दूसरा इश्क
दूसरा इश्क
मेरा पहला इश्क मेरा घर परिवार माता पिता भाई बहन बच्चे व पतिदेव। इनके इश्क मैं इतना डूबी कि अपने जीवन के 40 वर्ष इनकी ख़ुशियों पर निसार कर दिए। लेकिन दोस्तों अभी दो-तीन साल पहले ही मुझे दूसरा इश्क हुआ। जी गलत मत समझिए और हंसिए भी नहीं कि इस उम्र में भी किसी को प्यार हो सकता है! हां मुझे हुआ है। अब आप सोच रहे होंगे किससे?
किसी और से नहीं जनाब खुद से। जी हां मुझे खुद से ही इश्क हो गया है। और इस इश्क का नशा ऐसा है हुजूर कि इसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती। फिर भी एक छोटी सी कोशिश की है। आप सभी को अपने इस दूसरे इश्क का रंग दिखाने की।
दुनिया की नहीं अब अपने मन की सुनती हूं।
कहता है जो मन मेरा वह अब मैं करती हूं।
खुद के लिए ही अब मैं सजती संवरती हूं।
करती नहीं परवाह कि लोग क्या कहेंगे।
बेधड़क हो अपनी बात अब मैं रखती हूं।
रह गए थे जीवन की इस भागदौड़ में
जो ख़्वाब अधूरे, उनको पूरा मैं करती हूं।
हां मैं अब खुद से ही इश्क करती हूं।।