रतिस्पर्धाओं में गोपाल ने भी भाग लिया। जूनियर वर्ग की दो सौ मीटर रेस में जब वह पिछड़ने लगा तो उसने अपने प्रतिद्वंद्वी रेसर को पैर फंसाकर गिरा दिया। तब रेफरी ने गोपाल को रेस से बाहर कर दिया था।

इतना ही नहीं गोपाल लड़ाई-झगड़े में हमेशा अव्वल रहता था, लेकिन पढ़ाई-लिखाई से उसका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था, लेकिन संयोग से वह परीक्षा में उत्तीर्ण जरूर हो जाता था।

गोपाल जब नौवीं कक्षा में पहुंचा, तब उनके स्कूल में हिंदी के एक नये अध्यापक आये। वो कुछ ही दिनों में गोपाल के स्वभाव से भली-भांति परिचित हो गये। उन्होंने एक दिन गोपाल को समझाते हुए कहा- "बेटा, तुम्हारे पास दो रास्ते हैं, एक जिस पर तुम चल रहे हो यानि लड़ाई-झगड़ा और शैतानियों का, दूसरा पढ़ाई-लिखाई का। पहले रास्ते पर चलोगे तो आखिरी में दुख पाओगे, लेकिन दूसरे रास्ते पर चलोगे तो जीवन में हमेशा खुशियाँ पाओगे। दूसरा रास्ता उन्नति का रास्ता है। यह तुम्हारे जीवन को सुखमय बनायेगा, जबकि पहला रास्ता तुम्हें पतन की ओर ले जायेगा।"

अध्यापक की बात का गोपाल पर गहरा प्रभाव पड़ा। उस रात वह ठीक से सो नहीं पाया। उसके मस्तिष्क में गुरूजी की बातें गूंजती रहीं-"दूसरा रास्ता उन्नति का रास्ता है। यह तुम्हारे जीवन को सुखमय बनायेगा, जबकि पहला रास्ता तुम्हें पतन की ओर ले जायेगा....।" अंततः उसने संकल्प लिया कि वह पहले रास्ते को हमेशा के लिए छोड़ देगा और दूसरे रास्ते पर चलेगा। दूसरे दिन जब वह उठा तो वह उसके लिए एकदम नई सुबह थी।

गोपाल अब सुबह नित्य समय पर उठता। उठने के पश्चात नित्य कर्म करके वह एक घंटा पढ़ाई करता और फिर प्रसन्न होकर स्कूल जाता। शाम को स्कूल से घर आने के बाद वह कपड़े बदलता। फिर हाथ-मुंह धोकर गृहकार्य करने बैठता। गृहकार्य करने के बाद कुछ देर वह पढ़ाई करता और फिर शाम को एक घंटा दोस्तों के साथ खेलने निकल जाता। वापिस आने के बाद फिर वह शौच आदि से निवृत्त होकर अध्ययन करने लगता। बेटे में अचानक आये इन बदलावों को देखकर माता-पिता हैरान थे। माता-पिता ही नहीं बल्कि उसके स्कूल के शिक्षक भी हैरान थे कि आखिर उसमें इतना बदलाव आ कैसे गया !

पहले गोपाल महीने में दो-तीन दिन स्कूल पहुंचने से पहले ही रास्ते से गायब हो जाता था। कई दिन वह स्कूल में इंटरवल के बाद से गायब रहा। इस चक्कर में उसने अध्यापकों के हाथ मार भी खाई, लेकिन अब उसने यह सब करना बिल्कुल बंद कर दिया था। एक दिन उसके दोस्तों ने उससे कहा-

"यार, गोपू आज सही मौका है, इंटरवल में गोल मारने का। आज गणित वाले मासाब भी नहीं आये हैं। जाकर मजे से क्रिकेट खेलेंगे।"

गोपू ने जवाब दिया- "नहीं यार, अब मैं गोल नहीं मार सकता।"

"क्यों बे गोपू ?" दीपक ने पूछा।

"क्योंकि अब मैंने सोच लिया है कि मुझे पढ़-लिखकर कुछ बनना है।" गोपू ने उत्तर दिया।

"अरे... लगता है अपना गोपू अब सुधर गया रे। देखो...!" जग्गू ने चुटकी ली।

"हा हा हा।" सब हंसने लगे।

गोपू ने उनसे कुछ नहीं कहा, क्योंकि इस सबके लिए वह पहले से तैयार था।

गोपाल नित्य प्रातः चार बजे उठता और शौच आदि से निवृत्त होने के पश्चात् कुछ देर अध्ययन करता और फिर उसके पश्चात् पीठ में झोला लगाकर गाँव के अन्य विद्यार्थियों के साथ कालेज की ओर चल देता।

इसी बीच छमाही परीक्षाओं का परिणाम आया, तो कक्षा नौ में पहला स्थान गोपाल ने प्राप्त किया था।कैलाश, महेश, दीपिका समेत कक्षा के सब विद्यार्थी तो आश्चर्य में थे ही साथ ही कुछ शिक्षकों को भी बड़ा आश्चर्य हुआ। गोपाल की कापियाँ पुनः चैक की गईं, तो अध्यापक उसके कार्य को देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाये। सबने एक स्वर में कहा, नि:संदेह यह बालक एक दिन विद्यालय का नाम रोशन करेगा।

वार्षिक परीक्षा में भी महिपाल ने कक्षा में अपना प्रथम स्थान बरकरार रखा। अगले वर्ष जब दसवीं की बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट आया तो गोपाल ने जिलेभर में दूसरा स्थान प्राप्त किया था। उसके माता-पिता की खुशी का ठिकाना न था।

इस तरह अध्ययन करते हुए गोपाल ने बारहवीं की बोर्ड परीक्षा में पूरे जनपद में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

बारहवीं के बाद गोपाल शहर आकर एन० डी० ए० की तैयारी करने लगा। तीन साल की मेहनत के बाद आखिरकार उसका चयन थल सेना के लिए हो ही गया। आफिसर बनने के बाद जब गोपाल घर आया तो वह सीधा कालेज गया। वहाँ उसने नतमस्तक होकर हिंदी के गुरूजी से कहा- "सर, आज मैं आपके द्वारा बताये दूसरे रास्ते पर चलकर ही यहाँ तक पहुँचा हूँ।"

गुरुजी ने गोपाल को अपने हृदय से लगा लिया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational