Akanksha Gupta

Tragedy

4.5  

Akanksha Gupta

Tragedy

दुर्गा

दुर्गा

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शरीर पर चलती हुई मशीन उसकी खाल को चीरती हुई एक नया चित्र उकेर रही थीं। दर्द से उसकी आँखों में पानी आ रहा था लेकिन उसके सिर पर ज़िद सवार थीं। उसे अपने हाथ पर देवी दुर्गा को उकेरना ही था। वो एक टैटू बनवा रही थी जिसमें सिंह पर सवार देवी दुर्गा का चित्र था। 


जब उसने टैटू बनाने वाले को अपने हाथ पर बनने वाले उस महिषासुरमर्दिनि के चित्र के बारे मे बताया तो उस टैटू बनाने वाले को बड़ी हैरानी हुई। उसने कहा- “देखिए मैडम, मुझे लगता है कि आपके हाथ मे यह जो शेर का टैटू बना हुआ है उस पर किसी और टैटू का आ पाना बड़ा ही मुश्किल है। मैने किसी तरह आपके हाथ पर ये शेर तो बना दिया लेकिन अब इसमें औऱ गुंजाइश नहीं है।”


उस लड़की ने जिसका चेहरा काले दुप्पटे से ढका हुआ था, अपने पीछे खड़े एक बुजुर्ग आदमी को देखा तो उस आदमी ने उसे पलक झपकते हुए शांत रहने का इशारा किया। वो लड़की बिना कुछ कहे वापस लौट आई और वे दोनों किसी चाय के स्टॉल पर आ गए।


उस आदमी ने उस लड़की से कहा- “क्या तुम वाकई ये करना चाहती हो? हम पुलिस के पास भी तो जा सकते है। एक बार फ़िर कोशिश करने में क्या हर्ज हैं? मैं तुम्हें एक क़ातिल बनते हुए नहीं देख सकता।” काश मैने तुम्हारा यकीन किया होता तो आज तुम यूँ इस अंजान शहर में किसी को जान से मारने के लिए भटक नहीं रही होती। मुझे माफ़ कर दो खुशी।”


“वो तो मैं बहुत पहले ही कर चुकी थी वरना मैं आपके साथ यहां पर नहीं होती। आप मेरे पिता हैं और देर से ही सही अपना फर्ज निभा रहे हैं। रही बात पुलिस के पास दुबारा जाने की तो वो इंसान आज अपने किये की सज़ा भुगत रहा होता। खैर चलिए हमें आज रात ही अपना काम पूरा करना होगा। आपको पक्का पता है कि वो अकेला होगा आज रात के लिए?” ख़ुशी ने चाय पीते हुए पूछा।


“हाँ आज वो बिल्कुल अकेला ही होगा और उसके साथ भी वही होगा जो बरसों पहले उसने तुम्हारे साथ किया था।” दोनों वहां से उठकर चले गए।


अगले ही दिन शहर मे अफरा-तफरी मची हुई थी। किसी ने शहर के जाने-माने वकील पूरन राय का शव उनके आवास पर संदिग्ध हालत में मिला हुआ था। उनके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। चारों ओर खून बिखरा हुआ था और उसी खून से दीवार पर महिषासुरमर्दिनी का एक चित्र बनाया गया था। नीचे लिखा गया था- “नारी के सम्मान और शील को भंग करने वाले असुरों का संहार करने के लिए आ चुकी हूँ मैं।” पूरन राय के हाथों की नसें कटी हुई थीं। पास ही में एक कागज पड़ा हुआ था जिसमें पूरन राय ने लिखा था- “मैंने अपना सारा जीवन असुरों की तरह नारी के शील को भंग करते हुए बिताया हैं लेकिन आज मुझे एहसास हुआ कि जब किसी कन्या के साथ दुराचार किया जाता हैं तो उसे कैसा महसूस होता हैं इसलिए मैं भी उसी भावना के साथ इस दुनिया से जाना चाहता हूँ। मेरी इस हालत का जिम्मेदार मैं खुद हूँ। मुझपर किसी तरह का कोई दबाव नहीं है।”


पूरन राय की लाश पोस्टमार्टम के लिए जाते हुए देख कर खुशी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने कार में बैठी हुई एक लडक़ी से कहा- “तुम्हारे डैड तुमसे बहुत प्यार करते थे। इतनी आसानी से अपने गुनाह कबूल कर के खुद को ही सज़ा दे दी।” वो लड़की सिसक रही थीं। अपने पिता के कृत्यों को सुनकर उसके अंदर का प्रेम मर चुका था और वो बन गई एक नई दुर्गा।


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